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भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : भूदान एक नैतिक आन्दोलन है!

यह केवल जमीन बांटने का काम नहीं, बल्कि हिंदुस्तान को एकरस बनाने का काम है, दिल के साथ दिल जोड़ने का काम है, हृदय शुद्धि का काम है। भूदान एक नैतिक आंदोलन है। सच्चे अर्थों में यह धर्म-प्रतिष्ठा का काम है।

कोई भी साधना जब तक व्यक्तिगत रहती है, तब तक उसकी शक्ति सीमित रहती है। जब उसका सामूहिक रूप सामने आता है, तो उसकी असलियत प्रकट हो जाती है। भू-दान और संपत्ति-दान  तो पहले भी हुए होंगे। समाज में कुछ लोग ब्राम्हणों, मठों, मंदिरों को जमीन देते होंगे। दान की यह बात कोई नई नहीं है। पहले के दान व्यक्तिगत गुण पर चलते थे, इसलिए उनकी शक्ति सीमित होती थी। इन पवित्र कार्यों से भी अच्छा काम जरूर होता था, किंतु भूदान यज्ञ में सामूहिक तौर पर वह साधना की जाती है। यह सामूहिक गुण विकास का आंदोलन है, इसलिए यह लाखों लोगों का दिल खींच रहा है। भूदान आंदोलन करुणा बुद्धि से सारे समाज की सेवा में अपनी अल्प ताकत समर्पित करने का आन्दोलन है। यहां दान की परंपरा चले, तो हमारा  देश सुखी हो सकता है, एकरस बन सकता है। जब प्रेम के साथ सुख बढ़ता है, तो वह सुख कल्याणकारी होता है। यह केवल जमीन बांटने का काम नहीं, बल्कि हिंदुस्तान को एकरस बनाने का काम है, दिल के साथ दिल जोड़ने का काम है, हृदय शुद्धि का काम है। भूदान एक नैतिक आंदोलन है। सच्चे अर्थों में यह धर्म-प्रतिष्ठा का काम है।

भांखड़ा नागल बांध बनना बहुत बड़ा काम हुआ। इससे एक करोड़ एकड़ जमीन को पानी मिलेगा। पहले पांच या छः एकड़ में जितना उत्पादन होता था, उतना अब एक एकड़ में होगा। अगर मेरे हाथ में सरकार होती, तो मैं जमीन वालों से कहता कि आपकी जमीन में इतना अधिक उत्पादन हो रहा है, इसलिए आप अपनी जमीन का छठा हिस्सा गरीबों के लिए दें।

इस तरह हरएक के पास जमीन, संपत्ति, विद्या, श्रमशक्ति आदि जो भी है, उसका एक हिस्सा समाज के लिए दे देना चाहिए। बाबा कहते थे कि समाज जिस दिन हमारी यह मांग मन से कबूल कर लेगा, देखिएगा उसी दिन हिंदुस्तान सुखी हो जायेगा। यह सत्य वचन है। बाबा की यात्रा पंजाब की ओर चल रही थी, तब बाबा ने कहा था कि भांखडा नागल को पंडित नेहरू इस जमाने का तीर्थस्थान कहते थे, लेकिन नानक ने कहा कि मैं तीर्थ में नहाने के लिए राजी हूं, लेकिन भगवान राजी हो तभी नहाऊंगा। उसके बिना कोई लाभ नहीं होगा। भांखड़ा नागल बांध बनना बहुत बड़ा काम हुआ। इससे एक करोड़ एकड़ जमीन को पानी मिलेगा। पहले पांच या छः एकड़ में जितना उत्पादन होता था, उतना अब एक एकड़ में होगा। अगर मेरे हाथ में सरकार होती, तो मैं जमीन वालों से कहता कि आपकी जमीन में इतना अधिक उत्पादन हो रहा है, इसलिए आप अपनी जमीन का छठा हिस्सा गरीबों के लिए दें। एक करोड़ एकड़ का छठा हिस्सा सोलह लाख एकड़ जमीन हुई, जिससे सोलह लाख परिवार बसेंगे।– रमेश भइया

Co Editor Sarvodaya Jagat

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