सामाजिक कार्यकर्ता और संविधान के अध्येता सचिन कुमार जैन की नयी किताब ‘भारत का संविधान: महत्वपूर्ण तथ्य और तर्क’ एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है, जो बहुत करीने से यह दर्शाने में कामयाब होती है कि हमारे संविधान का निर्माण किन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों के दौरान किया गया. किताब की शुरुआत में भारतीय संविधान के निर्माण के समय के तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हालात की पड़ताल की गयी है. इन तथ्यों को देख कर हैरानी होती है कि कैसे हमारे संविधान निर्माता अराजकता, अभाव और उथल-पुथल भरे उस दौर में एक ऐसा दस्तावेज बनाने में कामयाब हो सके, जो आज भी हमारे लिए भविष्य के सपनों जैसा है. जब संविधान बन रहा था तो उस समय एक भारतीय की प्रतिदिन की औसत आय मात्र 63 पैसा थी, देश अनेक राजवाड़ों में बंटा हुआ था और गंभीर खाद्य संकट से जूझ रहा था, पूरे समाज और व्यवस्था में सामंतवाद व्याप्त था, हिन्दुस्तान सांप्रदायिकता के आग में झुलस रहा था, धर्म के नाम पर देश का विभाजन हो रहा था. ऐसे माहौल में संविधान सभा के 250 से अधिक प्रतिनिधि भविष्य के भारत के लिए एक ऐसा आईन रच रहे थे, जो आगे चलकर व्यक्ति की स्वतंत्रता, समता, न्याय और बंधुत्व जैसे क्रांतिकारी मूल्यों के आधार पर देश और समाज की व्यवस्था का ब्लूप्रिंट होने वाला था.
इस पुस्तक में कुल 8 अध्याय हैं. पहले अध्याय में बहुत व्यवस्थित तरीके से बताया गया है कि किस प्रकार अंग्रेजों ने भारत का अपने मुताबिक संचालन करने के लिए 1773 से 1935 तक विभिन्न कानून और नियम बनाये, जिसमें विनियमन अधिनियम 1773 से लेकर भारत शासन अधिनियम 1935 तक शामिल हैं.
अध्याय 2 में संविधान बनने की राजनीतिक पृष्ठभूमि की चर्चा की गयी है. भारत की आजादी की लड़ाई और हमारे संविधान के निर्माण की प्रक्रिया एक दूसरे से बहुत गहरे जुड़े हैं. मिसाल के तौर पर भारत का संविधान विधेयक-1895 को भारत में संविधान बनाने की प्रक्रिया की बुनियादी पहल कहा जा सकता है.
अध्याय 3 में भारतीयों द्वारा खुद के लिए संविधान निर्माण की मांग और इसको लेकर किये गए प्रयासों को पेश किया गया है, जिसमें 18 मई 1927 को कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा रखी गयी नेहरू रिपोर्ट से लेकर जनवरी 1946 में बीएन राव द्वारा अविभाजित हिंदुस्तान के लिए प्रस्तावित किये गए नए संविधान की रुपरेखा का जिक्र किया गया है.
अध्याय 4 में 1946 में संविधान सभा के गठन से लेकर 24 जनवरी 1950 तक संविधान निर्माण की पूरी प्रक्रिया को सिलसिलेवार और तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है. इस अध्याय में कुछ रोचक जानकारियां भी दी गयी हैं. संविधान निर्माण को लेकर चली 165 दिनों की बैठकों में से 46 दिन तो इस बात पर ही चर्चा हुई कि हम किस तरह का संविधान बनाना चाहते हैं. जो लोग संविधान को भारत की आत्मा से कटा हुआ बताते हैं, उनके लिए भी इस अध्याय में रोचक जानकारी है कि हमारे संविधान के हर भाग पर शांति निकेतन के कलाकारों द्वारा चित्र उकेरे गये हैं, जो भारत के पांच हजार सालों के इतिहास को दर्शाते हैं.
अध्याय 5 में बताया गया है कि किस प्रकार स्वाधीनता से पहले भारत में लगभग 600 रियासतें थी और हमारे राष्ट्र निर्माताओं को इन्हें स्वतंत्र भारत में शामिल करने के लिए कैसी-कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
अध्याय 6 बेहद महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें हमारे संविधान निर्माताओं के मानस को पकड़ने की कोशिश की गयी है. यह अध्याय इस बात पर जोर देता है कि भारत के संविधान और इसमें दर्ज प्रावधानों के पीछे चली बहसों, तर्कों और सन्दर्भों को समझना जरुरी है. ये ध्यान रखना भी जरूरी है कि हमारे संविधान निर्माताओं के अलग-अलग पृष्ठभूमि के होने और उनके बीच चली लम्बी बहस-मुबाहिसों के बावजूद भारत का संविधान सर्वसम्मति से पारित हुआ था. इस अध्याय में बताया गया है कि कैसे संविधान का अनुछेद 32 महत्वपूर्ण है, जो मूलभूत अधिकारों को लागू करने और संरक्षण की व्यवस्था करता है, जिसको लेकर डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा था कि ये प्रावधान संविधान की आत्मा और ह्रदय है. इस अध्याय में समान नागरिक संहिता को लेकर चली बहसों को भी बहुत करीने से समेटा गया है.
अध्याय 7 में ये समझने की कोशिश की गयी है कि हमारे संविधान के मूल्य क्या हैं. दरअसल उद्देशिका ही हमारे संविधान के बुनियादी मूल्य हैं. ये एक तरह से आधुनिक भारत का विजन और संविधान का मूल विचार है.
अध्याय 8 में संविधान की उद्देशिका में दर्ज 11 शब्दों की सरल शब्दों में व्याख्या की गयी है. इसमें इन शब्दों से सम्बंधित मौजूदा समय के आंकड़ों और तथ्यों को भी प्रस्तुत किया गया है. पुस्तक के अंत में संविधान सुधारों पर डॉक्टर अम्बेडकर के विचार रखे गये हैं.
यह किताब संविधान की पृष्ठभूमि और इसके निर्माण की प्रक्रिया को समझने के लिए हिंदी में एक जरूरी दस्तावेज की तरह है, जो महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ-साथ संविधान के वजूद में आने के तर्कों को बहुत ही सटीकता के साथ प्रस्तुत करती है.
सचिन कुमार जैन पिछले कुछ सालों से संविधान पर निरंतर लिखते रहे हैं, इस कड़ी में इससे पूर्व उनकी तीन और प्रकाशित हो चुकी हैं. इस पुस्तक का प्रकाशन विकास संवाद प्रकाशन, भोपाल द्वारा किया गया है, जिसकी कीमत 250 रु है. इसे office@vssmp.org या फ़ोन 0755-4252789 के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है.
-जावेद अनीस
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