हमारे खेत में तरह-तरह के निकम्मे झाड़ उगे हुए थे। उनको काटने का जो काम हुआ, उसी का नाम स्वराज्य था। अब स्वराज्य प्राप्ति के बाद उस साफ खेत में परिश्रम करके बीज बोना ही सर्वोदय का कार्य करना है, लेकिन बाबा की पीड़ा यह थी कि बीज बोने के बजाय देश के लोगों को लग रहा है कि यह फसल काटने का समय आ गया है, जबकि खेती में उत्तम परिश्रम करके फसल लाने का नाम ही तो सर्वोदय है। अगर कहीं सर्वोदय शब्द हमारे सामने न आता तो स्वराज्य के बाद हम सब आज ध्येयशून्य ही होते।
बाबा विनोबा यात्रा के समय गांवों में कहते थे कि जब समाज के सामने कोई महान शब्द होता है, तो उससे समाज को शक्ति मिलती है। शब्द की महिमा अगाध होती है। जिस समाज के सामने कोई बड़ा शब्द नहीं होता, वह समाज शक्तिहीन और श्रद्धाहीन बनता है। यह अनुभव हर जमात को हर देश में हुआ है। हमारे देश भारत वर्ष में गत चालीस साल से स्वराज्य शब्द खूब चला है, उसकी ताकत और पराक्रम की महिमा सभी ने देखी है। स्वराज्य शब्द 1906 में हमें दादाभाई नौरोजी ने दिया और 1947 में उसका दर्शन भारत को हुआ, लेकिन इसके साथ ही गांधी जी का निर्वाण भी हो गया।
यहीं से हम सबने गांधीजी के शब्द सर्वोदय को पकड़ा, जो प्राचीन काल से हिंदुस्तान की संस्कृति में रचा बसा हुआ था। बाबा कहते थे कि जबतक देश में स्वराज्य नहीं हुआ था, तबतक हम सब यहाँ से परदेशियों का राज्य हटाने में ही लगे हुए थे। हमारे खेत में तरह-तरह के निकम्मे झाड़ उगे हुए थे। उनको काटने का जो काम हुआ, उसी का नाम स्वराज्य था। अब स्वराज्य प्राप्ति के बाद उस साफ खेत में परिश्रम करके बीज बोना ही सर्वोदय का कार्य करना है, लेकिन बाबा की पीड़ा यह थी कि बीज बोने के बजाय देश के लोगों को लग रहा है कि यह फसल काटने का समय आ गया है, जबकि खेती में उत्तम परिश्रम करके फसल लाने का नाम ही तो सर्वोदय है। अगर कहीं सर्वोदय शब्द हमारे सामने न आता तो स्वराज्य के बाद हम सब आज ध्येयशून्य ही होते।
सर्वोदय शब्द ने हमारे सामने स्पष्ट उद्देश्य रख दिया। वह उद्देश्य ऐसा था, जिसमें सबका उचित समावेश हो सकता है। सर्वोदय शब्द की अद्भुत शक्ति चिंतन से और स्पष्ट होगी। सर्वोदय शब्द हमें यह समझा रहा है कि देश में सब जगह शक्ति संचय हो जाना चाहिए। देश में एक भी घर अशक्त नहीं रहना चाहिए।
सर्वोदय शब्द ने हमारे सामने स्पष्ट उद्देश्य रख दिया। वह उद्देश्य ऐसा था, जिसमें सबका उचित समावेश हो सकता है। सर्वोदय शब्द की अद्भुत शक्ति चिंतन से और स्पष्ट होगी। सर्वोदय शब्द हमें यह समझा रहा है कि देश में सब जगह शक्ति संचय हो जाना चाहिए। देश में एक भी घर अशक्त नहीं रहना चाहिए। अगर हमारा यह लक्ष्य नहीं बनता है, तो हम समाज में वर्गों के झगड़ों की बात करते हैं या कोई खास लोगों के हित की बात सोचते हैं, तो हिंदुस्तान कभी भी सुख से नहीं रहेगा। समाज की शक्तियों का योग साधना ही सर्वोदय का काम है। अगर दूसरी भाषा में कहूं तो सबका हृदय एक बनाना, सबकी भावना एक बनाना और सबकी शक्तियों का समवाय सिद्ध करना ही सर्वोदय का लक्ष्य है। सर्वोदय शब्द से जो स्फूर्ति मिलती है, वह रामनाम जैसी शक्ति है। बाबा का राम तो वही है, जो सबके हृदय में बहने वाला है।
बाबा ने कहा कि आज हिंदुस्तान के हर नागरिक से आशा की जाती है कि उससे जो भी प्रयत्न बन सके, उसे अपनी मातृभूमि के लिए अवश्य करना चाहिए। अगर यह नहीं होगा तो हमारे देश की समस्या हल नहीं होगी। बाबा सर्वोदय का अर्थ समझाते हुए एक आवाहन किया करते थे कि सर्वोदय यानी सबका प्रयत्न। हमारे समाज का एक बच्चा भी ऐसा नहीं रहना चाहिए, जिसने देश के लिए कुछ न कुछ अपने स्तर से सुंदर रचनात्मक काम न किया हो।
व्यक्तिगत प्रयोग, उसमें से व्यक्तिगत क्रांति। सामूहिक प्रयोग, उसमें से सामूहिक क्रांति। सामाजिक प्रयोग, उसमें से सामाजिक क्रांति। ऐसी है अपनी विचारसरणी। व्यक्ति, समूह और समाज; इन तीनों सीढ़ियों से मोक्ष की साधना करनी है। बाबा ने अपने चिंतित मन से कहा कि अभी हमारे मित्रों को हमारे कार्य की गंभीरता की प्रतीति नहीं हुई है। अभी उन्हें यह चंद रोज का खेल लगता है। उसमें उनका दोष नहीं है, बल्कि हमारे इसी जन्म के पूर्व कृत्यों का दोष है। उसे पूर्ण रूप से धो डालने जैसी तपस्चर्या अभी हमारी नहीं हुई है। जब कभी भी होगी, तो हरिकृपा से ही होगी। – रमेश भइया
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उत्तम विचार प्रवाह है।