Editorial

आज़ादी के अधूरे सपने कैसे पूरे हों!

अगर लोगों से जुड़ना है, तो हमें उनकी ज़िन्दगी से जुड़े सवालों से जुड़ना होगा। लोगों को ताक़त देने वाले कार्यक्रम सोचने होंगे, जैसे आज़ादी की लड़ाई में अस्पृश्यता निवारण, चरखा, गोसेवा, बुनियादी शिक्षा जैसे कार्यक्रम लिए गये थे।

अगस्त का महीना भारतीय राजनीति के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इसी महीने की नौ तारीख़ को ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के रूप में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ आख़िरी जंग लड़ी गयी और इसी महीने की पंद्रह तारीख़ को आज़ादी मिली. हालाँकि उस रूप में नहीं मिली, जिस रूप में स्वतंत्रता संग्राम के नायक चाहते थे। इस समय हम अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव वर्ष मना रहे हैं। घर-घर तिरंगा झंडा पहुँचाया जा रहा है, हालाँकि वह भी मूल अवधारणा के अनुसार खादी का न होकर, पॉलिएस्टर का है और आयातित भी. हम अपने देश में अपने झंडे का कपड़ा भी नहीं बुन सकते।

घर-घर झंडा फहराने के बहाने कुछ राजनीतिक ताक़तें स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य धारा से जुड़ने का दिखावा कर उसका श्रेय लेना चाहती हैं और जो आज़ादी की लड़ाई के वास्तविक हीरो थे, उन्हें विलेन साबित करना चाहती हैं। देश की नयी पीढ़ी को इस प्रवंचना से कैसे बचाया जाए?
ज़ाहिर है, उसके लिए हमें भी घर-घर जाना होगा। दरअसल महात्मा गांधी का सबसे बड़ा योगदान यही था कि उन्होंने आज़ादी की लड़ाई को मुट्ठी भर सशस्त्र क्रांतिकारियों तक सीमित रहने देने के बजाय, जन-जन तक पहुँचाया, सबको सक्रिय रूप से शामिल किया और सत्य तथा अहिंसा के ज़रिए आम आदमी को अत्याचारी हुकूमत से लड़ना सिखाया। बिना जन-विश्वास के कोई सत्ता टिक नहीं सकती। गांधी ने अंग्रेजों के शासन करने के नैतिक अधिकार को सफलता पूर्वक चुनौती दी, जिसमें उन्हें ब्रिटिश जनता के एक वर्ग का भी समर्थन मिला, जो बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
यह अच्छी बात है कि सरकार घर-घर तिरंगा झंडा पहुँचा रही है। अब बाक़ी लोगों की ज़िम्मेदारी है कि वे घर-घर जाकर आज़ादी और तिरंगे का मतलब समझाएँ। भारत का केसरिया झंडा मात्र तीन रंग के कपड़ों का गँठजोड नहीं है। यह भारतीय गणतंत्र की शक्ति, साहस, सत्य, शांति, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक है। तिरंगे झंडे के साथ हमें घर-घर संविधान की प्रस्तावना भी पहुँचाना चाहिए, जिसमें हमने सबके लिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व तथा सबको राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय के अपने उद्देश्य निर्धारित किए थे। लोगों को समझाना होगा कि पिछले कुछ वर्षों से देश की गाड़ी इन मूल्यों के विपरीत दिशा में चल रही है, इसके परिणाम भयावह होंगे।

हमने संकल्प लिया था कि क़ानून के सामने सब बराबर होंगे, उसमें बुलडोज़र की गुंजाइश नहीं होगी। हमने वादा किया था कि सबको आर्थिक न्याय मिलेगा और लोग आत्मनिर्भर होंगे, न कि दो जून की रोटी के लिए सरकार के सामने हाथ पसारना पड़ेगा। किसी दिन का अख़बार उठाकर देख लीजिए, साफ़ पता चलता है कि लोगों के जीवन में कितना असंतोष है। बेरोज़गारी और क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है और आत्महत्या की दर भी। कहने को तो हम संसदीय लोकतंत्र चला रहे हैं, लेकिन संसद एक औपचारिकता बनकर रह गयी है। संविधान में सांसदों को बोलने की पूर्ण आजादी दी गयी है और वहाँ कुछ भी बोलने के लिए उन पर किसी तरह की कार्यवाही नहीं हो सकती, लेकिन सांसद राजनीतिक दलों के गुलाम हो गये हैं और राजनीतिक दल अपने-अपने सर्वोच्च नेता की मुट्ठी में क़ैद हैं।

