History

भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : भूदान यज्ञ का रहस्य

मैं दरिद्र हूं, दु:खी हूं, मेरे पास जो चीज है, वह काफी नहीं हैं, पर ऐसे भी लोग हैं, जो मुझसे भी दरिद्र हैं, दु:खी हैं। इनकी तरफ ध्यान देने से हमारा जीवन उन्नत बनता है। यही भूदान यज्ञ का रहस्य है।

बिहार के बाद बाबा की यात्रा बंगाल पहुंची, जहां उसे ‘प्रेम यात्रा’ का नाम दिया गया। उत्कल में बाबा ने कहा कि बिहार के लोगों ने भूदान के काम में बहुत पराक्रम किया। अब आप लोग ग्रामदान के क्षेत्र में विशेष प्रयास करके दिखाएं। बाद में वैसे परिणाम ग्रामदान के क्षेत्र में वहां दिखे भी।

भगवान ने हर एक के हृदय में कुछ न कुछ करुणा रखी है। दूसरे का दुख देखकर मानव दुखी हुए बिना नहीं रह सकता, लेकिन चित्त दुखी होने पर भी मदद के वास्ते दौड़ पड़ने के लिए कुछ पुरुषार्थ की जरूरत होती है। परमेश्वर ने हमें ताकत दी है, तो हम दुखियों की मदद के लिए दौड़ जाएं। इसके लिए साधारण दया काम नहीं देती, करुणा की जरूरत होती है। करुणा में ताकत होती है, वह मनुष्य को खामोश नहीं बैठने देती। कारुणिक मनुष्य उठ खड़ा होता है और दुखियों की मदद में अपनी ताकत लगा देता है। शंकराचार्य ने कहा कि व्यक्ति दूसरे की मदद, खुद की मदद की तरह करे। परोपकार समझकर न करे, बल्कि यह समझकर करे कि मैं अपने आप पर ही उपकार कर रहा हूं। पांव में कांटा घुस जाने पर जब दर्द होता हो, तो झट हाथ उसकी मदद के लिए पहुंचता है और कांटा निकाल लेता है। क्या हाथ ने इसमें कोई परोपकार किया? हाथ भी शरीर का हिस्सा और पांव भी शरीर का हिस्सा है। इसे उन्होंने अद्वैत शब्द कहा।

अपने से नीचे वालों की तरफ देखकर जो अपने से ज्यादा दुखी हैं, उनके पास मदद देने के लिए पहुंचना। यानी जैसे पानी नीचे की तरफ दौड़ा जाता है, वैसे ही हर कोई अपने से ज्यादा दुखी की ओर दौड़ा जाए। दरअसल यही एकमात्र सही मार्ग है, बाकी सब अमार्ग हैं।

बाबा कहते थे कि समाज में काम करने के दो तरीके, दो मार्ग होते हैं। एक होता है ऊपर वालों की तरफ देखकर संघर्ष की भावना और बल से, अपनी ताकत से उन्हें एक सतह पर लाना। इसमें मत्सर की भावना होती है। दूसरा मार्ग है, अपने से नीचे वालों की तरफ देखकर जो अपने से ज्यादा दुखी हैं, उनके पास मदद देने के लिए पहुंचना। यानी जैसे पानी नीचे की तरफ दौड़ा जाता है, वैसे ही हर कोई अपने से ज्यादा दुखी की ओर दौड़ा जाए। दरअसल यही एकमात्र सही मार्ग है, बाकी सब अमार्ग हैं। इससे समाज में जो समत्व आएगा, वह करुणामूलक ही होगा। यह दुनिया परमेश्वर ने ऐसी ही बनाई है कि अगर नीचे देखोगे तो मन में करुणा आयेगी और ऊपर देखोगे तो मन में मत्सर आयेगा। सही तरीका नीचे देखना ही है। जिस समाज में मनुष्य का हृदय पानी के समान होगा, वह समाज उन्नत होगा। मैं दरिद्र हूं, दु:खी हूं, मेरे पास जो चीज है, वह काफी नहीं हैं, पर ऐसे भी लोग हैं, जो मुझसे भी दरिद्र हैं, दु:खी हैं। इनकी तरफ ध्यान देने से हमारा जीवन उन्नत बनता है। यही भूदान यज्ञ का रहस्य है। – रमेश भइया

Co Editor Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

2 months ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

2 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.