बाबा ने कहा कि मेरे पास मुख्य शक्ति प्रार्थना की ही है। इसलिए उस प्रार्थना की शक्ति को सबके साथ बांटना चाहता हूं, उन्होंने कहा कि प्रार्थना के बाद जब मैं थोड़ा बहुत बोलता हूं, तो उसमें प्रार्थना की शक्ति का ही अद्भुत परिणाम होता है।
आठ मार्च 1951 की सुबह बाबा विनोबा की पदयात्रा पवनार से हैदराबाद के निकली। रास्ते में बाबा अपनी बातें गांव के लोगों से करते, उनकी बातें सुनते, ऐसा क्रम बना रक्खा था। वर्धा से यवतमाल, आदिलाबाद, निजामाबाद, मेंडक आदि जिले पार करते हुए बाबा हैदराबाद पहुंचने ही वाले थे कि चार दिन पहले एक अप्रैल को उनको बुखार आ गया। साथ के साथी सोचने लगे कि कुछ दिन विश्रांति लेनी होगी। बाबा ने कहा कि नहीं, यात्रा का जो कार्यक्रम बना है, हम उसी अनुसार रोज आगे बढ़ते रहेंगे, क्योंकि बाबा को विश्वास था कि भगवान बीच में थोड़ी परीक्षा लेना चाहता है, इसके अलावा और कुछ नहीं है। परमेश्वर हमेशा से भक्त की बीच बीच में सत्व-परीक्षा लिया ही करता है। लेकिन जैसे वह एक ओर परीक्षा लेता है, वैसे ही शक्ति भी देता है।
बाबा ऐसी श्रद्धा रखकर निरंतर यात्रा में चलते रहे। देखते-देखते बाबा का बुखार चला गया। बाबा को और उनके साथियों को विश्वास होने लगा कि अब हम अपने निश्चित कार्यक्रम के अनुसार दो तीन दिन के अंदर शिवरामपल्ली पहुंचकर सम्मेलन में भाग ले सकेंगे, लेकिन अभी यह हमारी कल्पना मात्र है, भगवान ने जो चाहा होगा, वही होगा। बाबा ने कहा कि हम जब वर्धा से निकले तब भी भगवान का नाम लेकर ही निकले और आज भी उसी के बल पर मेरा सारा काम चल रहा है। मनुष्य का अपना कोई पृथक बल नहीं है। हां! लेकिन जब वह भगवान पर श्रद्धा रखकर चलता है, तो भगवान चलने वाले को बल तो देता ही है।
इंशाअल्लाह का अर्थ है कि भगवान चाहेगा तो काम हो जाएगा. लेकिन बोलने मात्र से काम नहीं चलेगा, मन की भावना भी वैसी ही होनी चाहिए। अपने जीवन की कोई भी कृति हम भगवान की इच्छा के बगैर नहीं कर सकते। भगवान जब चाहता है, तभी बात बनती है।
बाबा कुरान का एक किस्सा सुनाया करते थे कि एक रोज मुहम्मद पैगबर कहीं जा रहे थे, रास्ते में उनको जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई पड़ी. उन्होंने जानकारी की तो पता चला कि इस घर में एक बच्चा बहुत बीमार है। घर के लोगों ने जब पैगम्बर को देखा तो सभी ने उनसे निवेदन किया कि आप आशीर्वाद दें, हमारा बच्चा सही हो जाए। उन्होंने कहा कि परेशान न हों, मैं बच्चे को सही कर दूंगा। सबका रोना थम गया, वे आशीर्वाद देकर चले गए। दूसरे दिन जब दुबारा वहां से गुजरे तो फिर रोने की आवाजें सुनाई पड़ीं, पूछने पर पता चला कि बच्चा ठीक नहीं हुआ, सब आकर कहने लगे कि पैगंबर साहब, बच्चा सही नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कल हम गलती से यह कह बैठे कि हम बच्चे को ठीक कर देंगे। उन्होंने अपने भाव, शब्द बदले और कहा कि अल्लाह चाहेगा तो उसकी कृपा से आपका बच्चा ठीक हो जायेगा, इंशाअल्लाह! और अगले दिन तक बच्चा ठीक हो गया। मुसलमानों में इंशाअल्लाह का अर्थ है कि भगवान चाहेगा तो काम हो जाएगा. लेकिन बोलने मात्र से काम नहीं चलेगा, मन की भावना भी वैसी ही होनी चाहिए। अपने जीवन की कोई भी कृति हम भगवान की इच्छा के बगैर नहीं कर सकते। भगवान जब चाहता है, तभी बात बनती है।
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