कताई और बुनाई की शैलियों तथा प्रक्रियाओं के संदर्भ ऋग्वेद में भी पाए जाते हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी चरखे के अस्तित्व का उल्लेख किया गया है। कौटिल्य ने अपने ग्रंथ में “सूत्राध्यक्ष” नामक राज्य के अधिकारियों का उदाहरण भी दिया है।
प्राचीन काल से ही चरखा भारतीय घरों में आम तौर पर प्रयोग में लाया जाता रहा है, जैसा कि हड़प्पा और मोहनजोदारो के प्राचीन भारतीय शहरों व राज्य स्थलों की खुदाई से पता चलता है। कताई और बुनाई की शैलियों तथा प्रक्रियाओं के संदर्भ ऋग्वेद में भी पाए जाते हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी चरखे के अस्तित्व का उल्लेख किया गया है। कौटिल्य ने अपने ग्रंथ में “सूत्राध्यक्ष” नामक राज्य के अधिकारियों का उदाहरण भी दिया है। यानी सदियों से चरखा कारीगरों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है, जो अत्यंत श्रद्धा के साथ इस पवित्र धागे को बांधते थे और इसे अपनी आजीविका के एकमात्र स्रोत के रूप में देखते और पूजते थे। 1288 ईस्वी में भारत का दौरा करने वाले मार्को पोलो ने भारत के सूती कपड़ों के बारे में बहुत प्रशंसनीय भाव से लिखा है, जिसकी तुलना उन्होंने मकड़ी के जाले से की। मुगल काल में भी हाथ से बुनाई और कताई महत्वपूर्ण व्यवसाय बने रहे।
16वीं शताब्दी के दौरान पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और बाद में अंग्रेजों ने भारतीय हस्तनिर्मित वस्त्रों को यूरोप में निर्यात करना शुरू कर दिया, जहां इनकी अच्छी गुणवत्ता के लिए इन्हें बेशकीमती माना जाता था। कपास को पूरे यूरोप में डच व्यापारियों द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था, यहां तक कि वे उन्हें पहनकर गर्व भी महसूस करते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी को सूरत से मद्रास स्थानांतरित करने के मुख्य कारणों में से एक, डच चरखे से बुने हुए सूती कपड़े के व्यवसाय का एक पाई प्राप्त करना था। ब्रिटिश बाजारों में भारतीय कपड़े की आमद का वहां के कपड़ा निर्माताओं ने कड़ा विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश संसद ने भारत से देश में लाए गए कपड़े पर अत्यधिक शुल्क लगाने वाला एक अधिनियम पारित किया। इंग्लैंड में भारतीय कपड़ों का इस्तेमाल करने वालों पर भारी जुर्माना भी लगाया गया।
इसके बाद इंग्लैंड ने भारत से कच्चा कपास आयात करना शुरू कर दिया और सस्ता तथा मिल-निर्मित कपड़ा भारत में भेजना शुरू किया। परिणामस्वरूप भारतीय बुनकरों को काम की कमी से जूझना पड़ा और उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। 1854 में, देश में कपड़ा उद्योग के मशीनीकरण का मार्ग प्रशस्त करते हुए बम्बई में पहली कपड़ा मिल ने काम करना शुरू किया। इसके बाद कताई और बुनाई के कौशल में उत्तरोत्तर गिरावट आने लगी। इस प्रवृत्ति से गाँवों का जीवन प्रभावित हुआ और भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
विदेशों में भारतीय वस्त्रों को बढ़ावा देने का प्रयास
1869 में जमशेद जी टाटा ने एक कपास मिल स्थापित करने के एक नए उद्यम की योजना बनाई कि जैसे-जैसे व्यवसाय बढ़ेगा, चरखा बुनाई उद्योग को भी प्रोत्साहन मिलेगा। 26 अप्रैल 1873 को वे व्यापार के अवसरों का अध्ययन और मूल्यांकन करने के लिए मिस्र, सीरिया, फिलिस्तीन, तुर्की और रूस से होते हुए इंग्लैंड गए। 1874 में, मुंबई लौटने पर उन्होंने नागपुर में अपनी नई कपास मिल स्थापित करने का फैसला किया।
1 जनवरी 1877 को नागपुर मिल ने कारोबार शुरू किया। इस बीच दादाभाई नौरोजी, अन्य भारतीय नेताओं के साथ स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और इस बात पर जोर दे रहे थे कि ब्रिटिश शासन भारत में गरीबी पैदा कर रहा था और उनके व्यापार नियम भारतीय व्यवसायों के प्रतिकूल थे। जमशेद जी दादाभाई नौरोजी के स्वदेशी आह्वान से प्रेरित थे, इसलिए उन्होंने स्वदेशी उद्योग को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनाने का संकल्प लिया। उन्होंने मुंबई के कुर्ला क्षेत्र में “धर्मश्री मिल” नामक एक बीमार मिल खरीदी और इसका नाम “स्वदेशी मिल” रखा, कालान्तर में कम्पनी ने अच्छा मुनाफा कमाना शुरू कर दिया।
चरखा बना स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चरखा स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बन गया, जिसने विदेशों में उत्पादित मशीन-निर्मित सामानों को त्यागकर, उन्हें हाथ से बने भारतीय कपड़ों से बदल दिया। महात्मा गांधी ने चरखे को एक नयी व्याख्या दी। उनके लिए कताई तपस्या, संस्कार, आध्यात्मिक उत्थान का माध्यम, धर्म का प्रतीक, स्वावलंबन, श्रम की गरिमा और मानवीय मूल्यों के अलावा अहिंसा की स्थापना का प्रतीक थी।
उनका मानना था कि चरखा मेरे लिए जनता की आशा का प्रतिनिधित्व करता है. वे उत्पादकता में सुधार के लिए तकनीकी रूप से चरखे में सुधार करने के इच्छुक थे। उन्होंने अधिक कुशल चरखे के डिजाइन के लिए एक प्रतियोगिता की घोषणा की, जो संचालन में सरल, निर्माण में सस्ता और अच्छी गुणवत्ता के धागे का अधिक मात्रा में उत्पादन करने में सक्षम होता। जब वे यरवदा जेल और बाद में आगा खान पैलेस में बंद थे, तो उन्होंने स्वयं चरखे के एक पोर्टेबल डिजाइन पर काम किया, जिसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता था।
-संकलित
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