Writers

बोतलबंद इंडस्ट्री पर एक नजर

भारत में पेयजल

स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित समझा जाने वाला बोतलबंद पानी एक मिथक ही है, क्योंकि बोतलबंद पानी जो सामान्य नल के पानी से ज्यादा सुरक्षित होने का दावा करता है, वह स्वयं में संदिग्ध है। सेण्टर फॉर एनवायरमेन्ट और दुनिया के कई देशों में हुई स्टडी यह बतलाती है। भारत में बोतलबंद पानी के बढ़ते बाजार से भारत में जल एवं जल वितरण व्यवस्था पर कॉरपोरेट नियंत्रण तेजी से बढ़ रहा है। इसे रोकना ही होगा।

पेयजल सहित औसत घरेलू पानी की मांग वर्ष 2000 में 85 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (एलपीसीडी) से बढ़कर क्रमशः 2025 और 2050 तक 125 एलपीसीडी और 170 एलपीसीडी हो जाएगी। इस बीच बोतल बंद पानी की बिक्री में बढ़ोत्तरी हुई है। ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार भारत में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर बॉटल का बाजार 2020 में 36000 करोड़ रुपये का आँका गया था। 2023 के अंत तक इसके 60000 करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की उम्मीद है।

अनुसंधान और विश्लेषण फर्म स्टेटिस्टा की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत में बोतलबंद पानी की खपत 23605 मिलियन लीटर वार्षिक थी, जो 2026 तक लगभग 27444.7 मिलियन लीटर तक पहुंच जाएगी। ये आंकड़े खपत के हैं और इसमें बिना बिका हुआ माल शामिल नहीं है।

22 मार्च 2021 को विश्व जल दिवस पर जारी संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि उस समय भारत, मूल्य के हिसाब से बोतलबंद पानी का 12 वां और मात्रा के हिसाब से 14 वां सबसे बड़ा उपभोक्ता था।


अब सवाल यह है कि यह पानी पीता कौन है। 2019 में अनुमान लगाया गया कि 12.2 प्रतिशत शहरी परिवार पीने के पानी की अपनी जरूरतों के लिए बोतलबंद पानी पर निर्भर हैं, जो 10 साल पहले 2.7 प्रतिशत था। बाहर से आने वाले टूरिस्टों की बढ़ती संख्या इस में शामिल नहीं है, जबकि वे भी बोतलबन्द पानी को ही प्राथमिकता देते हैं। रिटेलर का प्रॉफिट मार्जिन 30 से 55 प्रतिशत तक प्रति बोतल होता है।

भारतीय मानक ब्यूरो के साथ पंजीकृत, पैकेज्ड पेयजल में कारोबार करने के लिए 6,000 से अधिक लाइसेंसशुदा बॉटलर्स हैं। इस संख्या में गैर ब्रांडेड और अपंजीकृत बॉटलर्स शामिल नहीं हैं। 2015 के बाद भिन्न-भिन्न स्वादों मे भी बोतल बंद पानी का उत्पादन और विक्रय आरम्भ हुआ।

उत्तर भारत बोतलबंद पानी का सबसे बड़ा बाज़ार है (60% से ज्यादा), दक्षिण क्षेत्र में बाजार का लगभग 20% और पूर्वी क्षेत्र में सिर्फ 10% का योगदान है। हालांकि आधे से ज्यादा बॉटलिंग प्लांट्स भारत के दक्षिणी क्षेत्र में केंद्रित हैं। भारत में बोतलबंद पानी के संयंत्रों में से 55 प्रतिशत से अधिक चारों दक्षिणी राज्यों में हैं।

जल उपचार संयंत्रों के लिए पानी का मुख्य स्रोत भूजल है, क्योंकि यह आसान है और लगभग मुफ्त है। कंपनियाँ केवल जमीन में एक ड्रिल करती हैं और अपने व्यवसाय के लिए पानी प्राप्त करती हैं।

औसतन पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर बेचने वाला एक सिंगल बॉटलर हर घंटे 5000 से 20000 लीटर भूजल प्रतिदिन निकालता है। ज्यादातर मामलों में यह उद्योग व्यावहारिक रूप से मुफ्त में पैसा कमा रहा है, क्योंकि बाटलिंग कम्पनियां पानी निकालने के लिए सरकार को केवल एक छोटा उपकर ही भुगतान करती हैं। उदाहरण के लिए जयपुर के पास काला डेरा में कोका कोला कम्पनी ने 2000 से 2002 तक, यानी तीन साल में सिर्फ पांच हजार रूपये से कुछ ही अधिक भुगतान किया। बॉटलर्स निकाले गए भूजल के 65 प्रतिशत से अधिक का उपयोग करने का दावा करते हैं। इस तरह भी कम से कम 35 प्रतिशत भूजल की बर्बादी तो होती ही है।


