चंपारण में भूमि सत्याग्रह

चंपारण में 50 वर्षों से विस्थापित 40 परिवार, जो सड़क के किनारे वर्षों से बसे हैं, सरकार द्वारा परचा मिलने के 50 वर्ष बाद भी भूमि पर कब्जा हासिल करने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करते रहते हैं। प्रशासन के झूठे आश्वासनों से अजिज आकर परचाधारियों ने 11 नवंबर को सत्याग्रह करने की घोषणा की थी। इसकी सूचना प्रशासन को दे दी गयी थी। उसी घोषित कार्यक्रम के तहत निर्धारित दिन परचाधारियों ने लोक संघर्ष समिति के बैनर तले लगभग दर्जन भर भूखंडों पर शांतिपूर्वक कब्जा कर लिया। इस सत्याग्रह की कमान थामे लोक संघर्ष समिति के जिला संयोजक अमर राम ने बताया कि 24 जनवरी को हम समाहर्ता से मिले थे। समाहर्ता महोदय ने 3 माह के अंदर परचाधारियों को परचे वाली भूमि पर कब्जा दिलाने का आश्वासन दिया था, मगर 3 माह बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। तब हमलोगों ने लोक संघर्ष समिति के बैनर तले एक जून को योगापट्टी अंचल कार्यालय के समक्ष एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया। उसके बाद अंचलाधिकारी प्रियवंद कुमार ने परचाधारियों से बातचीत की। दखल दिलाने की बात कहकर उन्होंने धरना समाप्त कराया। बाद में यह धोखाधड़ी साबित हुई। लोक संघर्ष समिति के दो सदस्यों को जेल भेज दिया गया। इस बीच उक्त जमीन में से कई लोगों ने कुछ हिस्सा खरीद कर अपने-अपने मकान भी बना लिये हैं। कई प्लाट दूसरों के कब्जे में हैं। उस समय पुलिस प्रशासन विधि व्यवस्था में लगा रहा, ताकि कोई बड़ा विवाद या हंगामा न हो सके।‌ उन्होंने बताया कि लोक संघर्ष समिति के नेताओं को योगापट्टी थाने में बैठा कर उच्च अधिकारियों से बातचीत के बाद मामले में अग्रेतर कारवाई की जाएगी.


गौरतलब है कि देश के अलग अलग क्षेत्रों में गांधी, जेपी, लोहिया और आंबेडकर को अपना आदर्श मानने वाले समाजकर्मी उनके सपनों को साकार करने के लिए संघर्षरत हैं। चंपारण में भी बाढ़ कटाव से विस्थापितों और भूमिहीनों को भूमि पर कब्जा दिलाने के लिए दशकों से जारी संघर्ष में जेपी आंदोलन के सिपाही साथ हैं। इस दौरान सरकार उदासीन बनी रही। भ्रष्ट व अक्षम अफसरों के कारण गरीबों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वालों को झूठे मुकदमों में फंसा कर आंदोलन को कुचलने का प्रयास जारी रहा। लेकिन अब आंदोलनकारियों ने भी आरपार की लड़ाई लड़ने की ठान ली है। प्रशासन और संबद्ध अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वे सरकार के फैसले पर अमल करने में तत्परता बरतें। यह उनका कर्तव्य भी है। अन्यथा आंदोलन और तेज होगा, जिसका लाठी के बल पर दमन आसान नहीं होगा।

-सर्वोदय जगत डेस्क

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