8 साल का सत्याग्रह; 47% की सफलता; 3 करोड़ 60 लाख रुपये की वसूली

वर्धा में जारी है कपास किसानों का संघर्ष

2013-14 में सुनील टालाटुले ने करीब 400 किसानों से तक़रीबन 8 करोड़ रुपये मूल्य के 20 हजार क्विंटल कपास की खरीदी की. और बाद में सरकार की शह पर किसानों का पैसा चुकाने में आनाकानी करने लगा. पेश है, किसान अधिकार अभियान के साथियों द्वारा आठ साल से जारी सत्याग्रह की कहानी.

महाराष्ट्र के वर्धा जिले में एक तहसील है सेलू. सेलू स्थित सिंदी कृषि उपज मंडी के परवानाधारक व्यापारी हैं सुनील टालाटुले. वे हर वर्ष किसानों से कपास की खरीदारी किया करते थे. उन्होंने एक सिस्टम बना रखा था, जिसके मुताबिक पिछले 8-10 सालों से वे किसानों से उधारी पर कपास लेते थे और 4-6 महीने बाद यह उधारी चुकाते थे. सुनील टालाटुले आरएसएस के आदमी हैं. मोहन भागवत, नितिन गडकरी, देवेंद्र फडणवीस आदि के साथ उनके पारिवारिक संबंध हैं. उनके पिताजी आरएसएस के मुख्य प्रशिक्षक थे. ऐसी भी जानकारी मिलती है कि 1925 में आरएसएस के गठन के समय की शुरुआती बैठकें इन्हीं के घर नागपुर में हुआ करती थीं.

ऐसे में जब मई 2014 में केंद्र में और नवंबर 2014 में महाराष्ट्र में आरएसएस प्रणीत भारतीय जनता पार्टी की सरकारें बनीं, तो व्यापारी सुनील टालाटुले के नीयत में गड़बड़ी शुरू हुई. 2013-14 में सुनील टालाटुले ने करीब 400 किसानों से तक़रीबन 8 करोड़ रूपये मूल्य के 20 हजार क्विंटल कपास की खरीदी की. आठ-दस माह बीतने के बाद भी जब वे पैसा देने में टालमटोल करते रहे, तो धीरे-धीरे लोगों की परेशानी बढ़ी. दिसम्बर 2014 में जब किसान सामूहिक रूप से अपने पैसों की मांग करने लगे, तो सुनील टालाटुले ने व्यापार में नुकसान होने की वजह बताकर पैसा देने में असमर्थता व्यक्त की.

इन 400 बेहाल किसानों ने अपनी उपज की कीमत दिलाने के लिए कृषि उपज मंडी के संचालकों से विनती की. मंडी के संचालकों ने भी किसानों को यह कहकर लौटा दिया कि यह हमारी जिम्मेवारी नहीं है. इसके बाद किसान आन्दोलन करने का मन बनाने लगा और उन्होंने ‘किसान अधिकार अभियान’ से सहयोग की मांग की. अभियान के अध्यक्ष सुदामा पवार और मुख्य प्रेरक अविनाश काकड़े ने पहल की और इसके लिए सदस्यों व पदाधिकारियों की बैठक बुलाई. इसी बैठक में तय हुआ कि कपास किसानों का यह संघर्ष किसान अधिकार अभियान के नेतृत्व में चलेगा.

कृषि उपज मंडी का घेराव
व्यापारी सुनील टालाटुले सिंदी कृषि उपज मंडी से मिले परवाने के मार्फत मंडी की रशीद पर ही किसानों से खरीद फरोक्त करता है, इसलिए मंडी संचालकों पर भी यह जिम्मेवारी तो आती है कि वे अपने पंजीकृत व्यापारी को किसानों का भुगतान करने के लिए बाध्य करें. इसी मांग को लेकर किसानों ने सबसे पहले मंडी में धरना दिया और संचालकों का घेराव किया. दो दिन लगातार चले धरने के बाद कृषि उपज मंडी के मुख्य संचालक ने आंदोलित किसानों का साथ देने का वचन दिया और आगे से राज्य सरकार से किसानों को मदद दिलवाने पर भी सहमति जताई.