बोतलबंद पानी के लिए पानी निकालने से उस क्षेत्र में भूजल की कमी हो जाती है, जहां से पानी निकाला जा रहा है। उदाहरण के लिए कोका कोला द्वारा बोतलबंद पानी और अन्य पेय के लिए पानी निकालने से 50 से अधिक भारतीय गांवों में पानी की कमी हो गई है। बोतलबंद पानी की बड़े पैमाने पर खपत का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पानी को पैकेज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बोतलों को बायोडीग्रेड होने में 500 से 1000 साल से भी अधिक का समय लगता है। अगर इन्हें जलाया जाता है, तो वे जहरीले धुएं का उत्पादन करती हैं।

1980 के दशक में प्लास्टिक की बोतलों का उत्पाद बाजार में आने के बाद दुनिया भर में बोतलबंद पानी की खपत में बहुत तेजी आयी, जबकि सिर्फ प्लास्टिक की बोतलों के उत्पादन में हर साल 50 मिलियन बैरल पेट्रोलियम का उपयोग होता है, जिसमें अंतिम उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने के लिए आवश्यक जीवाश्म ईंधन और ग्रीनहाउस गैसों की उत्सर्जन लागत शामिल नहीं है।

अनुमान है कि एक लीटर बोतलबंद पानी को पैक करने में करीब तीन लीटर पानी खर्च होता है। यह भूजल स्तर को कम करने और डाउनस्ट्रीम जल आपूर्ति को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। पानी की बॉटलिंग प्रक्रिया, सालाना 2.5 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में छोड़ती है। डिस्पोजेबल पानी की बोतल का कचरा समुद्र में बहता है और हर साल 1.1 मिलियन समुद्री जीवों को मारता है।


अभी भी ऐसे लोग हैं, जिन्हें पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है। भारत में, बोतलबंद पानी उद्योग का राजस्व 40300 करोड़ रु से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है, जबकि यूनिसेफ इंडिया की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में 15 शहरों में 50 मिलियन लोगों की सुरक्षित, किफायती पेयजल तक पहुंच नहीं है।

2018 की वाटरएड रिपोर्ट के अनुसार भारत की 1.3 बिलियन आबादी में से लगभग 163 मिलियन लोगों, यानी 10 में से एक से अधिक को अपने घर के पास साफ पानी की सुविधा नहीं है। दूर से पानी लाने के बाबजूद 91 मिलियन लोगों को सुरक्षित पानी की सुविधा नहीं है।

पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय में राज्य मंत्री रमेश चंदप्पा ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह बात कही कि देश में कुल जनजातीय आबादी के 26.66 प्रतिशत लोगों की पीने के पानी के सुरक्षित स्रोत तक पहुंच नहीं है।


नीति आयोग ने 2018 में बताया कि 2030 तक 40 प्रतिशत भारतीयों के पास पीने का पानी नहीं होगा। यदि इस धन को सार्वजानिक पेयजल प्रणाली पर खर्च कर दिया जाए, तो ऐसे लोगों की संख्या को काफी कम कर सकते हैं, साफ पानी तक जिनकी पहुंच नहीं है।


हमारा मानना है कि स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित समझा जाने वाला बोतलबंद पानी एक मिथक ही है, क्योंकि बोतलबंद पानी जो सामान्य नल के पानी से ज्यादा सुरक्षित होने का दावा करता है, वह स्वयं में संदिग्ध है। सेण्टर फॉर एनवायरमेन्ट और दुनिया के कई देशों में हुई स्टडी यह बतलाती है।

भारत में बोतलबंद पानी के बढ़ते बाजार से भारत में जल एवं जल वितरण व्यवस्था पर कॉरपोरेट नियंत्रण तेजी से बढ़ रहा है। इसे रोकना ही होगा। प्लाचीमाड़ा (केरल), कालाडेरा (जयपुर-राजस्थान) और मेहदीगंज (वाराणसी-उतरप्रदेश) में चले आंदोलनों के कारण इन जगहों के बॉटलिंग प्लांट्स को बंद होना पड़ा।

-उपेन्द्र शंकर

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

1 month ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

1 month ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.