आखिर बेरोजगारी से पिटी हुई एक आर्थिकी कितना बोझ सह सकती है? रोजगारविहीन आर्थिकी अंततः बाजार में मांग को कमजोर हीं नहीं, चौपट भी कर देती है। सरकार के राजस्व में कमी आती है और फिर सरकार को टैक्स बढ़ाना पड़ता है, जिससे मंहगाई बढ़ती है और यह सर्कल अराजकता […]

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी के बिजनेस साम्राज्य को बहुत तगड़ा झटका लगा है। यह झटका इतना तगड़ा है कि जो अडानी 22 जनवरी 2023 तक दुनिया के तीसरे सबसे बड़े धनाढ्य आदमी थे, वे यह लेख लिखे जाने तक दुनिया के टॉप-20 धनाढ्यों की सूची से बाहर […]

सरकार ने देश के 81 करोड़ गरीबों को एक साल तक मुफ्त अनाज देने का ऐलान किया है, लेकिन यह रियायत अधिक समय तक नहीं दी जा सकेगी और गरीब अपनी आवश्यकता का 64% खाद्यान्न बाजार से ऊंचे दामों पर खरीदने को मजबूर होंगे। देश के गरीबों को दी जाने […]

वर्धा में जारी है कपास किसानों का संघर्ष 2013-14 में सुनील टालाटुले ने करीब 400 किसानों से तक़रीबन 8 करोड़ रुपये मूल्य के 20 हजार क्विंटल कपास की खरीदी की. और बाद में सरकार की शह पर किसानों का पैसा चुकाने में आनाकानी करने लगा. पेश है, किसान अधिकार अभियान […]

न तो उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार और न ही केन्द्र सरकार ने अब तक सैकड़ों-हजारों बुनकरों और उनके परिवारों की दुर्दशा के प्रति कोई संवेदनशीलता दिखायी है और न ही कोविड-19 से पैदा हुई भयावह स्थिति का किसी भी तरह से जवाब देने में सफल रही है। लॉकडाउन के […]

प्रकृति के पास कोटिश: नर-नारियों के पालन की क्षमता है, परंतु कमर्शियल और पूंजीवादी परिवार संसाधनों पर कुंडली मारकर बैठे हैं। सरकार ने वैसी योजनाओं  से मुंह मोड़ लिया है, जो रोजगार दे सकें। रोजगार का मसला इन लोगों की समझ से बहुत अधिक और कई गुना बड़ा है और […]

पिछली सरकारों ने हमारी आर्थिक संरचना को बीमार बना दिया था, लेकिन मोदी सरकार ने तो देश की बीमार आर्थिक संरचना को आईसीयू में डालकर मरणासन्न कर दिया है। इतनी ढीठ, बेरहम, अहंकारी और दुस्साहसी सरकार भारत में कभी नहीं रही। देश में किसानी और बेरोज़गारी के सवाल पर हाहाकार […]

मनरेगा ने व्यापक स्तर पर पलायन को रोकने का काम किया है। इस योजना के जरिये अब ग्रामीण इलाकों में भी जरूरतमंदों को रोजगार प्राप्त हो रहा है। मनरेगा के प्रभाव के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य दैनिक मजदूरी बढ़ने से बहुत से परिवार अब शहरों में जाने की बजाय, […]

आज़ादी के 75 साल के बाद निषाद समाज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक प्रगति पर नजर डालें, तो पायेंगे कि यह मुख्यधारा से बाहर छूट जाने वाला वह समाज है, जिसकी न तो सत्ता में भागीदारी है, न प्रशासनिक संस्थाओं में। जब नदियों पर पुल नहीं बने थे, परिवहन […]

जो लोग काम करना चाहते हैं, पर काम नहीं मिलता, कुल श्रम बल के सामने उनके प्रतिशत को अर्थशास्त्र में बेरोजगारी कहा जाता है। जैसे, 100 लोगों में 90 के पास काम हो और 10 लोग काम खोज रहे हों। तो बेरोज़गारी की दर 10/100 यानी 10 प्रतिशत होगी। ये […]

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