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मानवता के प्राण गांधी

अमेरिका में पेंसिलवेनिया के निकट देहाती क्षेत्र में एक गांव है पेरेक्सीर। वहीं हमारी एक शांत-सी झोपड़ी है। 31 जनवरी 1948 का वह दिन भी सामान्य दिनों की तरह ही आरम्भ हुआ। एकाएक गृहपति कमरे में आये। उनकी मुखमुद्रा गम्भीर थी। उन्होंने कहा, “रेडियो पर अभी एक अत्यन्त भयानक समाचार आया है, यह सुनकर हम सब उनकी तरफ देखने को मुड़े ही थे कि उनके मुंह से ये हृदय विदारक शब्द निकले- ‘ भारत में गांधीजी का देहावसान हो गया।’

अमेरिका में पेंसिलवेनिया के निकट देहाती क्षेत्र में एक गांव है पेरेक्सीर। वहीं हमारी एक शांत-सी झोपड़ी है। 31 जनवरी 1948 का वह दिन भी सामान्य दिनों की तरह ही आरम्भ हुआ। हम सवेरे ही उठने के अभ्यासी हैं, क्योंकि बच्चों को लेकर कुछ दूर उनके स्कूल तक जाना पड़ता है। नित्य की तरह ही उस दिन भी हम सभी जलपान के लिए मेज के चारों ओर इकट्ठे हुए और रोजमर्रा की साधारण बातचीत करने लगे।

खिड़कियों से बाहर घने हिमपात का दृश्य दिखाई दे रहा था और आकाश की आभा भूरे रंग की हो रही थी। हमारे बच्चों को शंका हो रही थी कि कहीं और अधिक हिमपात न हो।


एकाएक गृहपति कमरे में आये। उनकी मुखमुद्रा गम्भीर थी। उन्होंने कहा, “रेडियो पर अभी एक अत्यन्त भयानक समाचार आया है, यह सुनकर हम सब उनकी तरफ देखने को मुड़े ही थे कि उनके मुंह से ये हृदय विदारक शब्द निकले- ‘भारत में गांधीजी का देहावसान हो गया।’
मेरी इच्छा है कि भारत से हजारों मील दूर स्थित अमेरिका के निवासियों में गांधी जी की मृत्यु पर जो प्रतिक्रिया हुई, उसे भारतवासी जानें. हम लोगों ने हृदय को दहला देने वाला वह समाचार सुना. यह कि गांधी जी शान्ति की प्रतिमूर्ति थे और उन्होंने अपना सारा जीवन अपने देश की जनता की सेवा में लगा दिया था. ऐसे शांतिप्रिय व्यक्ति की हत्या कर दी गयी थी. मेरे दस वर्ष के छोटे बेटे की आँखों में आंसू छलकने लगे. उसने कहा कि मैं चाहता हूँ कि अगर बंदूक का आविष्कार न हुआ होता तो कितना अच्छा होता.


हम लोगों में से किसी ने भी गांधी जी को नहीं देखा था, क्योंकि जब हम लोग भारतवर्ष में थे, तब गांधी जी हमेशा जेल में ही रहते थे। फिर भी हम सभी उन्हें जानते थे। हमारे बच्चे गांधी जी की आकृति से इतने परिचित थे, मानो गांधी जी स्वयं हमारे साथ हमारे घर में ही रहते थे। हमारे लिए गांधी जी दुनिया के इने गिने महात्माओं और गिने चुने पीरों में से एक थे. उनके बारे में हमारी धारणा वैसी ही अटल है, जैसे गांधी जी खुद अपने विश्वासों पर अटल रहते थे.


हमें भारतवर्ष पर गर्व है कि महात्मा गांधी जैसे महान व्यक्ति भारत के अधिवासी थे, पर साथ ही हमें खेद भी है कि भारत के ही एक अधिवासी ने उनकी हत्या की। इस प्रकार दुःखी और सन्तप्त हम लोग चुपचाप अपने दैनिक कार्यों में लग गये।


भारतवासी संभवतः यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि हमारे देश में गांधीजी का यश कितने व्यापक रूप में फैला। मैं उनकी मृत्यु के एक घन्टे बाद सड़क से होकर कहीं जा रही थी कि एकाएक एक किसान ने मुझे रोका और पूछा, “संसार का प्रत्येक व्यक्ति सोचता था कि गांधीजी एक उत्तम व्यक्ति थे तो फिर लोगों ने उन्हें मार क्यों डाला? मैंने अपना सिर धुना और कुछ बोल न सकी। उसने संकेत से कहा, ‘जिस तरह लोगों ने महात्मा ईसा को मारा था, उसी तरह लोगों ने महात्मा गांधी को मार डाला।


उस किसान ने ठीक ही कहा था कि महात्मा ईसा की सूली के अतिरिक्त संसार की किसी भी घटना की महात्मा गांधी की गौरवपूर्ण मृत्यु से तुलना नहीं हो सकती। गांधीजी की मृत्यु उन्हीं के देशवासी द्वारा हुई। यह ईसा को सूली पर चढ़ाये जाने के बाद वैसी दूसरी घटना है। संसार के वे लोग, जिन्होंने गांधीजी को कभी नहीं देखा था, आज उनकी मृत्यु से शोकसंतप्त हो रहे हैं. वे ऐसे समय में मरे, जब उनका प्रभाव दुनिया के कोने-कोने में व्याप्त हो चुका था.


कुछ दिनों से हम अमेरिका के निवासियों में गांधी जी के प्रति बढ़ती हुई श्रद्धा का अनुभव कर रहे थे. यहाँ के लोगों में महात्मा गांधी के प्रति अगाध श्रद्धा थी. उनके प्रति जनता के मन में वास्तविक आदर था और हम लोगों को यह प्रतीत होने लगा था कि वे जो कुछ कर रहे थे, वही ठीक था.

(गांधी श्रद्धांजलि ग्रन्थ – एस. राधाकृष्णन)

-पर्ल एस बक

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