बाबा का कहना था कि ग्रामोद्योगों से आप कहते हैं वे अपने पैरों पर खड़े रहें। यह तो वही बात हुई कि आप मेरी टांगें तोड़ देते हैं और फिर टांगों पर खड़े रहने को भी कहते हैं। आप शाबाशी दें कि फिर भी हम हाथों के बल चल कर काम चला लेते हैं।
योजना आयोग के एक सदस्य ने कहा कि यह नेशनल प्लानिंग नहीं है, बल्कि यह पार्शियल प्लानिंग अर्थात आंशिक नियोजन है। इसमें किसी न किसी का बलिदान तो होगा ही। इसमें यदि पक्षपात होता है तो वह गरीबों के पक्ष में होना चाहिए। अगर बलिदान ही करना है तो खुद का करें। घर का मालिक हमेशा यह चाहता है कि सारे कुटुम्ब को भोजन और काम अविलम्ब मिले। ठीक इसी प्रकार समाज के बारे में सरकार को भी सोचना चाहिए। अगर यह सिद्धांत मानकर योजना बनेगी तो सारी दृष्टि ही बदल जायेगी। सरकार को तो यह कहना चाहिए कि अमुक तारीख से हम सबको काम देंगे, फिर चाहे उसके लिए जैसा भी संयोजन करना पड़े, करे। परंतु वह तो उल्टा ही कहती है कि हमसे सभी को काम देना संभव नहीं मालूम होता। फिर तो इन लोगों को इस्तीफा दे देना चाहिए।
आपने देहातियों से कपड़े का धंधा छीन लिया और कपड़ों की मिलें खोलीं, तेल का धंधा छीन लिया और तेल की मिलें खोल लीं, गुड़ का धंधा बंदकर शक्कर के कारखाने खोल लिये। इस तरह देहातों को कंगाल बनाकर आपने उन पर एक तरीके से चढ़ाई कर दी। मेरी राय में सुरक्षित जंगलों की तरह कुछ धंधे भी देहातियों के लिए सुरक्षित क्यों नहीं रक्खे जा सकते?
बाबा का कहना था कि ग्रामोद्योगों से आप कहते हैं वे अपने पैरों पर खड़े रहें। यह तो वही बात हुई कि आप मेरी टांगें तोड़ देते हैं और फिर टांगों पर खड़े रहने को भी कहते हैं। आप शाबाशी दें कि फिर भी हम हाथों के बल चल कर काम चला लेते हैं। आपने देहातियों से कपड़े का धंधा छीन लिया और कपड़ों की मिलें खोलीं, तेल का धंधा छीन लिया और तेल की मिलें खोल लीं, गुड़ का धंधा बंदकर शक्कर के कारखाने खोल लिये। इस तरह देहातों को कंगाल बनाकर आपने उन पर एक तरीके से चढ़ाई कर दी। मेरी राय में सुरक्षित जंगलों की तरह कुछ धंधे भी देहातियों के लिए सुरक्षित क्यों नहीं रक्खे जा सकते? ग्रामोद्योग अपने आप नहीं मरे, मारे गए हैं। -रमेश भइया
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