धर्मों का उद्देश्य नफरत फैलाना नहीं – सर्व सेवा संघ

विभिन्न राज्यों में चुनाव का समय आते ही ध्रुवीकरण का खेल आरंभ हो गया है, जो खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। हरिद्वार की तथाकथित धर्म संसद में कई उग्र संतों ने मुस्लिमों के कत्लेआम का आह्वान किया है। हिंदू महासभा के महामंत्री ने हिंदू सनातन धर्म को बचाने के लिए हथियार के प्रयोग की धमकी दी है।
सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने समाज में नफरत फैलाने वाली ऐसी धर्म संसद से लोगों को बचकर रहने का आह्वान किया है। धर्म संसद में उपस्थित कई संतों ने नाथूराम गोडसे का गुणगान किया और धर्मदास महाराज ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि यदि वे लोकसभा में होते तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सीने में छह गोली दाग देते, क्योंकि उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है।
अभी हरिद्वार के धर्म संसद की सनसनी समाप्त भी नहीं हुई थी कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की धर्म संसद में हिंदू नेता कालीचरण ने महात्मा गांधी के बारे में अपशब्द कहते हुए उनके कातिल नाथूराम गोडसे की प्रशंसा की और उसे प्रणाम किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ ऐसे अपशब्दों की पुनरावृत्ति पर केंद्र सरकार की खामोशी कई सवाल खड़े करती है। ऐसी घटनाओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। धर्म का उद्देश्य समाज मे विभेद पैदा करना नहीं,  बल्कि लोगों के मध्य समरसता पैदा करना है, जिसके लिए महात्मा गांधी ने जीवन भर काम किया.
सर्व सेवा संघ के महामंत्री गौरांग महापात्र ने कहा है कि एक धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद की भी वक्तृता हुई थी, जिसने विश्व में हिन्दू धर्म की उदात्त अवधारणा का परचम लहराया था। आज के समय में आयोजित हो रही इन तथाकथित धर्म संसदों का उद्देश्य धर्म की सेवा करना नहीं, राजनीतिक बढ़त बनाना और समाज में जहर बोना है। गांधी हमारे राष्ट्रपिता हैं। उनके लिए कहे गये अपशब्द देश का अपमान करने वाले हैं।
सर्व सेवा संघ के प्रबंधक ट्रस्टी अशोक शरण ने कहा कि यह दुखद है कि सत्ताधारी पार्टी अपने तुच्छ राजनैतिक लाभ के लिए ऐसी घटनाओं को प्रश्रय दे रही है। नफरत फैलाने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, जिसका मुख्यमंत्री ने आश्वासन भी दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में नफरत फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। भारत सहित पूरे विश्व में गांधी को मानने वाले लोग हैं। देश के जाने माने वकीलों द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को स्वतः संज्ञान लेने के लिए लिखा गया पत्र यह जाहिर करता है कि देश में संवैधानिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए अभी भी प्रतिबद्धता बची हुई है।

Co Editor Sarvodaya Jagat

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