आरएसएस के नागपुर मुख्यालय पर मोर्चा
जब किसानों के ध्यान में यह बात आयी को व्यापारी को राज्य सरकार से शह मिल रही है, तब सभी ने तय किया कि अब अगला धावा नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय पर किया जायेगा. वर्धा जिले से सैकड़ों किसान अपने-अपने संसाधनों से सुबह 10 बजे नागपुर पहुंचे. इस आन्दोलन की सूचना पुलिस प्रशासन को हो गयी थी. उन्होंने जगह-जगह किसानों का रास्ता बाधित करने का काम शुरू किया. इसके बावजूद 125-150 किसान नागपुर पहुंच गये और इकट्ठा होकर संघ मुख्यालय पर धावा बोल दिया. संघ समर्थित भ्रष्ट लोगों द्वारा किसानों की आर्थिक लूट का मामला लोगों की जानकारी में लाया गया. पुलिस ने बीच में रोके गये किसानों को नागपुर से 20-25 किलोमीटर दूर वीरान जगह पर ले जाकर नजरबंद कर दिया और रात में 10 बजे फिर से पुलिस की गाड़ियों में बिठाकर नागपुर के संविधान चौक पर लाकर छोड़ दिया था.

13 दिवसीय आमरण अनशन
जब रात के अंधेरे में बाबासाहब आंबेडकर प्रतिमा के सामने संविधान चौक नागपुर में हमें छोड़ दिया गया, तो हमने अपना सत्याग्रह आंदोलन वहीं से करने का तय किया. हमने वहीं से घोषणा की कि जब तक किसानों के इस सवाल का हल राज्य सरकार नहीं निकालती, तब-तक हम यहां से हटेंगे नहीं और अन्न ग्रहण भी नहीं करेंगे. हमने केवल पानी पीकर रहने का तय किया. उस निर्णय से सभी साथियों ने सहमति जतायी. शुरू के दो दिन अनेक साथियों ने खाना नहीं खाया, लेकिन बाद में ज्यादा तर साथी भूख दबा नहीं सके. तीन दिन सत्याग्रह के बाद उपवास करने वाले पांच साथी शेष रह गये, और इन पाँचों ने सरकार द्वारा किसानों को न्याय देने की हामी भरने तक 13 दिन केवल पानी पर रहकर अनशन किया था. शुरू के दिनों में राज्य सरकार ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन 7-8 दिन होने के बाद सरकार पर दबाव बढ़ने लगा तो सरकार के अनेक प्रतिनिधियों, स्थानीय मंत्रियों और लोकसभा सदस्यों के माध्यम से चर्चा की शुरुआत हुई. अनशन के 11वें दिन सरकार ने हमारे 3 प्रतिनिधियों को बुलाकर जिलाधिकारी वर्धा और कृषि मंडी के सभापति के साथ मुंबई स्थित राजस्व विभाग के मंत्री के सामने बैठक करायी. निर्णय हुआ कि आने वाले 3 महीनों के भीतर व्यापारी सुनील टालाटुले अगर किसानों का पैसा नहीं देते हैं, तो उनकी संपत्ति की नीलामी करके किसानों को कपास का पैसा दिया जाय. इस निर्णय के बाद हमने सत्याग्रह वापस लिया और 13 दिन के बाद नींबू-पानी लेकर उपवास छोड़ा.

अगले तीन महीने तक बहुत ही धीमी गति से प्रक्रिया चलती रही. 3 माह के बाद आन्दोलन को गतिमान करने के लिए एक बार फिर हम मोर्चा लेकर जिलाधिकारी कार्यालय, वर्धा गये. सैकड़ों किसानों ने जिलाधिकारी कार्यालय में ही रात गुजारी. दूसरे दिन जब प्रशासन द्वारा प्रक्रिया को जल्द-से-जल्द निपटाने का आश्वासन दिया गया, तब एक बार फिर हमने अपना आन्दोलन वापस लिया.

