दूसरा पड़ाव
सोमवार की सुबह बेहद खास थी, यात्रियों ने सबसे पहले तिलक महाराज की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दर्शन करने के बाद बाबा साहब आंबेडकर की प्रतिमा पर पहुंचे, वहां माल्यार्पण और दर्शन के उपरांत गांधी जी की प्रतिमा पर पहुंचे, यह बेहद ही खास और रोमांचकारी अनुभव रहा, जब देश के तीन तीन महापुरुषों की अदृश्य उपस्थिति से प्रेरणा और शक्ति लेकर यात्रियों का संकल्प और मजबूत हुआ.
यहाँ भी भारी संख्या में लोग जुटे. उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि 73 वर्ष पूर्व एक हत्यारे की एक गोली ने महात्मा गांधी की आवाज को सदा के लिए खामोश कर दिया था। उनके पार्थिव शरीर को अग्निे को समर्पित कर दिया गया था, परन्तु उस संदेश को नहीं मिटाया जा सका, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन जिया और शहीद हुए। आज उनकी विरासत को बचाने का हमारा सामूहिक प्रयत्न अवश्य फलीभूत होगा.
एक ऐसी विभूति, जिसने शांति और अहिंसा का उपदेश दिया, एक ऐसे विश्व में उसकी प्रासंगिकता बढ़ गयी है, जो ऐसे हथियारों से भरा हुआ है, जो हमारे इस ग्रह को 100 बार नष्ट कर सकते हैं. एक ऐसा मनुष्य जिसने घृणा को प्रेम से जीतना चाहा, वह ऐसे विश्व में क्यों न प्रासंगिक हो, जहां आतंकवाद वैश्विक नासूर बन गया है. एक ऐसा मनुष्य, जिसने गरीबों की वेशभूषा सम्मान के प्रतीक के रूप में अपनाई, आज उसकी विरासत की रक्षा करना विश्व का आपद्धर्म हो गया है.
महात्मां गांधी हमेशा ही उस विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे, जिसमें हम रहते हैं। यही वे बातें थीं, जिन पर मार्टिन लूथर किंग का अटूट विश्वास था और मैं उद्धृत करता हूँ कि गांधी अवश्याम्भावी थे. यदि मानवता को प्रगति करनी है, तो गांधी के मार्ग से बचा नहीं जा सकता। उन्होंने अपना जीवन जिया, विचार किया और उसी के हिसाब से कार्य किया, जो शांति एवं सामंजस्य के एक विश्व की दिशा में उभरती मानवता का आदर्श था। हम गांधी जी को अपने जोखिम पर ही नजरअंदाज कर सकते हैं।
साबरमती सन्देश यात्रा महाराष्ट्र राज्य के अकोला से निकलकर खामगांव पहुंची। शहर के बाहर ही सभी लोग बस से उतरकर हाथ में बैनर लिए पैदल मार्च करते हुए नारे और गीत के साथ तिलक चौक पहुंचे. वहां पर महापुरुष लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया व उनकी मूर्ति की सफाई की गई। इसके बाद संविधान चौक पहुंचकर गांधी बगीचा में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पुतले को बच्चों के हाथों से माल्यार्पण कराया गया। यहाँ स्थानीय साथियों व तरुणाई फाउंडेशन द्वारा यात्रियों को स्वल्पाहार कराया गया. वहां से स्वर्गीय भास्कर राव शिंगणे कॉलेज के लिए प्रस्थान हुआ।
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