आयुवर्द्धक, स्वास्थ्यवर्द्धक त्रिफला की प्रयोग विधि एवं लाभ

आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला का नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है। एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है। दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता है। तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ़ जाती है। चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है। पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि कुशाग्र हो जाती है।

 

त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड़, बहेड़ा व आंवला के पिसे हुए मिश्रण से बने चूर्ण को कहते हैं। यह मानव जाति को प्रकृति का एक अनमोल उपहार है. त्रिफला सर्व रोगनाशक, रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है. त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टीबायोटिक व एन्टीसेप्टिक है, इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात, पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है. सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में रामबाण की तरह काम करने वाला त्रिफला, नेत्र-ज्योति वर्द्धक, मल-शोधक, जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई, गुरू नानक देव विश्‍वविद्यालय अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय नई दिल्ली में रिसर्च करने के पश्‍चात यह निष्‍कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़ने से भी रोकता है।

हरड़
हरड़ को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड़ में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड़ बुद्धि को बढ़ाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली, पीलिया, शोध, मूत्राघात, दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह देख-भाल और रक्षा करती है। भुनी हुई हरड़ के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड़ को चबाकर खाने से अग्नि बढ़ती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पकाकर उपयोग करने से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने पर वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड़ का वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सोंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड़ के साथ प्रयोग करना हितकारी होता है। भुनी हुई हरड़ के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड़ पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखें। पेट की गड़बड़ी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें। गैस, कब्ज़, शरीर टूटना और वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा।


बहेड़ा
बहेड़ा वात और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम तथा लगाने में ठण्डा व रूखा होता है. सर्दी, प्यास, वात, खांसी व कफ को शांत करता है. यह रक्त, रस, मांस, केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्द्धक होता है। बहेड़ा मंदाग्नि, प्यास, वमन कृमि-रोग, नेत्र-दोष और स्वर-दोष को दूर करता है. बहेड़ा न मिले तो छोटी हरड़ का प्रयोग करते हैं.

आंवला
आंवले की तासीर मधुर, शीतल तथा रूखी होती है. यह वात, पित्त और कफ रोग को दूर करता है, इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है. आंवले के अनगिनत फायदे हैं। नियमित रूप से आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी नहीं आती। आंवले में विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसका विटामिन किसी भी रूप (कच्चा, उबला या सूखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन-सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। यह चर्बी, पसीना, कफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढ़ता है, लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक होते हैं। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला और नेत्र-ज्योति को बढ़ाने वाला होता है। त्रिफला के तीन मुख्य घटक हरड़, बहेड़ा व आंवला हैं. इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग-अलग औषधि विशेषज्ञों की अलग-अलग राय पाई गयी है.

कुछ विशेषज्ञों कि राय है कि तीनों घटक सामान अनुपात में होने चाहिए. कुछ विशेषज्ञों कि राय है कि यह अनुपात एक, दो, तीन का होना चाहिए. कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो, चार का होना उत्तम है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए एक, दो, तीन का अनुपात संतुलित और सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक-एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है, जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है।

ऋतु के अनुसार सेवन विधि
शिशिर ऋतु में (14 जनवरी से 13 मार्च तक) 5 ग्राम त्रिफला और उसका आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें। बसंत ऋतु में (14 मार्च से 13 मई तक) 5 ग्राम त्रिफला उसके बराबर शहद मिलाकर सेवन करें। ग्रीष्म ऋतु में (14 मई से 13 जुलाई तक) 5 ग्राम त्रिफला में उसका चौथाई गुड़ मिलाकर सेवन करें। वर्षा ऋतु में (14 जुलाई से 13 सितम्बर तक) 5 ग्राम त्रिफला में उसका छठा भाग सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें। शरद ऋतु में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर तक) 5 ग्राम त्रिफला में उसका चौथाई भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें। हेमंत ऋतु में (14 नवम्बर से 13 जनवरी तक) 5 ग्राम त्रिफला में उसका छठा भाग सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

औषधि के रूप में त्रिफला
रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चूर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें, इससे कब्ज दूर होता है। इसके सेवन से नेत्र-ज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी लें। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे। शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दें. सुबह मसल कर, निथार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

एक चम्मच बारीक त्रिफला चूर्ण, 10 ग्राम गाय का घी व 5 ग्राम शहद एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, दृष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते हैं और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है। त्रिफला के चूर्ण को गोमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेक तरह के पेट के रोग दूर हो जाते हैं। त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल भी कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ी-बूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं। चर्मरोगों में सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।

एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो-तीन घंटे के लिए भिंगो दें, इस पानी को घूंट भर थोड़ी देर के लिए मुंह में डाल कर अच्छे से कई बार घुमायें और फिर इसे निकाल दें। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें. इससे मुँह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरुचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी। त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में इतना पकाएं कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड़ या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है। त्रिफला एंटीसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इसका काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते हैं। त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है। मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर लें। त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।

त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में भी बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है। त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है। 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते हैं। 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है। टॉन्सिल्स के रोगी को त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें। त्रिफला दुर्बलता का नाश करता है और स्मृति को बढ़ाता है। दुर्बलता का नाश करने के लिए हरड़, बहेड़ा, आँवला, घी और शक्कर मिलाकर खाना चाहिए। त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण की 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफें दूर होती हैं. इसे महीने भर लेने से शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है और 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांति आ जाती है।

त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनों को मिलाकर जो रसायन बनता है, वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधा-शक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी, मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं। डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है। दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।

विधि-500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।

सेवन-विधि- वयस्क 10 ग्राम तथा छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें, दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करें। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं। सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है.
मात्रा- 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है, जबकि शाम को यह रेचक होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ न खाएं और इस नियम का कठोरता से पालन करें।

सावधानी – दूध व त्रिफला रसायन कल्प के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो. कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए। घी और शहद कभी भी समान मात्रा में नहीं लेना चाहिए, यह खतरनाक जहर होता है. त्रिफला चूर्ण के सेवन के एक घंटे बाद तक चाय, दूध, कॉफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिए। त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये) पीसकर तैयार करें, सीलन से बचा कर रखें और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।

त्रिफला से कायाकल्प
कायाकल्प हेतु नीबू, लहसुन, भिलावा, अदरक आदि भी हैं, लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला का नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है.
एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है। दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता है। तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ़ जाती है। चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है। पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि कुशाग्र हो जाती है। छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है। सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल सफ़ेद से काले हो जाते हैं। आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धावस्था से पुन: यौवन लौट आता है। नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती है। दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है। ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है, अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाता है।

-डॉ. आरपी पांडेय

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