नफ़रत के विष को शांत करना है- आशा बोथरा

सेवा ग्राम आश्रम प्रतिष्ठान की नयी अध्यक्ष आशा बोथरा का कहना है कि सेवाग्राम आश्रम की वैश्विक ख्याति के मद्देनजर इस स्थान से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का सदुपयोग हमें समाज में घोले जा रहे नफरत के विष को शांत करने में करना है. सेवाग्राम की पुण्यभूमि उन सभी को सन्मति दे, जो समाज को विषाक्त कर रहे हैं और उन सबको शक्ति दे, जो बापू के दिए मूल्यों के साथ इस विष वमन के खिलाफ संघर्ष में खड़े हैं. हमारी कोशिश है कि समाज में समता, बन्धुत्व और न्याय की परिपाटी बनी रहे, संमृद्ध होती रहे. उनसे बातचीत की है प्रेम प्रकाश ने.

प्रश्न- देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अंतिम तपःस्थली रहे ऐतिहासिक सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान के अध्यक्ष के तौर पर आपको बड़ी जिम्मेदारी मिली है. आप कैसा महसूस कर रही हैं? आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या है?

उत्तर- बापू के बाद सेवाग्राम हमारे लिए ही नहीं, सभी देशवासियों के लिए भी एक प्रेरणास्थल की तरह है। देश या दुनिया से यहाँ आने वाले जो लोग भी हैं, वे भले टूरिज्म करने आते हों, पर प्रेरणा भी लेकर जाते हैं. इस तीर्थ की यह रवायत बनी रहे, यह सचमुच बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे यह दायित्व पाकर ख़ुशी भी हो रही है और दायित्वबोध भी. मेरी कोशिश होगी कि गांधी जी के विचार और उनके दिए एकादश व्रतों को लेकर जो साथी, जो संस्थाएं जी जान से जुटी हुई हैं, हम उनको साथ लेकर चलें. प्रेरणा के साथ साथ सामूहिकता का यह सन्देश भी बाहर जाना चाहिए. यह स्थल चूँकि अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का केंद्र है और बापू की भी एक वैश्विक स्वीकृति है, इसलिए इस स्थान से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का सदुपयोग हमें आज समाज में घोले जा रहे नफरत के विष को शांत करने में करना है. सेवाग्राम की पुण्यभूमि उन सभी को सन्मति दे जो समाज को विषाक्त कर रहे हैं और उन सबको शक्ति दे, जो बापू के दिए मूल्यों के साथ इस विष वमन के खिलाफ संघर्ष में खड़े हैं. हमारी कोशिश है कि समाज में समता, बन्धुत्व और न्याय की परिपाटी बनी रहे, संमृद्ध होती रहे.

मेरी कोशिश होगी कि गांधी जी के विचार और उनके दिए एकादश व्रतों को लेकर जो साथी, जो संस्थाएं जी जान से जुटी हुई हैं, हम उनको साथ लेकर चलें. प्रेरणा के साथ साथ सामूहिकता का यह सन्देश भी बाहर जाना चाहिए.

प्रश्न- आश्रम परिसर और उसके आसपास के वातावरण में जिस प्रेरणा की बात आप कर रही हैं, उसे बनाये रखने के लिए या उसे और सघन करने के लिए सेवाग्राम प्रतिष्ठान के अध्यक्ष के तौर पर आपके मन में क्या योजनाएं हैं? इस विषय में आपका चिंतन, आपकी प्लानिंग क्या होगी?

उत्तर- आश्रम परिसर में चरखा घर और पुस्तकालय को तो डेवलप करना ही पड़ेगा. देश के अंदर से भी और देश के बाहर से भी हर साल जो लाखों लोग बापू और उनके योगदान पर शोध आदि करने के लिए आते हैं, उन्हें वैसा सुविधाजनक माहौल देना हमारी जिम्मेदारी है. इस क्षेत्र में ही नहीं, देश भर में सक्रियता से काम कर रही गांधी और विनोबा प्रणीत संस्थाओं के साथ बैठकर आगामी कार्ययोजना पर गम्भीरता से मंथन किया जाएगा.जितना भी सहमना और सैमवैचारिक लोग हैं, उन सबको इस काम से भौतिक और वैचारिक रूप से जोड़ा जाएगा, ताकि सही मायने में सेवाग्राम से जय जगत का सन्देश दुनिया को जाए.

प्रश्न- पिछले दिनों कुछ ऐसे अप्रिय विवाद हुए हैं कि देश के वीवीआईपीज़ के दौरों के समय आश्रम की मर्यादा और प्रतिष्ठा को आंच पहुंची, क्योंकि तब बापू का वैचारिक और आश्रम का आध्यात्मिक प्रोटोकाल एक तरफ रखकर उन वीवीआइपीज़ के सरकारी प्रोटोकाल को वरीयता दी गयी. ऐसे प्रकरणों पर आप क्या सोचती हैं? ऐसे हालात से आप कैसे निपटेंगी?

उत्तर- आश्रम की पवित्र परम्पराओं और मर्यादाओं का निर्वहन वैसे ही होगा, जैसे होना चाहिए.गाँधी जी के समय का दृश्य दूसरा था. उनके संघर्ष राजनैतिक मोर्चों पर भी थे, इसके बावजूद राजनीतिक लोगों के आगमन पर आश्रम के नियम ही हमेशा उपर रहे. अब तो वः बात भी नहीं है. हमारे राजनीतिक नहीं, अब केवल सामाजिक और आध्यात्मिक मोर्चे हैं, हम किसी के व्यक्तिगत या सरकारी प्रोटोकॉल से नहीं बंधे हैं. आश्रम के नियम तब भी व्यक्ति से ऊपर थे, आज भी व्यक्ति से ऊपर हैं. नवाचार और परम्परा ये दोनों ही साथ साथ चलते हैं. इसलिए बदलते समय के साथ कुछ परिवर्तन भी हों तो हों, पर इस पुण्य भूमि की मौलिकता नहीं जानी चाहिए.

