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संपूर्ण क्रांति की विरासत

आजादी के बाद गांधीजी अहिंसक क्रांति के माध्यम से लोकसत्ता का निर्माण करना चाहते थे, किन्तु राजसत्ता केन्द्रित परिवर्तन की नीति के कारण ‘लोक’ को लक्ष्य समूह (Target Group) एवं लाभार्थी (Beneficiary) में तब्दील कर दिया गया। राजसत्ता एवं अर्थसत्ता अधिकाधिक केन्द्रीकृत होती चली गयी। इस कारण प्राकृतिक दााोतों व संसाधनों पर केन्द्रीकृत व्यवस्थाओं का वर्चस्व बढ़ता गया। परिणामत: परंपरागत समुदायों की बेदखली, विस्थापन एवं पलायन भी बढ़ता चला गया। लोक समुदाय के स्वामित्व का विचार कमजोर पड़ता गया तथा लोकसत्ता के निर्माण का कार्य एवं लोकशक्ति द्वारा परिवर्तन की संभावना भी धूमिल होती चली गयी।

मुसहरी में अहिंसक क्रांति के प्रयोग के बाद जेपी की समझ में यह भी आ गया था कि स्थानीय स्तर पर ग्राम स्वराज्य के प्रयोग की एक सीमा है। जब तक वह एक राष्ट्रीय आंदोलन से नहीं जुड़ेगा, तब तक संपूर्ण परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा।

जेपी के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति का आंदोलन मूलत: लोकसत्ता के निर्माण का आंदोलन था। इसके मुख्य बिन्दु थे— 1. सत्याग्रह एवं वैकल्पिक रचना को एक प्रभावी शक्ति के रूप में स्थापित करना, 2. लोकसत्ता को परिवर्तन की शक्ति का दााोत बनाना तथा परिवर्तन का वाहक बनना, 3. लोक एकता में बाधक बनने वाली सभी शक्तियों को निष्प्रभावी करना, 4. श्रम का शोषण (अद्र्ध सामंती व पूंजीवादी) खत्म करना, 5. प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोकना आदि।

परिवर्तन के इन प्रारंभिक बिन्दुओं से यह आंदोलन जीवन व समाज के सभी क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन का वाहक बनता, जिसमें एक नये मनुष्य का, उच्च चेतना व उच्च नैतिकता वाले मनुष्य का निर्माण होता। मूल्य, मानसिकता तथा व्यवस्था में परिवर्तन का चक्र लोकसत्ता के माध्यम से एक साथ चलायमान होता। तात्कालिक दृष्टि से इस आंदोलन का मुख्य फोकस यह था कि केन्द्रीकृत शक्तियों पर लोकसत्ता का नियंत्रण वैâसे कायम हो। प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार और ग्राम व लोक स्तर पर ‘जनता ही सरकार’ के विचार को मूर्तरूप देने का अभियान सघन रूप से चलाया गया। यह तय हुआ कि जनता के आंदोलन अब राजनीतिक दलों के दायरे के बाहर खड़े किये जायेंगे। इस आंदोलन में दलों के लोग भी आये, लेकिन दलीय अस्मिता को छोड़कर। इस आंदोलन में कार्यकर्ता की गरिमा एवं स्वायत्तता भी स्थापित हुई। अब कार्यकर्ता लोकसत्ता का प्रतिनिधि बन रहा था।

संपूर्ण क्रांति आंदोलन को अपने प्रारंभिक काल में तात्कालिक चुनौतियों पर अधिक ध्यान देना पड़ा। आपातकाल में तो मुख्य चुनौती संवैधानिक तानाशाही से लड़ना ही हो गया था। इस कारण वैकल्पिक समाज रचना का पक्ष मजबूत नहीं बन पाया। दूसरी बात, सन् 1990 के दशक में एक बड़ा परिवर्तन पूंजी व बाजार के वैश्वीकरण के रूप में आया। वैश्वीकरण की शक्तियों के प्रभाव के विस्तार के कारण लोकसत्ता के निर्माण का कार्य और कमजोर पड़ गया। राष्ट्रों का नव-औपनिवेशिक दोहन व प्राकृतिक संसाधनों की लूट आज की वैश्वीकरण की प्रक्रिया में कई गुना तेज हो गयी है। वैश्वीकरण की शक्तियों का समर्थन करने वाली राजनीतिक शक्तियों को बड़े कारपोरेट घरानों का समर्थन प्राप्त है। कारपोरेट घरानों द्वारा नियंत्रित मीडिया सही मुद्दों को विमर्श से बाहर रखती है। संकीर्ण पहचान आधारित सामाजिक गिरोहों के निर्माण का कार्य भी इनके द्वारा
चलाया जा रहा है। समाज के अंदर नफरत एवं वैमनस्य फैलाकर लोक एकता को खंड-खंड किया जा रहा है।

उपरोक्त कारणों से संपूर्ण क्रांति आंदोलन की विरासत को आगे बढ़ाने में और बड़ी चुनौतियां खड़ी होती जा रही हैं। आज संपूर्ण क्रांति आंदोलन एवं अहिंसक क्रांति के आंदोलन के सामने ये प्रमुख चुनौतियां हैं—1. वैश्वीकरण की शक्तियों के खिलाफ खड़े होने की, 2. प्राकृतिक संसाधनों के लूट और दोहन के खिलाफ खड़े होने की, 3. परंपरागत समुदायों, जो जलजंगल-जमीन-खनिज आदि से सहजीवी होकर जुड़े रहे हैं, उन समुदायों के विस्थापन व पलायन के खिलाफ खड़े होने का तथा उन्हें क्रांति का मुख्या सामाजिक आधार बनाने की, 4. गांव व खेती को नष्ट करने की साजिशों (जैसे नये कृषि कानून आदि) को नाकाम करने की, 5. लोक में संकीर्ण पहचानों को मजबूत कर, लोकसत्ता को कमजोर करने की साजिशों को नाकाम करने की और 6. इन सबके साथ लोक अधिकारों एवं नागरिक अधिकारों के हनन को रोकने की।

जेपी ने कहा था कि संपूर्ण क्रांति सतत् आरोहण की प्रक्रिया है। यही हमारा मूल मंत्र है।

-बिमल कुमार

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