बाबा ने अपना विश्वास बताते हुए कहा कि मसला कोई भी हो, अहिंसा से ही हल हो सकता है, लेकिन उसके लिए हृदय शुद्धि की आवश्यकता होती है। वैसे तो इस चीज को कल्पना और श्रद्धा से बाबा मानते ही थे, लेकिन इस मर्तबा उसका दर्शन भी हुआ। इसलिए भूदान यज्ञ कोई सामान्य यज्ञ नहीं है।
भूदान यज्ञ अहिंसा का एक प्रयोग है, जीवन परिवर्तन का प्रयोग है। बाबा और हम सब तो निमित्त मात्र हैं। यह कालपुरुष की कहें या परमेश्वर की प्रेरणा ही है कि जहां एक दो फुट जमीन के लिए खून हो जाते हैं, वहां मेरे कहने से लोग सैकड़ों, हजारों एकड़ जमीन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। बाबा कहते थे कि जहां से हम दान लेते हैं, वहां से हृदय मंथन की, हृदय परिवर्तन की, चित्तशुद्धि की, मातृ वात्सल्य की, भ्रातृ भावना की, मैत्री की और गरीबों के प्रति प्रेम की आशा भी करते हैं। जहां दूसरों की चिंता की भावना जागती रहती है, वहां समत्वबुद्धि प्रकट होती है। बैर भाव वहां टिक नहीं सकता। पुण्य में ताकत होती है, पर पाप में कोई ताकत नहीं होती है। प्रकाश में शक्ति होती है, पर अंधकार में कोई शक्ति नहीं होती है। बाबा का काम विचार क्रांति का काम था, क्योंकि एक एकड़ जमीन वाले के मन में एक गुंठा भी देने की वृत्ति का पैदा होना विचार क्रांति ही है। इसी से जीवन प्रगति की ओर बढ़ता है। विचार शक्ति की कोई हद नहीं होती। किसी एक मनुष्य को कभी एक ऐसा विचार सूझता है कि उसी से उसका जीवन बदल जाता है।
बाबा का कहना था कि हर एक मनुष्य के दिल में अच्छे बुरे विचार होते हैं। हर मनुष्य के हृदय में सत असत की लड़ाई चलती रहती है। दान देने से एक दैवी संपत्ति का निर्माण होता है। उसके सामने आसुरी संपत्ति टिक नहीं सकती। आसुरी शक्ति ममत्व भाव का आधार रखती है, वह समत्व नहीं जानती, जबकि दैवी शक्ति समत्व भाव का अधर रखती है। आज हमारे सामने दो बड़े प्रश्न हैं, जागतिक युद्ध या परिशुद्ध प्रेम? यह समस्या विज्ञान की देन है, इसलिए अगर अहिंसा और प्रेम का तरीका आजमाना चाहते हो तो इन जमीनों का ममत्व छोड़ दो। नहीं तो हिंसा का ऐसा जमाना आने वाला है कि उससे न केवल सारी जमीनें, बल्कि उन जमीनों पर रहने वाले भी खत्म हो जायेंगे। अतः दान ही एकमात्र रास्ता है। हम जब कम्युनिस्टों के खतरे वाले मुल्क में जा रहे थे, तो याद आ रही थी वह सभा, जो पवनार गांव से चलकर वर्धा शहर के अंदर लक्ष्मीनारायण मंदिर में आयोजित हुई थी। उसमें बाबा ने सभी से इजाजत लेते समय कहा था कि अभी तो यह आखिरी मुलाकात ही समझो। फिर कब मिलेंगे, आगे का कुछ भी मालूम नहीं।
बाबा शुरू-शुरू में अपना विचार लोगों के बीच में रखते थे तो बहुत छोटा ही लगता था। ऐसे, जैसे नदी का मुहाना बहुत छोटा ही होता है। बाद में वह बढ़ता जाता है। बाद में तो लगने लगा कि इस कार्य में तो क्रांति के बीज छिपे हुए हैं।
बाबा ने एक दिन सभा में कहा कि यह जो जमीन का मसला है, यह अंतरराष्ट्रीय मसला है और इसका हल अगर शांतिमय तरीके से संभव हो जाता है, तो हम देखेंगे कि स्वराज्य प्राप्ति के बाद हमने एक बड़ी भारी खोज कर ली है। पूरी दुनिया ने अहिंसा के जरिये स्वराज्य मिलते देखा है, इसलिए अहिंसा पर अभी सभी को विश्वास है। यह मसला भी अहिंसा से जरूर हल होगा, ऐसा मानें। बाबा शुरू-शुरू में अपना विचार लोगों के बीच में रखते थे तो बहुत छोटा ही लगता था। ऐसे, जैसे नदी का मुहाना बहुत छोटा ही होता है। बाद में वह बढ़ता जाता है। बाद में तो लगने लगा कि इस कार्य में तो क्रांति के बीज छिपे हुए हैं। लोगों ने आकर पूछना शुरू कर दिया कि यह मसला कैसे हल होगा? बाबा का कहना था कि मसले कब और कैसे हल हो जाते हैं, यह दिखाई नहीं पड़ता और कई मसले विश्वयुद्ध के बाद भी बने रहते हैं, यहां तक कि कई बार तो बढ़ ही जाते हैं। यह मसला हम हल कर रहे हैं, ऐसा मानना बहुत बड़ा अहंकार का लक्षण होगा। इस गफलत में रहने के बजाय बाबा का तो स्पष्ट मानना था कि इसमें जो दर्शन हुआ है, उसको हमें ठीक से ग्रहण करना चाहिए। बाबा ने अपना विश्वास बताते हुए कहा कि मसला कोई भी हो, अहिंसा से ही हल हो सकता है, लेकिन उसके लिए हृदय शुद्धि की आवश्यकता होती है। वैसे तो इस चीज को कल्पना और श्रद्धा से बाबा मानते ही थे, लेकिन इस मर्तबा उसका दर्शन भी हुआ। इसलिए भूदान यज्ञ कोई सामान्य यज्ञ नहीं है। – रमेश भइया
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