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भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : सबै भूमि गोपाल की

सबै भूमि गोपाल की; यह कहकर बाबा जमीन मांगते समय लोगों को परमेश्वरी न्याय समझाते थे कि जमीन किसी व्यक्ति की नहीं, ईश्वर की देन है।

बाबा जमीन मांगते समय लोगों को परमेश्वरी न्याय समझाते थे कि जमीन किसी व्यक्ति की नहीं, ईश्वर की देन है। ईश्वर ने जैसे हवा, पानी और सूरज की रोशनी सबके लिए पैदा की। जैसे जन्म के मामले में चाहे बच्चा राजा के घर या भिखारी के घर जन्म ले, नंगा ही पैदा होता है। मरने पर भी सभी की देह खाक ही हो जाती है। हम समान जन्म लेते हैं, समान मरते हैं, फिर बीच में ही भेद क्यों होता है? बाबा का सूत्र था दान, यानी काटना अर्थात दान से ब्याज कटता है और त्याग से पूंजी घटती है। दान शाखा को काटता है और त्याग मूल को काटता है। कुछ लोगों की शक्ति दान की होती है। दा धातु का एक अर्थ है देना और दूसरा अर्थ है काटना, अर्थात अपना कुछ काट करके देना। दान तो हमारे यहां नित्य कर्तव्य बतलाया गया है, उसका मतलब है कि धन को अपने पास न रखें, फुटबाल की तरह वह एक के पास से दूसरे के पास जाता रहे। इस तरह धन का नित्य प्रवाह से संविभाग होना चाहिए। गीता में यज्ञ, दान, तप ये तीन कर्म बताए हैं। यही मुख्य हैं। तात्पर्य यह है कि दान का अर्थ दूसरों पर उपकार करना नहीं, बल्कि अपनी चीज का वितरण करना है।

दान का अर्थ दूसरों पर उपकार करना नहीं, बल्कि अपनी चीज का वितरण करना है।

 

बाबा के पास एक दिन सुबह एक व्यक्ति एक एकड़ जमीन दान देने आया, उसके पास तीन सौ एकड़ जमीन थी। बाबा ने उसे समझाया कि इतना कम देने से आपकी बदनामी होगी। बाबा सबकी इज्जत बढ़ाना चाहता है, अमीरों की भी और गरीबों की भी। यदि मुझे आश्रम के लिए जमीन चाहिए होती तो इतनी लेना उचित होता, लेकिन बाबा तो दरिद्रनारायण का प्रतिनिधि बनकर जमीन मांग रहा है। बाबा की इतनी बात समझाने पर उस व्यक्ति ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी मर्जी से 30 एकड़  जमीन दान में दी। इसी प्रकार आगरा के एक परिवार के तीन भाइयों ने बाबा को चौथा भाई मानकर उन्नीस सौ एकड़  मे से पांच सौ एकड़ जमीन का हिस्सा दान में हंसते हुए दिया। बाबा को दस हजार एकड़ वाला सौ एकड़ देने की बात करता तो बाबा नहीं स्वीकारते थे। बाबा दान के बारे में यह भी समझाते थे कि सात्विक, राजस और तामस तीनों प्रकार के दान होते हैं, लेकिन जब आभास हो जाता कि यह राजस या तामस दान है, तो बाबा कहते थे कि आप हमें अपने परिवार का एक सदस्य मानकर दरिद्र नारायण का हक जब तक नहीं देते, तबतक  मैं नहीं लूँगा। भूदान यात्रा में यह सिलसिला तो रोज ही चलता था कि कम जमीन वाले कम जमीन भी दान ले लेते थे, लेकिन बड़े आदमी की अधिक जमीन भी नहीं लेते थे, अगर उसका देने का विचार सही नहीं है। -रमेश भइया

Co Editor Sarvodaya Jagat

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