अमरीका की आर्थिक मंदी पूरे विश्व में, खासकर भारत जैसे विकासशील देश में आर्थिक मंदी को उत्प्रेरित करने वाली ताकत क्यों और कैसे बन जाती है? यही नहीं, अमरीका की आज की मंदी अपनी ही 1929 की मंदी और 2008 के वित्तीय मेल्ट डाउन से कितनी भिन्न है? अमरीका की […]

इलेक्शन बांड स्कीम को तत्काल बंद करना अति आवश्यक है, क्योंकि अगर इसे तुरंत बंद नहीं किया गया तो देश में लोकतंत्र बिलकुल ख़त्म हो जाएगा. यह देश में लोकतंत्र की रक्षा करने और भ्रष्टाचार की गंगोत्री को मिटाने केलिए शुरू किया गया अभियान है। इसमें एडीआर \ सीएफडी \पीयूसीएल\ […]

नोटबंदी के छह साल बाद भी देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी की जेब पर नोटबंदी का कहर जारी है। कहा गया था कि नोटबंदी काले धन की अर्थव्यवस्था को समाप्त करेगी। यदि नोटबंदी काले धन की अर्थव्यवस्था को समाप्त करने में सफल भी होती तो क्या यह असंगठित क्षेत्र […]

किसी व्यक्ति के जीवन की महत्ता और अर्थवत्ता पर ही उसके नाम पर लगने वाले नारों की गुणवत्ता निर्भर करती है। इसलिए अक्सर जब गांधीजी के नाम पर नारे लगते हैं, तो लगता है कि इसके पीछे जरूर कुछ ठोस कारण होंगे, जो लोगों को प्रभावित करते हैं. कई बार […]

चंपारण में 50 वर्षों से विस्थापित 40 परिवार, जो सड़क के किनारे वर्षों से बसे हैं, सरकार द्वारा परचा मिलने के 50 वर्ष बाद भी भूमि पर कब्जा हासिल करने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करते रहते हैं। प्रशासन के झूठे आश्वासनों से अजिज आकर परचाधारियों ने 11 नवंबर को सत्याग्रह […]

लोकतान्त्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान के कार्यक्रम में तुषार गांधी का सवाल। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उलाहना दिया है कि उन्होंने चंपारण ज़िले का नाम महात्मा गांधी के सत्याग्रह प्रयोग से जोड़ने का पांच साल पुराना वायदा अभी तक नहीं निभाया। तुषार […]

जो आदमी सरकार में होता है, उसे न गांधी पसंद होता और न सत्याग्रह। गांधी, हिन्द स्वराज और सत्याग्रह को ज़िंदा रखना है, तो ख़ुद ही गांधी के रास्ते पर चलकर आम जानता को जगाना और संगठित करना होता है। ये तुषार गांधी भी अजीब आदमी हैं। बिहार के मुख्यमंत्री […]

शान्ति ईश्वरीय वैभव है। सर्वकल्याणकारी मार्ग अथवा माध्यम है। ईश्वर अविभाज्य समग्रता रूप हैं। कुछ भी, कोई भी, उनकी परिधि से बाहर नहीं है। वे स्वयं सार्वभौमिक एकता निर्माता हैं। अतः शान्ति एकांगी नहीं हो सकती। सामान्य और अति सरल अर्थ में शान्ति को स्थिरता अथवा ठहराव की स्थिति स्वीकारा […]

आजादी के साथ-साथ भारत का बंटवारा एक ऐसा दर्द था, जो आज भी देशवासियों के मन में टीसता है। बंटवारा क्यों हुआ, उस समय के हालात कैसे थे, अंग्रेजों ने क्या चाल चली, जिन्ना-नेहरू की क्या भूमिका थी, अनेक सवाल पूछे जाते हैं। यद्यपि बंटवारे को स्वीकार क्यों किया गया, […]

भारतीयों के ऊपर आज हिमालय बचाने के साथ ही हिन्द महासागर बचाने का भी जिम्मा आ गया है. तिब्बत के मुक्ति साधकों ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद 1959 से 2022 के बीच की लम्बी अवधि में दुनिया के हर महाद्वीप में अपनी पीड़ा का सच फैला दिया है. इसी के […]

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