History

भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : वामनावतार ले लिया था बाबा ने

बाबा कहने लगे कि मैं तो वामन बन गया हूँ और लोगों से कहता हूं कि हमें तीन कदम ही जमीन दे दो, काफी है। गांव वाले समझते हैं कि जो सौ एकड़ जमीन मिली, वह भी हमारी है और जो चार सौ एकड़ जमीन बची, वह भी हमारी ही है। वामन के तीन कदमों में सारा त्रिभुवन ही आ गया था। बाबा कहते थे कि अभी एक गांव को लूटकर आ रहा हूं,  मतलब कि अभी एक भाई से 50 एकड़ जमीन गरीबों को दिलवाई है।

स्वराज्य में भी अगर भूमिहीनता रहे, तो ऐसे स्वराज्य का कोई अर्थ नहीं रहा। वर्ष 1932 में धुलिया जेल में बाबा के मुख से यह शब्द निकला था, जो पूर्ण हुआ वर्ष 1951 में तेलंगाना में. बाबा गांधी जी के निर्वाण के बाद लगभग छः साल नेहरू जी के कहने पर विस्थापितों के पुनर्वास के काम में लगे रहे। सरकार का कहना था कि जो भूमिवान थे, उन्हें भूमि दी जाए और जो भूमिहीन थे, वे यहां भी मजदूरी करें। यह बात बाबा को बिल्कुल पसंद न थी, क्योंकि वे नई रचना में भूमि के प्रश्न पर नए ढंग से विचार कर रहे थे। अधिकतर भूमिहीन मजदूर हरिजन थे, इसलिए बाबा की दृष्टि में हरिजनों और भूमिहीनों का प्रश्न अहम था। उस समय मुख्यमंत्री गोपीचंद भार्गव और राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद हमारे साथ थे ।अंततः निर्णय बाबा ने राजघाट पर जाकर सुनाया।

दुख की बात यह रही कि पंजाब सरकार ने इस निर्णय पर अमल नहीं किया। हरिजन इससे बहुत दुखी हुए। माता रामेश्वरी नेहरू; अध्यक्ष हरिजन सेवक संघ, को तीव्र वेदना हुई। वे बाबा के पास जाकर कहने लगीं कि हरिजन सत्याग्रह करना चाहते हैं। बाबा ने देश की परिस्थिति को ध्यान में रखकर सत्याग्रह न करने की सलाह देना उचित समझा। इस सुसुप्त भावना को भी तेलंगाना में मौका मिल गया। बाबा जिस भी गांव में पहुंचते, लोग जमीन देने को तैयार हो जाते, तो बाबा सोचा करते थे कि यह गांधी जी की कैसी करामात है! लोग गांधी जी का आदमी मानकर जमीन दे रहे हैं, ऐसा तो है ही लेकिन यह परमेश्वर की महिमा भी है कि लोग समझने लगे हैं कि इतनी सारी जमीन अपने हाथ में रखकर कोई ले जाने वाला नहीं है। आखिर इतनी जमीन तो वे लोग खुद भी नहीं जोत सकते, फिर लाभ क्या है?

यह कानून से संभव नहीं होगा, बल्कि दान से ही हो पाएगा। हां, यह जरूर है कि प्रारंभ होता है दान से और समापन होता है कानून से। हम दोनों में यही अंतर है कि वे लाठी और बंदूक से जमीन हड़पना चाहते हैं, जबकि हम प्रेम और दान से जमीन पाना चाहते हैं।

बाबा कहने लगे कि मैं तो वामन बन गया हूँ और लोगों से कहता हूं कि हमें तीन कदम ही जमीन दे दो, काफी है। गांव वाले समझते हैं कि जो सौ एकड़ जमीन मिली, वह भी हमारी है और जो चार सौ एकड़ जमीन बची, वह भी हमारी ही है। वामन के तीन कदमों में सारा त्रिभुवन ही आ गया था। बाबा कहते थे कि अभी एक गांव को लूटकर आ रहा हूं,  मतलब कि अभी एक भाई से 50 एकड़ जमीन गरीबों को दिलवाई है। पीछे के गांवों में भी यही करते हुए आया हूं और तुम्हारे गांव में भी लूटने वाला हूं। कम्युनिस्ट वाले कहते थे कि पांच हजार एकड़ वाला सौ एकड़ जमीन दान में दे रहा है, तो उससे क्या होगा?  बाबा सभी को कहते थे कि तुम सब सब्र रखो। बाकी चार हजार नौ सौ एकड़ भी मेरी ही है. जमीन के साथ प्रेम मिलता है, पहली बार में थोड़ी जमीन देने दीजिए, बाकी फिर हो जायेगा।

बाबा गांव के अनुभव से कहते थे कि यह तो एक फच्चर है, जो एक बार अपना स्थान बना ले, फिर जोर से हथौड़ा मारेंगे और काम तमाम होगा। यह कानून से संभव नहीं होगा, बल्कि दान से ही हो पाएगा। हां, यह जरूर है कि प्रारंभ होता है दान से और समापन होता है कानून से। हम दोनों में यही अंतर है कि वे लाठी और बंदूक से जमीन हड़पना चाहते हैं, जबकि हम प्रेम और दान से जमीन पाना चाहते हैं। – रमेश भइया

Co Editor Sarvodaya Jagat

Recent Posts

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

5 days ago

सर्वोदय जगत – 01-15 मई 2023

  सर्वोदय जगत पत्रिका डाक से नियमित प्राप्त करने के लिए आपका वित्तीय सहयोग चाहिए।…

8 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

1 year ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

1 year ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

1 year ago

This website uses cookies.