वाराणसी स्थित नवसाधना, तरना में राइज एंड एक्ट के तहत प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए ‘राष्ट्रीय एकता शांति व न्याय’ विषयक तीन दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत 26 मार्च को हुई, जिसमें प्रतिभागियों ने सामाजिक मुद्दों पर अपने लेख प्रस्तुत किये और संवैधानिक अधिकारों व उत्तरदायित्वों के प्रति लोगों को जागरूक किया। परिचय सत्र में आयोजक डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि गांधी, अंबेडकर, भगत सिंह व नेहरू जैसी हस्तियों ने कमजोर वर्गों की दशा सुधारने की वकालत की, जिससे स्वतंत्रता, बन्धुता, न्याय व समता के मूल्यों को ताकत मिली। हमें लिखने, पढ़ने, सीखने व प्रश्न करने की जरूरत है, तभीहम धरातल पर अपनी बात रख पाएंगे।
प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता साहित्यकार शिव कुमार पराग ने कहा कि आज सत्य को विस्थापित कर झूठ को स्थापित किया जा रहा है। जो चीज भौतिक नहीं है, उसे प्रसारित किया जा रहा है। आज लोकतंत्र खतरे में है। किसी भी तरह की आजादी नहीं है। आज गांधी के विचार नहीं, बल्कि उनके चश्मे को अपनाया जा रहा है और गांधी-अंबेडकर, गांधी-सुभाष, नेहरू-पटेल की काल्पनिक प्रतिद्वंद्विता के नाम पर लोगों को लड़ाया जा रहा है। संविधान को बचाये रखने के लिए आज भी गांधी साम्प्रदायिक ताकतों के लिए बड़ी चुनौती हैं।
लाल प्रकाश राही ने देश की आर्थिक नीतियों की चर्चा करते हुए कहा कि इसे भौतिक व आध्यात्मिक रूप से समझा जा सकता है। सुरेश कुमार अकेला ने कहा कि विकास की आंधी में आम आदमी लुट रहा है। गंभीर खतरों को जानने के लिए सिद्धांत, विचार व उत्तरदायित्व के निर्वहन की आवश्यकता है। इस अवसर पर प्रतिरोध की कविता कहने के लिए विख्यात कवि पराग ने लोगों के मनोभावों को व्यक्त करने वाली कुछ कविताएं सुनाकर गांधी पर उठ रहे सवालों पर निशाना साधा। सुरेश कुमार अकेला, नाहिदा आरिफ और लाल प्रकाश राही ने भी अपनी कविताएँ सुनायीं.शाम के सत्र में गांधी के मोहन से महात्मा बनने के जीवनवृत्त को कठपुतली मंचन के माध्यम से दिखाया गया।सत्र का संचालन हृदयानन्द शर्मा एवं आभार अर्शिया खान ने व्यक्त किया।
हमारे पूर्वजों ने जिस इतिहास को देखा, उस पर हमें गर्व है, लेकिन क्या हम वर्तमान दौर की साम्प्रदायिक राजनीति, नफरत, भेद और बुनियादी समस्याओं से दूर खड़े इस वक्त को आने वाले पीढ़ियों से गर्व के साथ बता सकेंगे? यह सवाल कार्यशाला के दूसरे दिन डॉ. संजय श्रीवास्तव ने खड़ा किया। उन्होंने देश की साझी संस्कृति व साझी विरासत की चर्चा करते हुए कहा कि देश को वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ाने की जरूरत है और इसके लिए हमें माहौल को समझना होगा। आलोचना के बजाय सम्प्रदायवाद, निजीकरण और बाजारवाद के खिलाफ आवाज उठानी होगी। इसके लिए दूसरे पुनर्जागरण की जमीन तैयार करनी होगी। मुझे उम्मीद है कि एक न एक दिन सबेरा होगा। आयोजक डॉ.मोहम्मद आरिफ ने कहा कि फासीवादी ताकतों द्वारा साझी विरासत व संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे हैं। वक्त ऐसा चल रहा है कि हमें आपसी अंतर्विरोधों को दूर रखकर सत्य के लिए संघर्ष करना होगा, तभी राष्ट्रीय एकता, शांति एवं न्याय का सपना साकार होगा।
