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भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : अशांति के बीज खत्म करना जरूरी है

बाबा तो कहते ही थे कि केवल पुलिस की ताकत से शांति नहीं रह सकती। हां, अशांति उससे दब जरूर सकती है, लेकिन यह फिर से धधक सकती है। जैसे गर्मी में घास सूख जाती है, बिल्कुल दिखाई नहीं देती, लेकिन वर्षा होते ही वह उग आती है। अशांति के बीज खत्म करना जरूरी है।

तेलंगाना में बहुत झगड़े, खून, मारपीट आदि हुए हैं। इन सबकी शांति के लिए यज्ञ होना चाहिए। कौन सा यज्ञ? लोभ रूपी पशु बहुत तकलीफ दे रहा है। उसी का बलिदान करने से शांति हो सकती है। बाबा ने लोगों से लोभ रूपी पशु का बलिदान करने हेतु भूमिदान मांगना शुरू कर दिया। सम्पूर्ण नहीं, लेकिन थोड़ा-थोड़ा देना शुरू हुआ। जब एक मांगने वाला तैयार हो गया, तो देने वाले भी मिल गए. देखते-देखते 300 लोगों ने बाबा को 3000 एकड़ जमीन दान में दे दी, इस कलियुग में समाज के लिए यह आश्चर्य की बात थी। बाबा ने इस शांति-यज्ञ में हिस्सा लेने का आवाहन शुरू कर दिया। बाबा कहते थे कि जिन-जिन को भगवान प्रेरणा देगा, वही उठ-उठकर देने लग जाएंगे। वही परमेश्वर मुझ जैसे तुच्छ मनुष्य की वाणी में भी ताकत भरेगा। वही इस कलियुग में मनुष्य को अच्छी बुद्धि देगा। बाबा को विश्वास था कि भगवान भारत की उन्नति चाहता है और इस देश में शांति फैलाना चाहता है। भगवान क्या चाहता है, यह वह भले न बोले, लेकिन वैसी  प्रेरणा मनुष्य को दे देता है।
बाबा तो कहते ही थे कि केवल पुलिस की ताकत से शांति नहीं रह सकती। हां, अशांति उससे दब जरूर सकती है, लेकिन यह फिर से धधक सकती है। जैसे गर्मी में घास सूख जाती है, बिल्कुल दिखाई नहीं देती, लेकिन वर्षा होते ही वह उग आती है। अशांति के बीज खत्म करना जरूरी है। बाबा को लगता था कि थोड़े से अमृत बिंदुओं से सारा समुद्र मीठा कैसे होगा? पर धीरे-धीरे बाबा के शब्दों में भगवान ने कुछ शक्ति भर दी। समाज के लोगों की समझ में आने लगा कि यह जो काम चल रहा है, वह क्रांति का है और सरकार की शक्ति से परे है, क्योंकि यह जीवन बदलने का काम है।

हमारे समाज में अनेक राजाओं ने लड़ाइयां लड़कर जो क्रांति नहीं की, वह ईसा, बुद्ध, रामानुज ने बिना लड़े ही कर दी। इसलिए प्रेम और विचार से बढ़कर दूसरी कोई शक्ति नहीं है।

                बाबा ने अगला आवाहन यह किया कि दरिद्र नारायण को,जो भूखा है और अब जाग चुका है, आप अपने घर का ही सदस्य मान लें। यह जो समस्या हमने उठाई है, वह एक दो परिवारों, एक दो गांवों, एक दो जिलों की नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया की राजनैतिक, सामाजिक समस्या है, जो हमें सुलझानी है। इसलिए क्रांति करने हेतु वहां लोगों की मनोवृत्ति ही बदल देने की जरूरत होती है। बाबा को तो मैत्री में ही आनंद आता था. उनके लिए गरीब और अमीर क्या? वे सबके मित्र हैं. जो शक्ति मैत्री में है, वह द्वेष में नहीं है। हमारे समाज में अनेक राजाओं ने लड़ाइयां लड़कर जो क्रांति नहीं की, वह ईसा, बुद्ध, रामानुज ने बिना लड़े ही कर दी। इसलिए प्रेम और विचार से बढ़कर दूसरी कोई शक्ति नहीं है। इसलिए जितना समझाना पड़ेगा, हम समझाते रहेंगे। जब तक कामयाबी नहीं मिलेगी, तब तक हम काम करते रहेंगे।

बाबा कहते थे कि मैं जो चाहता हूं, वह तो सर्वस्व दान की बात है। जिस प्रकार माता-पिता जिस प्रेम से अपने बच्चे के लिए स्वयं भूंखे रहकर भी उन्हें खिलाते हैं, उनके लिए सर्वस्व का त्याग करते हैं, वैसे करना होगा. बाबा जब जेल में कम्युनिस्ट भाइयों से मिले थे, तो उन्होंने बाबा से पूछा था कि क्या श्रीमानों का भी हृदय परिवर्तन कभी हो सकेगा? तो बाबा ने कहा था कि जब हर एक के हृदय में परमेश्वर विराजमान है और वही हमारे श्वासोच्छवास का नियमन करता है और सारी प्रेरणा देता है, तो मेरा विश्वास है कि श्रीमान लोगों के हृदय का परिवर्तन भी ज़रूर हो सकता है। अगर कालात्मा खड़ा है और वह परिवर्तन चाहता है, तो वह मनुष्य के चाहने न चाहने पर निर्भर नहीं है, बल्कि ऐसा समझें कि होने ही वाला है। मनुष्य जब पानी में तैरता है, तो उसकी तैरने की शक्ति के साथ प्रवाह की शक्ति  भी काम आती है। इसी तरह मनुष्य के हृदय में परिवर्तन हेतु कालप्रवाह सहायक है। – रमेश भइया

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