18 अप्रैल, 1951 का दिन था; जब बाबा को तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव में पहला भूदान मिला था। यों कहें कि भूदान गंगोत्री का जन्म हुआ था। भूदान की गंगा जैसे जैसे आगे बढ़ी, जनक्रांति आकार लेती गयी. आज़ादी के बाद किसानों का शोषण करने वाली जमीदारी प्रथा समाप्त कर दी गयी थी. इस भूदान गंगा ने भूमि सुधर अभियान में जो क्रांतिकारी भूमिका निभाई, उसका परिणाम यह हुआ कि 47 लाख 63 हजार 676 एकड़ जमीन भारत की आम जनता ने बाबा के चरणों में रख दी. प्रेम के आधार पर इतना बड़ा दान प्राप्त करने की दुनिया की यह अनूठी घटना थी. इतने बड़े भूदान के पीछे का यह आत्मविश्वास परमधाम आश्रम की तपश्चर्या का परिणाम था. पढ़ें बरतारा आश्रम, शाहजहांपुर के संचालक रमेश भइया के मनोभाव.
लोगों को सांत्वना की बहुत जरूरत है। जिस प्रकार संत्रस्त चित्त को उससे छुटकारा पाने योग्य कोई मनोविनोद का साधन मिलने पर सांत्वना मिलती है, उसी तरह का हाल आम जनता का हो रहा है। इसमें किसी का दोष नहीं है। दोषों की चर्चा भी किस काम की? दोष निवारण की जरूरत है और उसका सीधा, सरल, सबके लिए सुलभ और परिणामकारी मार्ग वही है, जिसे हमने परंधाम में अपनाया है। यद्यपि उसने हमारी इच्छा के अनुरूप रूप अब तक नहीं लिया है, तथापि अच्छी भावना से जो तपस्या हो रही है, उतनी भी उकताये हुए मन को संतोष दिला सकती है।
परंधाम में जो प्रयोग किया जा रहा है, वह अगर प्रारंभ नहीं हुआ होता और पूरे साल भर उसका जो अनुभव लिया, वह अगर नहीं लिया होता तो शायद तेलंगाना में जो काम हुआ और लोगों के साथ जो निःसंकोचता और निर्भयता का अनुभव हुआ, जिस तरह का आत्मविश्वास रहा, वह नहीं रहता। यात्रा में मेरी वाणी में जो आत्मविश्वास प्रकट हुआ, उसका आधार यहां का काम है। इस जगह जो प्रयोग हो रहा है, प्रचलित समाज व्यवस्था पर जो कुठाराघात हो रहा है, उसे अगर हम अच्छी तरह पूरा कर सकें, तो निःसंदेह संसार का रूप पलटने वाला है। इस बात का महत्त्व जितना मुझे मान्य है, उतना ही विचार करने वाले दूसरे किसी को भी मान्य होगा।
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उत्कृष्ट आलेख