भारत की स्वतंत्रता की हीरक जयंती के अवसर पर अमेरिका के शहर फिलाडेल्फिया में आयोजित महात्मा गांधी-मार्टिन लूथर किंग जूनियर विचार संगोष्ठी, प्रसिद्ध समाजशास्त्री एवं सामाजिक, राजनीतिक चिन्तक डॉ एनथोनी मानतेरियो की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई. यह कार्यक्रम उस श्रृंखला की एक कड़ी था, जो विगत एक माह से भी अधिक समय से आजादी और महात्मा गांधी की भूमिका विषय पर चल रही है. इस बैठक में अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 24 युवाओं ने भाग लिया.
कार्यक्रम के प्रारम्भ में युवा विचारक पूर्वा चटर्जी ने 21 फरवरी 1936 को महात्मा गाँधी से मिलने भारत गये तीन सदस्यीय अमरीकी दल के नेता थर्मन द्वारा बारडोली में लिया गया बापू का साक्षात्कार पढ़ कर सुनाया, जिसमें गांधी जी ने भारत की निर्धनता एवं उसके सामाजिक, राजनीतिक निदान की बात की थी. डॉ एनथोनी मानतेरियो ने कहा कि महात्मा जी दो तरह की आज़ादी के पक्षधर थे. एक ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेशवाद से तथा दूसरी भारतीय समाज की कुरीतियों से, जिनमें अस्पृश्यता प्रमुख थी. स्वयं किंग जूनियर भी राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक दासता से मुक्ति के हामी थे. भारत में अस्पृश्यता तथा अमेरिका में रंगभेद व नस्लवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिनके खिलाफ गांधी और किंग जूनियर ने सत्य और अहिंसा को अपना हथियार बना कर लड़ा. यह भी एक समानता ही है कि दोनों ने अपने इन्हीं उद्देश्यों के प्रति समर्पित होकर अपने प्राणों की आहुति दे दी.
गांधी ग्लोबल फैमिली के महासचिव राम मोहन राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि बापू अपने सम्पूर्ण जीवन की सर्वोत्तम कृति ‘खादी एवं हरिजन सेवा’ को मानते थे. स्वदेशी चरखा एवं खादी उनके लिए मात्र वस्त्र न होकर विचार थे. सन 1932 में उन्होंने हरिजन सेवक संघ की स्थापना की तथा उसका संविधान भी अपने हाथों से लिखा. भंगी कष्ट मुक्ति के लिए उन्होंने स्वयं उस पीड़ा को सहन किया. बेशक वे सनातनी हिन्दू थे, पर सर्व धर्म समभाव उनका आदर्श था.
इस अवसर पर दिव्या आर नायर, समवर्त चटर्जी, अली शाहिद, डेनिस कैम्पबेल, स्वाति चौधरी, जेरमाह किम, एडगर बराजा, नाथन रेड्डी, एलिस ली, एमिली डोंग, जय शर्मा, क्लेब चेन, कैथरीन ब्लाउंट ने भी अपने विचार रखे.
-राम मोहन राय
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