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भारत को अपने युवाओं के रोज़गार और समानता पर भी ध्यान देना चाहिए – गिल्बर्ट एफ होंगबो

साक्षात्कार

सिंगापुर में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की 17 वीं एशिया पैसिफिक क्षेत्रीय बैठक में 16 दिसम्बर को अपनी टिप्पणी में आईएलओ के महानिदेशक और टोगो के पूर्व प्रधानमंत्री गिल्बर्ट एफ होंगबो ने सामाजिक न्याय के लिए वैश्विक गठबंधन के विकास की दिशा में विचार विमर्श जारी रखने की उम्मीद ज़ाहिर की है. पत्रकारों के साथ एक विशेष बातचीत में होंगबो ने कहा कि भारत को कोविड-19 महामारी और यूक्रेन की स्थिति जैसे अन्य मुद्दों से उत्पन्न संकट को दूर करने के लिए विकास के साथ-साथ अपने युवाओं को रोजगार देने पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि रोज़गार और समानता के बिना विकास का कोई अर्थ नहीं है। पढ़ें इस बातचीत के कुछ अंश।

गिल्बर्ट एफ होंगबो

प्रश्न- आपको क्या लगता है कि एपीआरएम की प्रमुख उपलब्धियां क्या हैं?

उत्तर- हमें एशिआई क्षेत्र के तात्कालिक अहम् मुद्दों पर विचार करना होगा। एशिआई क्षेत्र को आईएलओ के मानकों को लागू करने के लिए और अधिक काम करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में कई देश हैं, जहां श्रमिकों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। लोग गायब हो रहे हैं, लोग जेल जा रहे हैं। हमें आर्थिक विकास की आवश्यकता और श्रमिकों के न्यूनतम अधिकार तथा उनकी सुरक्षा व सम्मान को संतुलित करने के लिए एक बेहतर तरीका खोजने की आवश्यकता है। बैठक में यह बात सामने आई है। इसके साथ ही बैठक में सामाजिक संवाद के मुद्दों को भी रेखांकित किया गया, प्रवासी श्रमिकों को बुलाने और भेजने वाले देशों के मुद्दों पर भी चर्चा की गई।

प्रतिभागियों का ध्यान इन मुद्दों पर बहस की गंभीरता बढ़ाने और अपने अनुभव साझा करने पर केंद्रित था, ताकि सभी देश इस बैठक के सुझावों को लागू करने के लिए तत्पर हो सकें। यह क्षेत्र आर्थिक रूप से तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन, मुझे लगता है कि सामाजिक पक्ष पिछड़ रहा है। इस बात का समानता की स्थिति पर नकारात्मक और सीधा प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न- आईएलओ की दो हालिया रिपोर्टें मजदूरी में कमी और मुद्रास्फीति के प्रभाव की समस्या को चिह्नित कर रही हैं, इन विविध संकटों का सामना करने के लिए सदस्य देशों के लिए आपकी नीतिगत सलाह क्या हैं?

उत्तर- जाहिर है, नीतियों को प्रत्येक देश को अपनी शर्तों के अनुसार ही अपनाना होगा। मैं बहुत सावधान हूं कि मेरी बातों से टॉप -डाउन एप्रोच (ऊपर से नीचे जाने की प्रक्रिया) का सन्देश न निकले। नौकरी और रोजगार से संपन्न क्षेत्रों में निवेश ही आगे का रास्ता है।

इसी तरह, महंगाई हम सभी के लिए एक बड़ी चिंता है। हमें मूल्यों में स्थिरता लाने की जरूरत है। केंद्रीय बैंक मौद्रिक नियमों को सख्त कर रहे हैं। जब हम मौद्रिक प्रतिबंध लगा रहे हैं, तो हमें रोजगार के बाजार पर इन प्रतिबंधों के प्रभाव को भी देखना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह के फैसलों से महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिले, वे पहले से ही अस्थिर हालात को और खराब न करें।

प्रश्न- यूक्रेन की स्थिति, चर्चा के लिए एक अन्य प्रमुख मुद्दा था। आपके विचार क्या हैं?

उत्तर- पूरा विश्व पहले से ही यूक्रेन की स्थिति से पीड़ित है। हमारा पहला प्रयास हमेशा यही रहेगा कि शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान हो, सभी को बातचीत की मेज पर आना चाहिए। मेरा पहला आह्वान युद्ध को रोकना और एक स्वीकार्य समाधान खोजने का प्रयास करना होगा।

दूसरे, यूक्रेन की स्थिति अन्य संकटों के साथ मिलकर मुद्रास्फीति और ऊर्जा संकट का कारण बन रही है। जो लोग इसके लिए कीमत चुका रहे हैं, उनका इस संकट से कोई लेना-देना नहीं है। विशेष रूप से मुद्रास्फीति के कारण जो पीछे रह गए हैं, कम वेतन वाले जो नागरिक हैं, वे बुनियादी जरूरतों के लिए अपने वेतन के अनुपात में बड़ी रकम खर्च करने को मजबूर हैं। मैं उर्वरक की स्थिति और खाद्य सुरक्षा के जोखिम के बारे में बहुत चिंतित हूं। इससे भी बड़ा खतरा यह है कि यूक्रेन में युद्ध सहित अन्य संकट बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल रहे हैं।

प्रश्न- महामारी का खामियाजा भारत को भी भुगतना पड़ा। आप भारत में स्थिति को कैसे देखते हैं?

उत्तर- भारत जैसे देश महामारी से उबर रहे हैं। जी-20 देश के रूप में आगे बढ़ने के लिए भारत के हक में बहुत अनुकूल स्थितियां हैं। नौकरी से समृद्ध विकास और समानता पर ध्यान केंद्रित करके भारत आगे बढ़ सकता है।

मैं भारत में कोविड-19 के दुष्प्रभावों के बारे में बहुत चिंतित हूं। यदि मुद्रास्फीति और अन्य कारणों से सुधार रुका हुआ है, तो मुझे चिंता है कि यह भारत जैसे देश में असमानता को बढ़ा सकता है। भारत को रोजगार समृद्ध विकास और समानता पर ध्यान केंद्रित करने वाली नीतियों की आवश्यकता है।

-द हिन्दू (अनुवादक : अवनीश कुमार पाण्डेय)

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