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भारतीय साहित्य में महात्मा गांधी

अपने समय की दुर्जेय अंग्रेजी सत्ता से देश की मुक्ति और देशवासियों के आत्मसम्मान की रक्षा के साथ ही उनके पुनरुत्थान हेतु उन्होंने सत्याग्रह का अति सभ्य और मानवीय मार्ग चुना। सत्याग्रह दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व घटना थी। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अचूक संधान और सफलता ने सारे संसार को चौंकाया था। भारत ही नहीं, विश्व-इतिहास के पन्ने इस वास्तविकता के साक्षी हैं। गांधी ने पराधीन भारतीयों को उनकी गरिमा का एक बड़ी सीमा तक भान कराया। जन-जागृति उत्पन्न कर उन्हें परतंत्रता की बेड़ियां काटने के उत्साह से भरा। उन्हें भयमुक्त होकर बलिदान के लिए तैयार किया। गांधी के साध्य-साधन विवेक और सत्य अहिंसा के मूल्यों ने उन्हें विश्व में प्रतिष्ठा दी. वे न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के बुद्धिजीवियों, लेखकों, रचनाकारों, कवियों के विचारों तथा कार्यों के केन्द्र में रहे। भारत में तो लगभग सभी भाषाओं के लेखकों व कवियों ने उन पर लिखा और रचा। उन पर आलोचनात्मक, समालोचनात्मक एवं व्यंग्यात्मक कार्य भी हुए, उन पर नाटक भी लिखे गए। वे भारतीय सिनेमा में भी प्रकट हुए, उन पर लगभग दस फिल्में बनीं। उनके जीवन, कार्यों तथा विचारों पर जितना लेखन कार्य हुआ है, वह अभूतपूर्व है। दुनिया में कम ही लोग हुए होंगे, जिन पर इतना लिखा गया है, जितना गांधी पर।

सत्याग्रह रूपी अपने अस्त्र का दक्षिण अफ्रीका में सफलतापूर्वक प्रयोग करने के बाद एक नायक के रूप में गांधी 1915 की शुरुआत में ही स्वदेश लौटे। भारत लौटते ही उन्होंने देश की तत्कालीन परिस्थितियों एवं पराधीन देशवासियों की कठिनाइयों और समस्याओं के साथ खुद को जोड़ना शुरू किया। उपनिवेशवादियों से देश की स्वाधीनता उनके चिन्तन के केन्द्र में थी। देशवासियों का आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता, उनके स्व के बल पर उनका उत्थान और मानव-मानव के बीच समानता सुनिश्चित करना उनका अभीष्ट था। इसी अभीष्ट की सिद्धि के लिए वे नील की खेती करने वाले चम्पारण के किसानों को उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने उनके संघर्ष में कूद पड़े। उनका वह कदम उपनिवेशवादियों से देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष का पहला ही कदम था।


अपने समय की दुर्जेय अंग्रेजी सत्ता से देश की मुक्ति और देशवासियों के आत्मसम्मान की रक्षा के साथ ही उनके पुनरुत्थान हेतु उन्होंने सत्याग्रह का अति सभ्य और मानवीय मार्ग चुना। सत्याग्रह दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व घटना थी। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अचूक संधान और सफलता ने सारे संसार को चौंकाया था। भारत ही नहीं, विश्व-इतिहास के पन्ने इस वास्तविकता के साक्षी हैं। गांधी ने पराधीन भारतीयों को उनकी गरिमा का एक बड़ी सीमा तक भान कराया। जन-जागृति उत्पन्न कर उन्हें परतंत्रता की बेड़ियां काटने के उत्साह से भरा। उन्हें भयमुक्त होकर बलिदान के लिए तैयार किया। गांधी के साध्य-साधन विवेक और सत्य अहिंसा के मूल्यों ने उन्हें विश्व में प्रतिष्ठा दी. वे न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के बुद्धिजीवियों, लेखकों, रचनाकारों, कवियों के विचारों तथा कार्यों के केन्द्र में रहे। भारत में तो लगभग सभी भाषाओं के लेखकों व कवियों ने उन पर लिखा और रचा। उन पर आलोचनात्मक, समालोचनात्मक एवं व्यंग्यात्मक कार्य भी हुए, उन पर नाटक भी लिखे गए। वे भारतीय सिनेमा में भी प्रकट हुए, उन पर लगभग दस फिल्में बनीं। उनके जीवन, कार्यों तथा विचारों पर जितना लेखन कार्य हुआ है, वह अभूतपूर्व है। दुनिया में कम ही लोग हुए होंगे, जिन पर इतना लिखा गया है, जितना गांधी पर।


भारत में महात्मा गांधी पर सर्वाधिक अंग्रेजी भाषा में लिखा गया। उन पर अनेक शोध कार्य हुए और यह क्रम आज भी जारी है। राजभाषा हिन्दी में उन पर अनवरत कार्य हुआ। मुंशी प्रेमचंद, मैथिली शरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, रामनरेश त्रिपाठी, सोहनलाल द्विवेदी, नागार्जुन तथा भवानी प्रसाद मिश्र जैसे अग्रिम पंक्ति के साहित्यकारों ने गांधी और गांधी दर्शन पर विपुल साहित्य की रचना की। इन लेखकों और कवियों ने गांधी के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि सभी पहलुओं पर कृतज्ञ भाव से लिखा.