संसद का काम है सरकार के काम काज की जांच पड़ताल करना, सवाल पूछना, क़ानून बनाना और बजट की पड़ताल करके उसका अनुमोदन करना, लेकिन अब यह सब औपचारिकता मात्र रह गये हैं और सरकार निरंकुश हो गयी है। दलबंदी क़ानून से दलबदल तो नहीं रुका, सांसदों और विधायकों की ज़ुबान ज़रूर बंद हो गयी. राजनीतिक दलों का नेतृत्व अथवा रीति-नीति तय करने में, संसद अथवा विधानसभाओं के उम्मीदवारों के चयन में ज़मीनी कार्यकर्ताओं की कोई भूमिका नहीं रह गयी है। चुनाव इतना खर्चीला और प्रक्रिया इतनी जटिल हो गयी है कि कोई आम राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता अपनी उम्मीदवारी के बारे में सोच भी नहीं सकता।

हमारा सपना ग्राम स्वराज अर्थात विकेंद्रित शासन का था, लेकिन राजकाज इतना केंद्रित हो गया है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के अलावा किसी मेयर, ज़िला परिषद अध्यक्ष, ब्लॉक प्रमुख या ग्राम प्रधान के पास अपने-अपने क्षेत्रों के अनुकूल नीतियां और नियम बनाने का अधिकार नहीं है।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को लोकतंत्र के बजाय, केंद्रित शासन सुविधाजनक लगता है, इसलिए देश में ऐसी आर्थिक नीतियाँ बन रही हैं, जिनसे असमानता ख़तरनाक रूप से बढ़ती जा रही है और दौलत मुट्ठी भर लोगों या चंद कंपनियों के हाथ में केंद्रित हो रही है। वही, राजनीतिक दलों का भी संचालन कर रहे हैं।

इसलिए घर-घर जाकर लोगों को बताना है कि वे मात्र कुछ किलोग्राम अनाज, सम्मान राशि अथवा मकान के ही नहीं, बल्कि भारतीय गणतंत्र के मालिक और स्टेकहोल्डर होने के नाते और भी बहुत कुछ पाने के हक़दार हैं, जिससे वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था धर्म और जाति के झगड़े में उलझाकर उन्हें वंचित रख रही है। उन्हें बताना होगा कि न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, कुटीर उद्योग, पब्लिक ट्रांसपोर्ट आदि के लिए बजट क्यों आवंटित नहीं हो रहा है? बेरोज़गारी क्यों बढ़ रही है? प्रति व्यक्ति आय क्यों इतनी कम है? लोग ख़ुशहाल क्यों नहीं हैं?

एक बड़ा सवाल है कि आम लोगों तक पहुँचें कैसे? आम आदमी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के सवालों में उलझा है। आम आदमी सीधे सीधे राजनीति में पड़ना भी नहीं चाहता। इसलिए अगर लोगों से जुड़ना है, तो हमें उनकी ज़िन्दगी से जुड़े सवालों से जुड़ना होगा। लोगों को ताक़त देने वाले कार्यक्रम सोचने होंगे, जैसे आज़ादी की लड़ाई में अस्पृश्यता निवारण, चरखा, गोसेवा, बुनियादी शिक्षा जैसे कार्यक्रम लिए गये थे।

आज़ादी के बाद देश में परिवर्तन चाहने वाले लोगों ने अपने नायक भी बांट लिए। गांधी, नेहरू, जयप्रकाश, लोहिया, अम्बेडकर, ये सब एक दूसरे के पूरक थे, विरोधी नहीं। आज जब हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो आज़ादी के अधूरे सपने पूरे करने के लिए इन सबके अनुयायियों को एक छतरी के नीचे आने की ज़रूरत है। तभी एक मज़बूत ताक़त बनेगी, जो देश को उल्टी दिशा में जाने से रोक सकेगी।

-रामदत्त त्रिपाठी

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

2 months ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

2 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.