हर घर में हो खादी का तिरंगा

देशभक्ति की भावना से संचालित भारत के लोग अपनी स्वतंत्रता के उत्सव के दौरान दूसरे देशों से आयातित मशीनों से बने पॉलिएस्टर के झंडे का उपयोग करने और इसे अपने घरों पर फहराने की बात सोच भी नहीं सकते। अगर हम इस तरह के कृत्य करते हैं, तो इस देश के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की आत्मा को कभी शांति नहीं मिलेगी। अपने झंडे के लिए मशीन से बने पॉलिएस्टर कपड़े का उपयोग करके हम उन कॉरपोरेट्स का समर्थन कर रहे हैं, जो खादी के झंडे के उत्पादन में लगे गरीबों की आजीविका छीन रहे हैं।

12 मार्च 2021 को महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम से भारत के प्रधान मंत्री द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत की गयी थी. 15 अगस्त 2023 को एक साल बाद अमृत महोत्सव का समापन होगा। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत होने वाली सभी गतिविधियों और प्रयासों की देखरेख करने वाले गृह मंत्री ने राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान के लिए ‘हर घर तिरंगा’ अभियान को मंजूरी दी है, क्योंकि तिरंगा पूरे राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।

इस अभियान का उद्देश्य यह है कि यह भारतीयों को अपने घर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए प्रेरित करेगा। कार्यक्रम के उद्देश्यों को इस प्रकार रेखांकित किया गया है कि झंडे के साथ हमारा संबंध हमेशा व्यक्तिगत से अधिक संस्थागत और औपचारिक किस्म का रहा है। स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में एक राष्ट्र के रूप में अगर हमारा ध्वज सामूहिक रूप से हर घर पर मौजूद होगा, तो न केवल तिरंगे से हमारा व्यक्तिगत संबंध बनता है, बल्कि राष्ट्र-निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक भी बन जाता है. इस अभियान का उद्देश्य लोगों के दिलों में देशप्रेम और अपने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना।

13 मई 2022 को केन्द्रीय कैबिनेट सचिव ने ‘हर घर तिरंगा’ अभियान से जुड़े सचिवों की समिति की बैठक की अध्यक्षता की और कार्यक्रम का सफल कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए किए जाने वाले काम की रूपरेखा तैयार की। इसके बाद संस्कृति मंत्रालय के सचिव ने इस संबंध में एक परिपत्र जारी किया और उनसे 31 मई 2022 तक कार्य योजना प्रस्तुत करने का अनुरोध किया। कार्यक्रम का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए परिपत्र में ये सुझाव दिये गये- आपके प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आपके मंत्रालय/विभाग के सार्वजनिक उपक्रमों, अधीनस्थ संगठनों, स्वयं सहायता समूहों, नागरिक समाज संगठनों आदि और उनके परिवारों के सभी कर्मचारियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करें। कॉर्पोरेट और निजी संगठनों को भी, जहां भी संभव हो, सीएसआर संसाधनों सहित सभी को भाग लेने और अपना योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करें। मंत्रालय/विभाग के अलावा सोशल मीडिया हैंडलों के जरिये तथा वेबसाइटों का उपयोग करके जागरूकता पैदा करें।

कार्यक्रम के संबंध में जानकारी संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट https://amritmahotsav.nic.in/har-ghar-tiranga.htm पर उपलब्ध है। सोशल मीडिया के फीड्स, वेबसाइट पर विभिन्न कैटेगरीज में अपलोड किये जाते हैं जैसे मोमेंट्स विद तिरंगा, जानिए अपना तिरंगा और क्या आप जानते हैं आदि।

सोशल मीडिया फीड्स के मुताबिक भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को वर्तमान स्वरूप तक आने के लिए वर्षों की विकास-यात्रा से गुजरना पड़ा है। क्या आप जानते हैं कि राष्ट्रीय ध्वज फहराने का सबसे पहला ज्ञात रिकॉर्ड 7 अगस्त 1906 का है? श्याम कृष्ण वर्मा, मैडम भीकाजी काम और सावरकर ने वर्ष 1907 में ध्वज का नया संस्करण तैयार किया। उस समय उसके डिजाइन के साथ रंगों में भी परिवर्तन किया गया था. भीकाजी कामा स्वयं ध्वज के सह-डिजाइनर थे। ध्वज में 8 कमल 8 प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते थे और 3 धारियां भारत के सभी धर्मों के बीच एकता का प्रतिनिधित्व करती थीं।

तिरंगे के ठीक बीच में वंदे मातरम शब्द भी थे। देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का मूल डिज़ाइन आंध्र प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वैंकया द्वारा डिजाइन किया गया था। वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और उनके कहने पर ही उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन किया था। अंग्रेजों से मुक्त हुई अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की धरती पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले पहले व्यक्ति नेताजी बने। यह दुर्लभ दृश्य 30 दिसंबर 1943 को पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना ग्राउंड में आयोजित ध्वजारोहण समारोह में उपस्थित हुआ था। क्या आप जानते हैं कि जुलाई 1947 में ध्वज समिति ने अशोक के धर्म चक्र को ध्वज पर प्रतीक के रूप में इसलिए चुना था कि उस समय तक उनके दिमाग में आने वाले सभी चक्रों में से ‘सारनाथ चक्र’ सर्वाधिक आकर्षक और कलात्मक था। हमारा झंडा भारत में स्टैण्डर्डाइजेशन प्रक्रिया की शुरुआत का प्रतीक है। इस प्रक्रिया के अनुरूप कॉटन खादी को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के लिए मानक विशिष्टता माना गया.