इस दरम्यान अपनी संपत्ति की नीलामी रोकने के लिए सुनील टालाटुले हाईकोर्ट चले गये. वहां से कार्रवाई को स्थगित करने की नोटिस जारी की गयी. अब सरकार के साथ तीसरे पक्ष के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराके हमने किसानों की लूट की बात हाईकोर्ट के सामने रखने की कोशिश की. हाईकोर्ट के कुछ वकीलों ने आगे आकर हमें मदद दी. इसी दरम्यान हमें एहसास हुआ कि राज्य सरकार भी कुछ बचने की कोशिश कर रही है. वर्धा के स्थानीय विधायक के माध्यम से 12-13 किसानों का एक शिष्ट मंडल लेकर हम सब मंत्रालय (मुंबई) चले गये. वहां काम की गति कमजोर होते देखकर मन दुखी हुआ. किसानों ने वहीं पर विधायक निवास में ही अन्न त्याग आन्दोलन शुरू कर दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि शासन के लोगों में कुछ हरकत हुई. भाजपा के विधायकों ने हमें इस पर काफी धमकाया, पर हमने अन्न-त्याग आंदोलन का कारण उन्हें समझाया.

किसान अधिकार अभियान के आन्दोलन से कपास उत्पादक पीड़ित किसानों को अलग करने की कोशिशें भी स्थानीय विधायक ने खूब की. इसमें विधायक को कुछ सफलता भी हासिल हुई. कुछ किसान हमसे अलग हो भी गए. लेकिन कुछ समय बाद उन्हें इसका अहसास हुआ और उन किसानों का मोहभंग हो गया. फिर से लड़ाई नए सिरे से शुरू की गयी.

इस बीच मुंबई उच्च न्यायालय का निर्णय भी किसानों के पक्ष में आया. न्यायालय ने उक्त व्यापारी, कृषि उपज मंडी समिति व राज्य सरकार पर कपास उत्पादक किसानों की रकम लौटाने की जिम्मेदारी डालते हुए 400 किसानों के कपास की रकम का भुगतान करने का आदेश दिया. व्यापारी सुनील टालाटुले की संपत्ति की नीलामी करके यह रकम वसूल करने की अनुमति न्यायालय ने दे दी.

2018 में सुनील टालाटुले को दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी. मामला इस वजह से फिर से लंबित हो गया. फिर से अदालती लड़ाई शुरू हो गयी. न्यायालय ने मृत व्यक्ति के प्रतिनिधि उनकी पत्नी से रकम वसूलने का आदेश दिया और कहा कि भुगतान न करने की स्थिति में संपत्ति की नीलामी का रास्ता खुला रहेगा.

नवंबर 2021 में जिलाधिकारी वर्धा को नीलामी का आदेश निकालना था. लेकिन सुनील टालाटुले के प्रतिनिधियों ने इस नीलामी को रोकने के लिए एक और चाल चली व जिलाधिकारी के पास दूसरी दलीलें पेश कीं. इस दरम्यान जो लोग संपत्ति खरीदने को तैयार थे, उन्हें डराकर भगाया गया, ताकि नीलामी के समय कोई बोली ही नहीं लगाए और नीलामी टल जाय. एक बार फिर किसानों की तरफ से जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना आंदोलन करके उनको मामले की गंभीरता समझाने की कोशिश की गयी. अंतत: जनवरी 2022 में इस मामले में अंतिम आदेश जिलाधिकारी वर्धा द्वारा दिया गया और संपत्ति की नीलामी की गयी.

इस अनथक संघर्ष से निकलकर कुल 3 करोड़ 60 लाख रूपये किसान साथियों को मिले. मतलब कुल राशि की 47 प्रतिशत रकम प्राप्त हुई. वर्ष 2015-16 में शुरू हुए इस संघर्ष की पहली महत्वपूर्ण सफलता फरवरी 2022 में आठ साल बाद मिली. प्राप्त 47 प्रतिशत रकम सभी सहभागी कपास उत्पादक किसानों के बीच उनकी कुल बकाया रकम के अनुपात में बांटी गयी. शेष रकम और ब्याज के लिए राज्य सरकार तथा कृषि उपज मंडी से लड़ाई अभी जारी है. न्यायालय के हस्तक्षेप की जरूरत भी पड़ेगी.

-मोहन सोनुरकर 

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