कोविड काल की भयावह त्रासदी के बाद कार्डिएक अटैक या कार्डिएक अरेस्ट से मरने की खबरें आम-सी हो गयी हैं। कार्डियोलाजिस्ट चिकित्सकों का भी कहना है कि हृदयरोगियों की संख्या अचानक बढ़ गयी है।
किसी शायर ने कहा है, ‘दिल थाम के रखिए, तूफाँ के गुजर जाने के बाद।’ मतलब यह कि तूफान के समय अफरा-तफरी का माहौल होता है, बहुत कुछ खत्म हो रहा होता है। सबकुछ नहीं तो कुछ भी बचा लेने के लिए लोग कोशिश कर रहे होते हैं। घर-मकान गिर रहे होते हैं, वन-बाग उजड़ रहे होते हैं। और तूफान गुरज जाने के बाद जो बच गये होते हैं, वे मकान भी जर्जर हो चुके होते हैं, जिन्हें ठीक समझकर लोग उनमें रहने लगते हैं, फिर धीरे-धीरे मकान गिरने लगते हैं, कुछ तो एक ही बार में ध्वस्त हो जाते हैं। ऐसा भी होता है कि अफरा-तफरी में तूफान से बचने के लिए किये जाने वाले उपाय भी खतरा बन जाते हैं।
कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव की जिम करते हुए अचानक गिरने की खबर काफी वायरल हुई थी। इसी तरह योगा करती बीएचयू की एक छात्रा की मौत भी चर्चा में रही, गरबा खेलते, रामलीला खेलते, आरती गाते, नाचते हुए अचानक गिर कर मरने की खबरे भी सुनने को मिल रही हैं। विशेषज्ञों कहना है कि कोविड संक्रमण के समय प्रभावित हृदय और फेफड़ों के कारण भी ऐसा हो सकता है, परन्तु इस संदर्भ में बड़े पैमाने पर डाटा उपलब्ध होने पर ही निश्चित रुप में कुछ कहा जा सकता है। हालाँकि कोरोना की दूसरी लहर के समय कुछ चिकित्सकों ने इस बात की आशंका भी जतायी थी। आईएमएस बीएचयू के हृदयरोग विभागाध्यक्ष प्रो ओमशंकर, आयुर्वेद के प्रो जेएस त्रिपाठी तथा प्रो बीके द्विवेदी द्वारा भी यह आशंका जाहिर की गयी थी। कोविड संक्रमण से उबरे लोगों को लगभग 6 महीने तक हृदय व फेफड़े के प्रति सजग रहने के लिए अगाह किया गया था।
अखबारों में पढ़ें या समाचार देखें तो आजकल लगभग हर किसी के दूर या करीब के रिश्तों में अचानक मरने की दुखद खबरें मिलने लगी हैं। अचानक हृदय रोग विशेषज्ञों के पास मरीजों की लाइन भी बढ़ने के खबरें हैं, जो सोचने को मजबूर कर रही हैं, एक भयावह वर्तमान के साथ-साथ भयावह भविष्य के प्रति भी चिंता बढ़ती जा रही है।
इस संबंध में कुछ महामारी विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि लगभग हर आदमी महामारी के चपेट में आ चुका है। बचाव के लिए सेल्फ मेडिकेशन में लिए गये स्टेरायड भी इस स्थिति के कारण हो सकते हैं। कभी-कभी हड़बड़ी में किये गये बचाय के उपाय भी आदमी को ले डूबते हैं।
इस स्थिति के संदर्भ में विश्व प्रतिष्ठित साइंस जर्नल ‘नेचर’ के 4 अगस्त 2022 के अंक में सायमा-मे-सिद्दीक की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसके अनुसार एक अमेरिकन कार्डियोलाजिस्ट स्टुअर्ट को दिसम्बर 2022 में वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद बुखार आकर जल्द ही उतर गया, परन्तु अगले दो सप्ताह तक खाँसी, शरीर में दर्द और ठंड महसूस होने के लक्षण बने रहे। इस बीच स्टुअर्ट न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में अपनी डयूटी करते रहे। वे क्रिसमस के दिन काफी स्वस्थ महसूस करने लगे थे, लेकिन सुस्ती फिर भी महसूस होती रही, सीढ़ियाँ चढ़ने तथा तेज कदमों से चलने पर भी साँस फूलने लगती थी। इस स्थिति से निपटने में स्टुअर्ट को कई महीने लग गये। इन लक्षणों ने हृदयरोग विशेषज्ञ प्रो स्टुअर्ट को चिंचित करना शुरू कर दिया, क्योंकि कोविड-19 से उबरने के बाद महीनों तक हृदय के प्रभावित रहने की संभावना थी, जो उचित चिकित्सकीय देखभाल न होने पर जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकती थी।
