मोहन हीराभाई हीरालाल
हिंसा पर आधारित अर्थव्यवस्था का आधार लेना हमारी गलती है. विषमता इसी से जन्म लेती है. व्यक्तिगत मालकियत हिंसा आधारित अर्थव्यवस्था का हासिल है. ज्ञान की प्रक्रिया में भी कुछ को ज्यादा ज्ञानी मानना खुद के प्रति हिंसा है. कोई विशेष है, इसलिए उसका ज्ञान भी विशेष है, यह मान लेने से हम सही सत्य का दर्शन नहीं कर सकते. प्रकृति की सर्व समावेशी व्यवस्था को अगर हम स्वीकार नहीं करते तो यह भी हिंसा को ही जन्म देने वाली बात है. हिंसा पर आधारित यह ज्ञान हमें समझाता है कि और कोई विकल्प नहीं है. हिंसा पर आधारित इस व्यवस्था की इन बुनियादों के निर्माता हम खुद हैं. यह बात भूलकर और इसके लिए औरों को जिम्मेदार मानकर अक्सर आक्रोश व्यक्त करते हैं.जो इस व्यवस्था को बदल सकता है, वह इसके लिए खुद को जिम्मेदार समझता ही नहीं.
हिन्द स्वराज में आज से सौ साल पहले ही इस विषय पर बात हो रही थी. गांधी ने सर्वोदय विचार की बुनियादी बात लिखी कि विदेशी शासन इस देश में इसलिए नहीं है कि वह हमसे अधिक ताकतवर है, बल्कि इसलिए है कि हम उनसे कहते नहीं कि आपकी हमें जरूरत नहीं है. हम अपनी व्यवस्था खुद ठीक कर सकते हैं. यदि हम समाज को बदलना चाहते हैं, यदि हम युद्ध नहीं चाहते, यदि हम समतामूलक समाज का सपना देखते हैं, तो सर्वोदय विचार ही इस सपने को संभव कर सकता है. हिन्द स्वराज में गाँधी विकल्प की बात पर बाद में आते हैं, पहले जो स्थिति है, उसे स्वीकार करने को कहते हैं. स्वराज क्या है, इसे समझने से पहले यह समझना जरूरी है कि स्वराज क्या नहीं है. स्वराज क्या है, इसे विनोबा ने स्वराज्य शास्त्र लिखकर समझाया. सर्वसहमति से लिए गये फैसलों की प्रक्रिया से कोई एक आदमी भी छूटना नहीं चाहिए. जबतक कोई एक भी असहमत है, तबतक निर्णय नहीं होगा, यह दुनिया की सबसे अच्छी व्यवस्था है. संघर्ष के हिंसक रास्ते से आदमी कमजोर होता है. सर्वोदय ही वह व्यवस्था है, जिसमे अन्तिम आदमी के मत का भी मूल्य होता है.
‘गाँधी; जैसा मैंने देखा समझा’ किताब में विनोबा सर्वोदयी की कमजोरियों की चर्चा करते हैं. सबसे बड़ी कमी यह कि हमलोग अध्ययन नहीं करते. यह हमारी सबसे कमजोर नस है. सतत अध्ययनशीलता की कमी से ही हममें अधिकतर कमजोरियां आई हैं. तो इस तरह बहुमत को नकारकर सर्वसहमति का स्वीकार करके, आर्थिक असमानता के खिलाफ संघर्ष करके और व्यक्तिगत मालकियत से मुक्ति पाकर हम सर्वोदय की दिशा में सशक्त कदम उठा सकते हैं. यह सर्वोदय की कमजोरी है कि हमलोग अपने ही विचार को सम्भव नहीं मान पाते. हमारा मन्त्र जय जगत, हमारा तन्त्र ग्राम स्वराज और हमारा लक्ष्य विश्व शांति; यह हमारा नारा था. खुद से पूछकर देखिये, कितने लोगों को याद है. हम अपना नारा ही भूल बैठे हैं, जबकि यही भाव तारेगा हमें.
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