वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि दूध से कहीं ज्यादा लाभप्रद दही का सेवन होता है। दूध की चिकनाई कोलेस्ट्रोल बढ़ाती है, इसलिए हृदय रोगियों के लिए दही का नियमित सेवन अत्यंत लाभकारी माना जाता है। अमेरिका, कनाडा और डेनमार्क जैसे देशों में दही पर अनेक प्रयोग किये गये और परिणामों में यह पाया गया कि दही हृदयरोगियों के लिए रामबाण के समान है। संग्रहणी जैसा असाध्य रोग भी दही के प्रयोग से ठीक किया जा सकता है।
विश्व के लगभग हर कोने में दही का सेवन अनेक रूपों में किया जाता है। रूस के जार्जिया एवं बुल्गारिया आदि के लोग आज भी दही के नियमित सेवन के कारणों से एक सौ वर्ष से ज्यादा उम्र को पार कर जाते हैं।
कोलेस्ट्रोल हृदय रोग बढ़ाता है
दूध की चिकनाई कोलेस्ट्रोल बढ़ाती है, जिसके कारण अधिक दूध पीने वालों को हृदय रोग होने की काफी संभावनाएं बनी रहती हैं। कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ जाने से यह हृदय की ओर जाने वाली रक्त शिराओं को अवरुद्ध कर देता है, फलत: हृदय रोग हो जाता है।
दही कोलेस्ट्रोल घटाता है
दही के संबंध में शोध करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पाया कि दही का बैक्टीरिया एक ऐसे पदार्थ की रचना करता है जो लिवर में कोलेस्ट्रोल का बनना रोक देता है, फलत: दही के सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रोल की रचना में गिरावट आ जाती है। यह ठीक है कि हृदय रोगों में तथा रक्तचाप बढ़ जाने पर दही के सेवन द्वारा रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम हो जाती है, परंतु इसके लिए अभी शोध जारी है कि कितना दही खाने से कितना कोलेस्ट्रोल कम होगा।
दही का परहेज
चरक संहिता के अनुसार दही के सेवन के बारे में कुछ सावधानियां भी कही गयी हैं। उनका पालन न करने से अमृततुल्य दही का प्रभाव कम हो जाता है और अन्यान्य उपद्रवों को जन्म देने वाला भी होता है। फाइलेरिया के रोगियों को दही कदापि नहीं खाना चाहिए।
– दही को तांबे, पीतल, कांसे और एल्युमीनियम के बर्तनों में नहीं रखना चाहिए, इन धातुओं के संपर्क से दही जहरीला हो जाता है। कांच, स्टील, मिट्टी के बर्तनों में रखकर ही दही का प्रयोग करना चाहिए।
– दही को रात में खाने से कफजनित रोग घेर लेते हैं। दही को अकेले नहीं खाना चाहिए तथा गर्म करके भी नहीं खाना चाहिए। इस नियम की अवहेलना करने से ज्वर, रक्तपित्त, कुष्ठ, पाण्डु, याददाश्त की कमी, बुद्धि की कमी, कामला जैसे रोग भी हो सकते हैं।
– दही को हमेशा ताजी अवस्था में प्रयोग कीजिये। अधिक दिनों के रखे दही में पोषक तत्त्व कम हो जाते हैं, जिससे वह हानिकारक हो जाता है।
– दही के सेवन के तुरंत बाद संभोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि लैक्टिड एसिड के साथ वीर्य का संयोग होने पर गर्भ नहीं ठहर सकता, अत: मां बनने की इच्छुक महिलाएं दही खाकर संभोग से हमेशा दूर ही रहें तो अच्छा है।
अन्य बीमारियों पर दही का प्रयोग
– दही में उपस्थित बैक्टीरिया आंतों में जमे गंदे, विषैले कीटाणुओं को नष्ट कर दूषित जल के साथ बाहर कर देता है। नियमित दही सेवन करने वालों को अनिद्रा, कब्ज, अपच, दस्त एवं गैस की तकलीफें नहीं होतीं। भोजन के साथ दही लेने से भोजन शीघ्र पचता है एवं आंतों तथा आमाशय की गर्मी और खुश्की नष्ट होती है।
– उदर रोगों में दही का सेवन भुने जीरे एवं सेंधा नमक के साथ करना चाहिए। शहद या चीनी के साथ मिलाकर दही को प्रात:काल खाने से हृदय पुष्ट होता है, भूख बढ़ती है, रक्त शोधन होता है। दही हृदय एवं मस्तिष्क को शीतलता एवं शक्ति प्रदान करने वाला, स्निग्धकारी, यकृत की शक्ति बढ़ाने वाला तथा वायु-कफ नाशक, बवासीर, संग्रहणी, अतिसार, प्रमेह, श्वेत कुष्ठ आदि रोगों को नाश करने वाला होता है।
– नीम के तेल या दही को शिश्न पर चुपड़कर संभोग करने से गर्भ ठहरने की शंका नहीं रहती है।
– दही में समान मात्र में जैतून का तेल का मिलाकर अविकसित स्तनों पर प्रतिदिन 20 मिनट मलने पर स्तन उन्नत, कठोर व सुडौल तथा आकर्षक बन जाते हैं।
– दही और मलाई को मिलाकर रोज रात को मुख पर मलने से झाईं, कील, मुंहासे, दाग-धब्बे मिट जाते हैं। चेहरे पर इसे मलकर थोड़ी देर बाद धो लीजिये। यह मुख की कांति बनाये रखता है।
– बेसन और दही को मिलाकर शरीर पर उबटन लगाने से शरीर की बदबू दूर हो जाती है तथा सांवला रंग भी गोरा होने लगता है।
– ग्रीष्मकाल में दही की मलाई की सिर पर मालिश करने से अनिद्रा रोग दूर हो जाता है और अच्छी नींद आती है।
– तक्र अथवा छाछ का सेवन करने वाला कभी किसी रोग से ग्रसित नहीं होता है। इसमें अपार रोग निरोधक शक्ति होती है। नित्यप्रति मट्ठा सेवन करने वाला कभी भी तन-मन से बूढ़ा नहीं होता।
– दही में अनार के पत्ते का रस 20 ग्राम, काली मिर्च 2 ग्राम, पानी 100 ग्राम मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) 60 दिनों के अंदर निश्चित रूप से दूर हो जाता है।
-योगाचार्य डॉ ओंकारनाथ
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