लंदन विश्वविद्यालय की आर्ट गैलरी में इन दिनों एक प्रदर्शनी चल रही है. चार महीने (28 अप्रैल-3 सितंबर 2022) तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में पहले और दूसरे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान का भूमिगत साहित्य प्रदर्शित किया गया है. पहला स्वतन्त्रता संग्राम, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ कांग्रेस द्वारा लड़ा गया और दूसरा स्वतन्त्रता संग्राम, जो संपूर्ण क्रांति आंदोलन द्वारा कांग्रेस सरकार के खिलाफ लड़ा गया। इंदिरा गांधी की कार्यशैली इस हद तक निरंकुश हो चुकी थी कि ऐसा लगने लगा था, जैसे केवल नेतृत्व परिवर्तन से उपनिवेशवादी मानसिकता का खात्मा नहीं होने वाला है। समाज के स्तर पर अधिक व्यापक परिवर्तन और सत्ता के विकेंद्रीकरण की अनिवार्य आवश्यकता थी।
यह प्रदर्शनी बीबीसी के पूर्व पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी के संग्रह में मौजूद सामग्री पर आधारित है, जिन्हें भारतीय आपातकाल के दौरान छात्र राजनीति में उनकी भूमिका के लिए जेल में डाल दिया गया था। इस प्रदर्शनी में उस समय होने वाली गिरफ्तारियों, मुकदमों और कारावास से संबंधित अनेक दस्तावेज और रामदत्त त्रिपाठी द्वारा युवा संघर्ष समिति के सदस्य के रूप में लिखा हुआ साहित्य प्रदर्शित किया गया है। इसके अलावा औपनिवेशिक भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित प्रकाशनों का ब्रिटिश लाइब्रेरी द्वारा संरक्षित संग्रह भी प्रदर्शनी में रखा गया है। अनेक भाषाओं और प्रारूपों में 2800 से अधिक वस्तुओं से युक्त, बीसवीं सदी के किसी भी उपनिवेश-विरोधी संघर्ष से संबंधित वस्तुओं का यह सबसे बड़ा संग्रह है।
प्रदर्शनी के एक हिस्से में प्रसिद्ध कवि और अनुवादक अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा, आलोक और अमित राय के अलावा प्रेमचंद के भाइयों और पोतों द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिकाएँ भी रखी गयी हैं।
चाहे कविता लिखने वाले हों या राजनीतिक पर्चे बनाने वाले, वे सारे लेखक, जिनके काम यहाँ प्रदर्शित किये गये हैं, आयोजकों का उद्देश्य बिना किसी भी प्रकार के राजनीतिक या वित्तीय नतीजों के डर के, उनके साथ पाठकों का सीधा और सच्चा संवाद कराना है। एक उदाहरण बनकर ये लेखक आज भी हमें प्रेरणा दे रहे हैं।
इस प्रदर्शनी के बारे में विस्तृत जानकारी इस लिंक पर उपलब्ध है. https://www.soas.ac.uk/gallery/crafting-subversions/
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