इसी क्रम में डॉ. अंबेडकर के दर्शन व विचारों की चर्चा करते हुए सुरेश कुमार अकेला और लाल प्रकाश राही ने कहा कि अंबेडकर ने हमेशा मानव जाति की भलाई की बात की। प्रतिभागी वीना भारती ने अंबेडकर, रामकृत, लालता प्रसाद व सुग्रीव यादव ने आदिवासियों, साधना यादव ने दलित समस्या, विकास मोदनवाल ने पंडित नेहरू, कमलेश कुशवाहा, संजू देवी व रणजीत कुमार ने साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता पर अपने अपने विचार रखे। इसके पश्चात ग्रुप चर्चा में प्रतिभागियों ने विभिन्न विषयों पर मंथन किया। शाम को प्रतिभागियों द्वारा निर्देशित एक नाट्य मंचन के माध्यम से वर्तमान भारत के चित्र को दर्शाने का प्रयास किया गया। सांस्कृतिक संध्या में सुरेश कुमार अकेला, लाल प्रकाश राही, नाहिदा आरिफ आदि ने सामाजिक बदलाव और राष्ट्रीय एकता सम्बन्धी गीतों से लोगों को जागरूक किया।
आजादी के बाद लम्बे अरसे तक सत्ता में रही कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियां लगातार पीछे जा रही हैं। अगर ये चेते होते और आम जनता का भला किया होता तो ये दल हाशिये पर नहीं होते और आज भाजपा सबसे बड़ी रूलिंग पार्टी नहीं होती. ये बाते कार्यशाला के तीसरे दिन प्रो. गोरख नाथ पाण्डेय ने कही। उन्होंने कहा कि आज लड़ाई किसी सामान्य संगठन से नहीं है। संविधान विरोधी ताकतों द्वारा आजादी की लड़ाई के इतिहास को राजनैतिक लाभ के लिए अलग अंदाज में पेश कर उसे साम्प्रदायिक रंग दिया जा रहा है। अभी कश्मीर फाइल्स सामने है, हो सकता है आने वाले चुनाव में देश के विभाजन की विभीषिका को साम्प्रदायिक ताकतें अलग तरीके से परोस सकती हैं। इन सबसे सावधान रहने की जरूरत है। नाहिदा आरिफ ने मीडिया का शाब्दिक अर्थ बताते हुए उसकी व्यापकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा आज का मीडिया अपनी भूमिका भूल चुका है। जनसरोकारों के सवालों से इतर वह पूंजीपतियों और राजनीतिक दलों का पैरोकार हो गया है। अगर सोशल मीडिया और छोटे छोटे अखबार न होते तो मजलूमों की आवाज लोगों तक नहीं पहुंच पाती।
चर्चा के क्रम में रामकिशोर चौहान ने साझी संस्कृति, साझी विरासत, हृदया नन्द शर्मा ने मीडिया की भूमिका व जिम्मेदारी तथा संतोष ने मौलिक अधिकारों पर अपनी बात रखी। कृष्ण भूषण ने आदिवासी, असलम ने भारतीय राज्य व धर्मनिरपेक्षता,हीरावती तथा अर्शिया ने गांधी, विनोद ने संविधान, शमा परवीन ने लोकतंत्र पर मंडराते खतरे और संजय सिंह ने भगत सिंह पर अपने लेख पढ़े। अंत में प्रतिभागियों ने आगे की कार्ययोजना पर चर्चा की। लाल प्रकाश राही ने प्रतिभागियों को रिपोर्टिंग के बारे में विधिवत जानकारी दी। तीनों दिन केविभिन्न सत्रों में हरिश्चंद बिन्द, राजाराम, राम किशोर चौहान, मनोज कुमार, संजय सिंह, नाहिदा आरिफ, संजू, असलम अंसारी, हीरावती, विनोद गौतम, शमा परवीन, रामकृत, अर्शिया खान, वीना भारती, रामकृत, लालता प्रसाद, सुग्रीव यादव, साधना यादव, विकास मोदनवाल, कमलेश कुशवाहा, संजू देवी, रणजीत कुमार, रामजन्म कुशवाहा, अब्दुल मजीद तथा अयोध्या प्रसाद आदि मौजूद रहे।
-डॉ मोहम्मद आरिफ
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