प्रश्न- आश्रम परिसर के बाहर अबतक खाली पड़ी रही जमीनों पर काफी निर्माण हो रहा है और ज़ाहिर है, इन निर्माणों में गांधियन मूल्यों का निर्वाह नहीं हो रहा है. हद तो यह कि इनमे से कई निर्माण सरकारी स्तर पर हो रहे हैं. इन पर आपका क्या नजरिया रहने वाला है? ये निर्माण रुकेंगे या जारी रहेंगे?

उत्तर- असल में गांधी-150 केदौर में ऐसे कई निर्माण हुए हैं. और यह पूर्व के लोगों का निर्णय रहा है. इसमें ज्यादा हस्तक्षेप करना ठीक नहीं होगा. अब जो निर्माण हो गये, या चल रहे हैं, उनका निर्वाह तो करना पड़ेगा. हाँ यह जरूर है कि सरकार की भूमिका खत्म की जायेगी. इन निर्माणों में चलने वाली परियोजनाओं, कार्यक्रमों के संदर्भ में सरकार पर कोई निर्भरता नहीं रहेगी. यह स्व निर्भरता से होगा और स्वनिर्भरता जन सहभागिता से आएगी. इसके और भी रास्ते तलाश किये जायेंगे. साध्य और साधन दोनों शुद्ध रखने के हर संभव प्रयत्न किये जायेंगे.

प्रश्न- सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान के अध्यक्ष के बतौर आपकी देश के गांधीजनों से क्या अपेक्षाएं हैं और आपकी तरफ से उनके लिए क्या संदेश है?

उत्तर- मेरे लिए तो हर वह व्यक्ति गांधीजन है, गांधी के आचार-विचार में जिसकी आस्था हो. मैं तो कहती हूँ इस देश के हर नागरिक को गांधीजन बनना चाहिए. ग्राम स्वराज्य की परिकल्पना की तरह ही नगर स्वराज्य की अवधारणा पर काम करना होगा. हम अपने सभी समानधर्मा साथियों से यही चाहेंगे कि देश का यह वातावरण बदले, जिसमे गाँवों का पलायन शहरों की और हो रहा है. हमने लॉकडाउन के दौरान शहरों से पैदल अपने गांवों को लौटते श्रमिकों के वे भयावह चित्र देखे हैं. अब वह स्थिति कभी न आये, हमें अपने-अपने क्षेत्रों में इसके लिए काम करना पड़ेगा. स्थानीय कच्चा माल, वहां की खेती आदि में वैज्ञानिक प्रयोग और गांधियन अर्थशास्त्र के प्रयोग करने चाहिए. अपने-अपने क्षेत्रों को समर्थ बनाना चाहिए. उर्वरकों से बंजर होती खेती को बचाना चाहिए. अपनी देसी खादों पर निर्भरता बढ़ानी चाहिए. जो बच्चे खेती के काम से भागना चाहते हैं, उनसे बातचीत की जानी चाहिए. जिनके पास जमीन नहीं है, उसके लिए भूदान की जमीनें पड़ी हुई हैं, उनका अच्छे से वितरण होना चाहिए.

मेरे लिए तो हर वह व्यक्ति गांधीजन है, गांधी के आचार-विचार में जिसकी आस्था हो. मैं तो कहती हूँ इस देश के हर नागरिक को गांधीजन बनना चाहिए.

प्रश्न- आपके साथ हुई यह बातचीत सर्वोदय जगत में प्रकाशित होगी. सर्वोदय जगत के बारे में कुछ कहना चाहेंगी आप?

उत्तर- जी हाँ, सर्वोदय जगत पहले से बहुत अच्छा हो गया है. पठनीय तो है ही, अब नये में तो यह संदर्भ सामग्री के लिए भी संग्रहणीय हो गया है. जो लेख और चिन्तन आजकल आपलोग हम तक पहुंचा रहे हैं, वह उतनी ही सरल भाषा में अगर आम लोगों तक पहुंचा सकें, तो मनुष्यता का भला होगा. फिर तो सर्वोदय जगत का हर पाठक गांधीजन होगा. क्यों नहीं होगा नहला, आप ही बताइए. जिसके पास सर्वोदय जगत है, उसके पास समझिये गांधीजन बनने की साधक सामग्री है. क्योंकि जैसा विचार हम पढ़ते हैं, वैसा ही क्रियात्मक परिवर्तन हममें होता है. तो लोगों का आचार और विचार बनाने को जो काम आजकल सर्वोदय जगत कर रहा है, उसके लिए आपकी पूरी टीम को बहुत बहुत साधुवाद देते हैं हम. आपलोग मेरी बधाई स्वीकार करें.

जिसके पास सर्वोदय जगत है, उसके पास समझिये गांधीजन बनने की साधक सामग्री है. क्योंकि जैसा विचार हम पढ़ते हैं, वैसा ही क्रियात्मक परिवर्तन हममें होता है. 

Co Editor Sarvodaya Jagat

One thought on “नफ़रत के विष को शांत करना है- आशा बोथरा

  1. जीवटता और समर्पण की धनी , सत्य, अहिंसा, प्रेम , करूणा और सेवा की पुरोधा आशा बोथरा जी के विचार
    निश्चय ही प्रेरणा स्तोत्र है..
    अभिनंदन और शुभकामनाएँ.
    जय जगत.

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