वाराणसी में आयोजित राष्ट्रीय एकता, शांति और न्याय विषयक तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का समापन
वाराणसी के तरना स्थित नवसाधना कला केंद्र में ‘राइट एंड एक्ट’ संस्था की ओर से आयोजित ‘प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षण शिविर’ का 20 दिसम्बर को समापन हुआ. 18 दिसम्बर से शुरू हुए इस आवासीय शिविर में उत्तेर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आये लगभग 40 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. समाज की साझी विरासत और मेलजोल की संस्कृति की शपथ लेते हुए प्रतिभागियों ने माना कि मुल्क को एकरंगी बनाने की कोशिश ही आज मुल्क के लिए सबसे बड़ा खतरा है. मुफ़्ती ए बनारस अब्दुल बातिन नोमानी ने कहा कि खुदा की मर्जी है कि सभी एक दूसरे के साथ मुहब्बत से रहें. काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंथ राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि आज धर्म को सियासत की चाशनी में लपेटकर सरकार बनाने और बिगाड़ने का दौर चल रहा है. फादर आलोक नाग ने कहा कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ इस गीत को ही केंद्र में रखकर हम सभी को समाज निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.
इसके पहले 18 दिसम्बर को प्रशिक्ष्ण शिविर के उद्घाटन के दिन शिविरार्थियों के बीच बोलते हुए सामाजिक चिंतक और आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर राम पुनियानी ने कहा कि धार्मिक सत्ता स्थापित करने का प्रयास लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है. देश में पिछले कुछ सालों से ऐसे ही प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे मुल्क की साझी विरासत पर खतरा मंडरा रहा है. हमें इन खतरों से न सिर्फ़ सावधान रहना होगा, बल्कि उन्हें समझना भी होगा. आजादी की लड़ाई सभी धर्म, जाति के लोगों ने मिलजुल कर लड़ी थी. आज उन्हें विभाजित किया जा रहा है और एक धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. प्रो पुनियानी ने कहा कि समतावादी समाज के निर्माण के लिए संवैधानिक संस्थाओं और मूल्यों की रक्षा करने की जरूरत है, जिन पर आज सर्वाधिक खतरा है. आज दलित, आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यक निशाने पर हैं. उनकी दशा दिनों दिन खराब होती जा रही है. भारतीय सभ्यता और संस्कृति मिली-जुली रही है, आज इतिहास को तोड़ मरोड़ कर गलत प्रचार किया जा रहा है. हमारी कोशिश समता और समानता आधारित समाज के निर्माण की होनी चाहिए.
बीएचयू के प्रोफेसर दीपायन ने दूसरे दिन की कार्यशाला में सवाल उठाया कि आज जब देश अपनी आज़ादी का 75 वां वर्ष मना रहा है, तो देश की सड़कों से राष्ट्र निर्माता नेहरू के पोस्टर क्यों गायब हैं.
‘मौजूदा दौर में मीडिया की भूमिका’ विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार एके लारी ने कहा कि मीडिया अपनी भूमिका से विरत हो चुका है. पूर्व की सरकारों के दौर में भी मीडिया की भूमिका पर सवाल उठते थे, पर वे अपवाद स्वरूप होते थे. आज तो मीडिया ने जनसरोकार से किनारा कर के सत्ता सरोकार से रिश्ता बना लिया है. लोकतंत्र के चौथे खम्भे से आम जन का भरोसा उठता जा रहा है. विशिष्ट वक्ता दीपक भट्ट ने लोकतन्त्र की चुनौतियों पर बोलते हुए कहा कि इस समय सबसे बड़ी जरूरत युवाओं के साथ काम करने की है, जिससे उनमें सूचनाओं के विश्लेषण की समझ पैदा हो सके। युवाओं में अपनी बात कहने का जज्बा बनाना जरूरी है। इसके पूर्व शिविर का उद्घाटन डायसेस आफ वाराणसी के बिशप फादर यूजिन जोसेफ़ ने किया. उन्होंने शिविर में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हमें समाज निर्माण के लिए हर स्तर पर प्रयास करना चाहिए. जब तक इस प्रयास में हर तरह के फूलों को एक साथ बांधकर गुलदस्ता तैयार नहीं करेंगे, तब तक बेहतर समाज नहीं बनाया जा सकता. इस प्रशिक्षण शिविर में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के सामाजिक कार्यकर्ता, अध्यापक, शोध छात्र और पत्रकार भागीदारी कर रहे हैं. शिविर का संचालन डा. मोहम्मद आरिफ ने किया. उन्होंने शिविर के उद्देश्यों पर भी प्रकाश डाला.
-डॉ मोहम्मद आरिफ
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