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भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : मुझे गरीबों को जमीन दिलवानी ही है- विनोबा

बाबा ने कहा कि रास्ते में एक काम प्रमुख रूप से मेरी नजर के सामने रहेगा। मुझे गरीबों को जमीन दिलवानी है। जो लोग जमीन पर मेहनत कर सकते हैं, उनके पास आज जमीन नहीं है, यह अच्छी बात नहीं।

बाबा को तेलंगाना में पोचमपल्ली गांव में 100 एकड़ का पहला भूदान मिला, वहां से पवनार आश्रम पहुंचने तक 12000 एकड़ भूमि दान में और मिल चुकी थी। बाबा 27 जून 1951 को परमधाम आश्रम पवनार पहुंच गए। आश्रम में बाबा का कांचनमुक्ति का जो प्रयोग पहले से चल रहा था, उसी में फिर से निमग्न हो गए। उन्हीं प्रयोगों की ताकत के कारण तेलंगाना में पहली सफलता मिल सकी। हमारे अंदर निर्भयता या आत्मविश्वास का जो अनुभव हुआ, वह तो यहीं के काम की देन कही जा सकती है। यात्रा में मेरी वाणी में जो आत्मविश्वास का दर्शन हुआ, उसका आधार तो यहां का काम ही है। यात्रा के दिनों में जो विश्वासमय दर्शन हो रहा था, वह तो यहीं के प्रयोगों का प्रतिफल माना जा सकता है। यहां आश्रम में जो प्रयोग चल रहे हैं, वे प्रचलित समाज व्यवस्था पर कुठाराघात हैं। इसे हम अगर अच्छे से पूरा कर सके, तो उससे नि:संदेह ही संसार का रूप बदलने वाला है। परमधाम आश्रम में अनेक संकल्पों की शुरुआत हुई। उसमें से एक खुद रहट चलाकर कुएं से पानी निकालना था, इस पानी से ऋषि खेती में  जितनी सब्जी पैदा होगी, उसी से आश्रम को चलाना था, इसी श्रृंखला में कपास, तिलहन, ज्वार आदि को भी शामिल माना गया। आश्रम में  फल के कुछ ही पेड़ हो पाए थे, उनसे जो भी शरीफा, पपीता, नीबू, संतरा आदि मिलेगा, वही आश्रम में खाया जायेगा। बाहर बाजार से यह चीजें आश्रम में नहीं आएंगी। नीबू का एक पेड़ ही साल भर नीबू देता रहा, उसका आकार संतरे या मुसम्मी जितना होता था। स्वाद भी सुंदर था। सूत की कताई तो दिनचर्या में ही शामिल हो गई थी। उसके बाद अगला चरण बुनाई का भी पूर्ण कर लिया गया, ताकि कपड़े के लिए बाजार पर आश्रित न रहना पड़े। चाहे बाजार में कपड़ा महंगा बिके या सस्ता, यह आश्रम उससे बिल्कुल प्रभावित न हो। इस आश्रम का मुख्य उद्देश्य स्वाबलंबन ही माना गया था।

आश्रम में बाबा का कांचनमुक्ति का जो प्रयोग पहले से चल रहा था, उसी में फिर से निमग्न हो गए। उन्हीं प्रयोगों की ताकत के कारण तेलंगाना में पहली सफलता मिल सकी।

    बाबा ने माना था कि आश्रम से अक्टूबर में निकलना प्रारंभ करूंगा। लेकिन इसी बीच पंडित नेहरू की ओर से योजना आयोग के सदस्य आरके पाटिल पहली पंचवर्षीय योजना का मसविदा लेकर 10 अगस्त को  विनोबा जी से मिलने पवनार आए। जो चर्चा हुई, वह उन्होंने दिल्ली जाकर नेहरू जी को बतायी। नेहरू जी चाहते थे कि इसके कुछ अंशों पर तफसील से बात करने के लिए बाबा दिल्ली आएं, जिससे विचार विनिमय आसान हो सके। 6 सितंबर को सेवाग्राम में रचनात्मक कार्यकर्ताओं की सभा में बाबा विनोबा ने पाटिल जी से भेंट और नेहरू के आमंत्रण का जिक्र करते हुए कहा कि प्लानिंग कमीशन के मसविदे में दस पांच लकीरें इधर उधर करने से काम नहीं चलने वाला है। 7 सितंबर के सत्र में  कार्यकर्ताओं के समक्ष बाबा ने अपना निश्चय प्रकट किया कि बाबा योजना आयोग से चर्चा करने हेतु 12 सितंबर को उत्तर भारत की पैदल यात्रा पर दिल्ली की तरफ चल पड़ेगा । इस तरह तेलंगाना के बाद भूदान यज्ञ का दूसरा अध्याय शुरू होने का मुहूर्त  घोषित हो गया।  बाबा ने कहा कि रास्ते में एक काम प्रमुख रूप से मेरी नजर के सामने रहेगा। मुझे गरीबों को जमीन दिलवानी है। जो लोग जमीन पर मेहनत कर सकते हैं, उनके पास आज जमीन नहीं है, यह अच्छी बात नहीं। इससे जहां एक ओर उत्पादन कम हो रहा है, वहीं दूसरी ओर भेदभाव और असंतोष भी बढ़ रहा है। इसलिए खेत में काम करने वाले हर एक आदमी को जमीन मिलनी चाहिए। ऐसा प्रण करके 12 सितंबर को बाबा की यात्रा पवनार से प्रारंभ होगी। – रमेश भइया

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