देश का इतिहास जानने वाला कोई भी व्यक्ति इन सोशल मीडिया फीड्स पर एक सरसरी नजर डाले, तो उसे पता चलेगा कि सोशल मीडिया, देश का नेतृत्व करते समय भारत के राष्ट्रीय ध्वज को आकार देने में गांधी जी की भूमिका, खासकर झंडे के लिए खादी का प्रयोग करने के उनके आग्रह को उजागर करने में विफल रहा। असल में वे गांधी जी ही थे, जिन्हें भारत के राष्ट्रीय ध्वज का प्रवर्तक कहा जा सकता है. जब भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली, तो गांधी जी द्वारा स्वीकृत झंडे के संशोधित संस्करण को मंजूरी मिली। यह ध्वज हमारे स्वतंत्रता संग्राम का अद्वितीय प्रतीक था, गांधी जी ने इसका इस्तेमाल लोगों को एकजुट करने वाली शक्ति के रूप में किया, इसके लिए लोग हर तरह का दर्द और पीड़ा झेलने के लिए तैयार थे।

यदि हम अपने राष्ट्रीय ध्वज के वास्तविक इतिहास को दर्ज नहीं करते हैं, तो यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय ध्वज के नीचे इकट्ठा होकर लड़ने वाले देशभक्तों के साथ घोर अन्याय होगा। गांधी जी का कहना था कि खादी और झंडे को एकदूसरे से अलग नहीं किया जा सकता. उन्होंने चेतावनी दी थी कि वह खादी के अलावा किसी और कपड़े से बने ध्वज को सलामी देने से इंकार कर देंगे, चाहे वह कितना भी कलात्मक ढंग से क्यों न बना हो। यदि इस अभियान का उद्देश्य लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाना और राष्ट्रीय ध्वज के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है, तो सरकार को इस तथ्य को उजागर करना चाहिए कि तिरंगा इस देश के स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न अंग था और खादी राष्ट्रीय ध्वज का हृदय और आत्मा है।

संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक अन्य वेबसाइट https://harghartirang.com/ निर्माणाधीन है। इसमें कहा गया है कि तिरंगा झंडा हर भारतीय के लिए गौरव का प्रतीक है। यह राष्ट्रीय अखंडता का प्रतिनिधित्व करता है और हर भारतीय की आशाओं व आकांक्षाओं को दर्शाता है. यह वेबसाइट लोगों से तिरंगे के साथ सेल्फी अपलोड करने का आवाहन भी करता है। मंत्रालय ने इस साइट के माध्यम से झंडे खरीदना और उपहार देना शुरू करने की भी योजना बनाई है। अगर सरकार इस देश के लोगों को एकजुट करना चाहती है और उनमें देशभक्ति की भावना पैदा करना चाहती है, तो उसे गृह मंत्रालय (लोक अनुभाग) के 30 दिसंबर, 2021 के आदेश को वापस लेना चाहिए, जिसके जरिये भारत की ध्वज संहिता में, राष्ट्रीय ध्वज के लिए मशीन से बने पोलिएस्टर के कपड़े का इस्तेमाल करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

खादी हमारे स्वतंत्रता संग्राम का ताना-बाना और भारत का गौरव रहा है। यह अहिंसा का प्रतीक था और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता था, इसलिए सरकार को पॉलिएस्टर मशीन से बने झंडों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। यह आत्मानिर्भर भारत की स्वदेशी की भावना के भी खिलाफ है, जिसका प्रचार करने के लिए सरकार ने काफी धन खर्च किया है। भारत के संस्कृति मंत्रालय को अपनी नई वेबसाइट के जरिए मशीन से बने पॉलिएस्टर के झंडे नहीं बेचने चाहिए।

विभिन्न सरकारी विभाग, स्वतंत्रता सप्ताह (11 से 17 अगस्त 2022) के दौरान हर घर में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए ‘हर घर तिरंगा’ अभियान की दिशा में कमर कस रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और अन्य निकायों ने इस संबंध में छात्रों और युवाओं को लक्षित करते हुए सर्कुलर जारी किए हैं। ‘हर घर खादी तिरंगा’ का आह्वान करने का यह सही समय है।

खादी का झंडा देशभक्ति की भावना को जगाएगा और अमृत महोत्सव को और अधिक सार्थक व अनूठा बनायेगा। देशभक्ति की भावना से संचालित भारत के लोग अपनी स्वतंत्रता के उत्सव के दौरान दूसरे देशों से आयातित मशीनों से बने पॉलिएस्टर के झंडे का उपयोग करने और इसे अपने घरों पर फहराने की बात सोच भी नहीं सकते। अगर हम इस तरह के कृत्य करते हैं, तो इस देश के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की आत्मा को कभी शांति नहीं मिलेगी। अपने झंडे के लिए मशीन से बने पॉलिएस्टर कपड़े का उपयोग करके हम उन कॉरपोरेट्स का समर्थन कर रहे हैं, जो खादी के झंडे के उत्पादन में लगे गरीबों की आजीविका छीन रहे हैं। क्या हम भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाते हुए खादी के क्षेत्र में काम कर रहे गरीबों के कल्याण को भूल सकते हैं?

-सिबी के. जोसेफ

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