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भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : तेलंगाना की यात्रा में बाबा ने महसूस की एक अद्भुत प्रकाश की झलक

 

बाबा ने उन लोगों से कहा कि आज रामनवमी का पावन दिन आप सबके साथ बिताना अत्यंत शुभ रहा है, क्योंकि यह दिन हिंदुस्तान के लिए परम पवित्र दिन है। हां, इतना कष्ट जरूर है कि हमारे कुछ भाई, जो देश की सेवा तो करना चाहते हैं, लेकिन दूसरा ढंग अख्तियार करने के कारण आज जेल में हैं

11अप्रैल, 1951 को शिवरामपल्ली में बाबा सोच रहे थे कि अगर ईश्वर की इच्छा होगी, तो जिन इलाकों में कम्युनिस्ट लोगों ने काम के साथ साथ बहुत ऊधम भी मचाया है, वहां भी पैदल घूम लूं। इसमें सरकार से मदद लेनी होगी, तो यह मदद लूंगा कि इन सबसे मैं दिल खोलकर मिल सकूं और वे लोग बिना पाबंदी के हमसे मिल सकें। आशा है सरकार यह काम करेगी. यदि सरकार इतना करती है, तो मेरी यात्रा न केवल मेरे लिए, बल्कि देश के लिए भी लाभप्रद सिद्ध होने वाली है। तेलंगाना में शांति के लिए पुलिस भेजी जा चुकी है. पुलिस शेरों का शिकार करके शेरों से तो बचा सकती है, लेकिन यहां तकलीफ शेरों की नहीं, बल्कि मानवों की है। भले ही उनके मन में जो कुछ भी चल रहा हो, वह गलत है, लेकिन उनके जीवन में कुछ विचार का भी उदय हुआ है. वहां केवल पुलिस से प्रतिकार संभव नहीं है.कम्युनिस्ट नेता हैदराबाद की जेल में थे, सरकार की मदद से 15 अप्रैल रामनवमी के दिन उनसे मुलाकात हो गई। बाबा के साथ लगभग दो घंटे की बातचीत में उन्हें यह यकीन हो गया कि यह व्यक्ति उनका भी भला चाहता है। बाबा ने उन लोगों से कहा कि आज रामनवमी का पावन दिन आप सबके साथ बिताना अत्यंत शुभ रहा है, क्योंकि यह दिन हिंदुस्तान के लिए परम पवित्र दिन है। हां, इतना कष्ट जरूर है कि हमारे कुछ भाई, जो देश की सेवा तो करना चाहते हैं, लेकिन दूसरा ढंग अख्तियार करने के कारण आज जेल में हैं.

 

हमारी तो भगवान से यही प्रार्थना रहती है कि हमारे सारे विकार मिट जाएं और हमारा हृदय परमेश्वर के ख़ास नाटक के लिए रंगभूमि बनकर भगवद-भावना से भर जाय।

बाबा ने कहा कि आप सब जानते हैं, मैं सर्वोदय समाज का सेवक हूं. सर्वोदय का नाम मेरे लिए भगवान का नाम है। सर्वोदय सबकी चिंता करता है, सबमें आप सब भी शामिल हैं। वैसे तो भगवान जो चाहेगा वही होगा, लेकिन मेरा प्रयास आप सबके हृदय में प्रवेश कर आप सबका मन जीतने का ही होगा। आप सबके साथ एक रूप बनकर सोचने से हमें पूरी रोशनी मिलती है। नहीं तो मनुष्य का दर्शन अधूरा और एकांगी होता है। कोई ऐसा काम, जिसमें हमारा अभिमान नहीं है, हमारा अहंकार भी नहीं है, ऐसी कोई कामना भी नहीं है, फिर भी होने के संकेत मिलें तो समझना होगा कि इसी क्षण भगवान का जन्म हुआ। हमारी तो भगवान से यही प्रार्थना रहती है कि हमारे सारे विकार मिट जाएं और हमारा हृदय परमेश्वर के ख़ास नाटक के लिए रंगभूमि बनकर भगवद-भावना से भर जाय।

यदि यह अनुभव इसी जन्म में आ जाए, तो समझो कि हमारी प्यास यहीं बुझ गयी। लेकिन भगवान के इस आशीर्वाद को पाने के लिए हमें शून्य बनना होगा. बाबा ने राम के बारे में कहा कि राम कोई मनुष्य नहीं थे, बल्कि एक मनुष्य राम के नाम का हो गया। उसकी कीर्ति भी हिंदुस्तान में फैली, लेकिन वह तो परमेश्वर का एक अंश मात्र था। परमेश्वर का जो नाम हम सब लेते हैं, उसकी एक विभूति, उसका एक आविर्भाव, उसका एक रूप वह दशरथी राम भी था। उसी का एक रूप हम सब भी हैं। हमको यह मानव देह इसी का अनुभव लेने के लिए मिली है.

बाबा ने चर्चा के अंत में कहा कि कल मैं आपके राज्य में पैदल घूमने के लिए निकलूंगा. नलगोंडा, वारंगल आदि में लोग काफी दुखी हैं। उनके साथ संबंध जोड़ने जाऊंगा। आप सब यहां जेल में प्रेम के साथ भगवान का चिंतन करते रहें, उसका स्मरण करते रहें और अपने हृदय से सब तरह का दूरी-भाव दूर करें। सबके लिए रहम और सबके लिए प्रेम बनाए रखिए। जात पांत भूल जाइए और सारे मनुष्य एक ही हैं और सबकी हमें सेवा करनी है, ऐसा विचार मन में रखिए। -रमेश भइया

Co Editor Sarvodaya Jagat

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