देश की विभिन्न भाषाओं में गांधी और गांधी दर्शन पर हुए कार्यों का सारा विवरण एक आलेख में समेट पाना संभव नहीं है. गुजरात से महादेव देसाई, स्वामी आनन्द और कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी, महाराष्ट्र से काका साहेब कालेलकर और विनोबा भावे, तमिलनाडु से एके चेट्टियर व टीके रामानुज कविराजर, कर्नाटक से पी लंकेश और राजा राव तथा बंगाल से महाश्वेता देवी आदि उन अनेक नामों में से कुछ नाम हैं, जो गांधी और गांधी दर्शन पर अपने कार्यों के लिए जाने जाते हैं। हम सभी जानते हैं कि उनकी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का देश की लगभग सभी भाषाओं हिंदी, कश्मीरी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, सिन्धी, उर्दू, असमिया, पंजाबी, बंगाली आदि में अनुवाद हो चुका है।


उपन्यास-सम्राट मुंशी प्रेम चन्द ने हिन्दीभाषी जनता के हृदय पर अपने लेखन से गहरा प्रभाव डाला है. उनकी जुलूस, शराब की दुकान, लाल फीता, अनुभव, होली का उपहार, आहुति, जेल, पत्नी से पति और पञ्च परमेश्वर जैसी दो दर्जन से भी अधिक कहानियों में गांधी-विचार और उनके जनसंघर्षों की स्पष्ट छाप है। अछूतोद्धार, सादगी, स्वदेशी, सांप्रदायिक सौहार्द, राष्ट्रीय चेतना, राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक विरासत की महत्ता और उपयोगिता, साम्राज्यवाद का विरोध और स्वाधीनता का मूल्य आदि विषय उनकी कहानियों एवं उपन्यासों में प्रभावशाली रूप में उभरे हैं।


राष्ट्रकवि दिनकर की अनेक रचनाएं महात्मा गांधी के महान व्यक्तित्व को समर्पित रहीं। देश के प्रति गांधी की प्रतिबद्धता, मानवता के प्रति उनका समर्पण, उनका आजीवन संघर्ष और उनके उदात्त मानवीय मूल्य रामधारी सिंह दिनकर की उन पर रची गईं अनेक कविताओं के केन्द्र में रहे।

महाकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’


ली जांच प्रेम ने बहुत, मगर बापू तू सदा खरा उतरा।
शूली पर से भी बार-बार, तू नूतन ज्योति भरा उतरा।।


राष्ट्र कवि सोहनलाल द्विवेदी ने महात्मा गांधी के विशाल और चमत्कारी व्यक्तित्व एवं भारत के जनमानस पर उनके गहन प्रभाव को अपनी एक कविता के माध्यम से अति सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी वह कविता हिन्दी भाषी क्षेत्रों में आजतक लोकप्रिय है। अपनी कविता में सोहनलाल द्विवेदी कहते हैं-


चल पड़े जिधर दो डग मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।।
जिसके शिर पर निज धरा हाथ, उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ।
जिस पर निज मस्तक झुका दिया, झुक गये उसी पर कोटि माथ।।
हे कोटिचरण! हे कोटिबाहु! हे कोटिरूप! हे कोटिनाम!”


जैनेद्र कुमार और वियोगी हरि के नाम उन अनेक साहित्यकारों में विशेष स्थान रखते हैं, जिन्होंने गांधी और गांधी दर्शन पर विशिष्ट लेखन किया है।


महात्मा गाँधी के समकालीन और उनके बाद के अनेक साहित्यकारों पर महात्मा गाँधी के जीवन, कार्यों और विचारों का गहन प्रभाव रहा। अविभाज्य समग्रता और सार्वभौमिक एकता के केंद्र होने तथा मानव-कल्याण के हित में समर्पित रहने के कारण उनका विचार लेखकों, कवियों, नाटककारों आदि के लिए महत्त्वपूर्ण और श्रद्धा का विषय रहा। यह क्रम आज भी जारी है। आने वाले समय में भी यह क्रम जारी रहेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

-डॉ. रवीन्द्र कुमार

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