प्रो स्टुअर्ट ने स्वयं के अनुभव को अपने सहकर्मियों को बताया और आगे अध्ययन के लिए कहा। वृद्ध चिकित्सा विभाग में अध्ययन शुरू किया गया, जिसमें पाया गया कि ऐसे हालात से बहुत सारे मरीजों को गुजरना पड़ रहा है। कोविड-19 से स्वस्थ होने के बाद कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं एक साल तक बनी रह रही हैं, जिससे हर्ट अटैक व कार्डिएक अरेस्ट के खतरे बने हुए हैं। जो लोग पहले किसी हृदय रोग से पीड़ित थे, उनके साथ यह खतरा अधिक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हल्के संक्रमण के बाद जो लोग पूरी तरह स्वस्थ दिख रहे हैं, उनमें ये जटिलताएं वर्षो तक बनी रह सकती हैं, जो हर्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण भी बन सकती हैं। छोटे-छोटे कई अध्ययनों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि कोविड से अरबों लोग संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जिन्हें पता भी नहीं चल पाया कि वे संक्रमित हुए थे। इन हालात में कोरोना महामारी के बाद कार्डियोवैस्कुलर महामारी की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। फिलहाल इस संदर्भ में अधिक आंकड़े एकत्र किये जा रहे हैं। व्यापक आँकड़े आने का बाद ही निश्चित तौर पर कुछ कहा जा सकता है। इस बीच शोधकर्ता यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि सबसे अधिक जोखिम में क्या है, दिल से जुड़ी ये परेशानियां कब तक जोखिम बनी रह सकती हैं और इन लक्षणों का क्या कारण हो सकता हैॽ
इसी अध्ययन से जुड़े एक अन्य प्रो काट्ज कहते हैं कि ‘हम नहीं समझते कि यह जोखिम आजीवन बना रह सकता है या कुछ दिन बाद खत्म हो सकता है। दिल का दौरा या स्ट्रोक या हृदय संबंधी अन्य घटनाएँ कैसी रहेंगी, अभी हम कुछ नहीं कह सकते हैं। यहाँ वैज्ञानिक भी प्रकृति को देख रहे हैं।
सेंट लुइस विश्वविद्यालय, वाशिंगटन के महामारी वैज्ञानिक ज़ियाद अल-एली के नेतृत्व में शोधकर्त्ता, 150,000 से अधिक लोगों पर किये गये एक तुलनात्मक अध्ययन में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि असंक्रमित लोगों की तुलना में तीव्र संक्रमित लोगों में दिल की सूजन और फेफड़ों में खून का थक्का जमने, डायबिटीज के अनियंत्रित होने की समस्याएं पायी गयी हैं।
इस संदर्भ में वैज्ञानिकों का एक समूह वैक्सिनेशन को लेकर भी सशंकित है। अमेरिका में सॉनफ्रांसिस्को से प्रकाशित एक प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल क्यूरियस के जनवरी-2022 के अंक में ‘कार्डियोपल्मोनरी अरेस्ट आफ्टर कोविड-19 वैक्सिनेशन’ पर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसमें शोधकर्ता मदीहा सुभान वलीद, फिलिस सुएन आदि की टीम ने एक 56 वर्षीय व्यक्ति का अध्यनन किया है, जिसका कोविड-19 संक्रमण या इसके पूर्व किसी प्रकार के कार्डियोवेस्कुलर या कार्डियोपल्मोनरी रोग का इतिहास नहीं था, परन्तु बूस्टर डोज लेने के बाद अचानक कार्डियोपल्मोनरी अटैक हुआ। हाँलाकि इस रोगी को त्वरित चिकित्सा के दौरान बचा लिया गया, फिर भी इस वैक्सीन के प्रति-प्रभाव की संभावना को बल मिलता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस संबंध में अधिक अध्ययन और आंकड़ों की जरूरत है। कोई विकल्प न होने की स्थिति में वैक्सीन लेने से मना भी नहीं किया जा सकता है।
इस क्रम में कनाडा के अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि दूसरे चरण के वैक्सिनेशन के बाद युवाओं में मायोकार्डाइटिस और पेरिकार्डाइटिस (हृदय में सूजन) पायी गयी। अलग-अलग 8000 लोगों पर 46 अध्ययन किये गये। बूस्टर डोज के बाद अधिक संख्या में लोग प्रभावित पाये गये हैं। इस तरह के विचार अनेक वैज्ञानिकों के हैं। इसके संबंध में वैज्ञानिक वैक्सिनेशन का अन्तराल बढ़ाने की राय दे रहे हैं। हाँलांकि इस तरह की सूचनाएं आम नहीं हो पा रही हैं, आज भी वैक्सिनेशन पर सरकारों द्वारा जोर दिया जा रहा है, परन्तु इन रिपोर्ट्स के आधार पर कुछ चिकित्सकों, अधिवक्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बाम्बे हाईकोर्ट में महापालिका द्वारा वैक्सिनेशन को मेंडेटरी किये जाने के विरुद्ध याचिका डाली है, कोर्ट ने उन अधिकारियों को नोटिस भी जारी किया है।
फिलहाल सारे खतरों को देखते हुए इस समय हृदय और फेफड़ों के प्रति सजग रहने का समय है। चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के अनुसार कोविड संक्रमित व वैक्सिनेटेड लोगों के अलावा भी साँस फूलने और ब्लड प्रेशर के असंतुलन जैसे लक्षण मिलते ही अपने चिकित्सक से अवश्य सम्पर्क करना चाहिए। साथ ही सरकार और चिकित्सक संस्थानों को भी अलर्ट रहने की जरूरत है, अन्यथा हालात बिगड़ने पर कोविड जैसी अफरातफरी मच सकती है।
-डॉ आर अचल पुलस्तेय
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