News & Activities

दुनिया में हमारी पहचान हैं गांधी!

अमेरिका में सक्रिय है गांधी ग्लोबल फेमिली

अमेरिकी मानते हैं कि महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर का यह रास्ता ही सभी वैश्विक समस्याओं को हल करने का रास्ता है.

यह मेरी चौथी अमेरिका यात्रा थी. अपनी इन यात्राओं में मैंने देखा है कि सम्पन्न अमेरिकी भारतीय स्वयं को किसी भी अमेरीकी से कमतर नहीं मानते, जबकि अमेरीकी लोगों की सोच इससे भिन्न है. अमेरीका फर्स्ट का मतलब ही यह है कि गैर अमेरिकी लोग इस देश में उनके मुकाबले दोयम हैं.
अफ्रीकन-अमेरिकन अश्वेत लोगों की स्थिति में आज भी कोई जमीनी बदलाव नहीं दीखता. आपको स्थान-स्थान पर ‘Black lives matter’ के बोर्ड और बैनर लगे मिलेंगे, परंतु क्या सचमुच उनके प्रति समानता एवं सम्मान का व्यवहार है, यह शोचनीय विषय है. बेरोजगारी में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. अस्पृश्यता का आलम यह है कि श्वेत और अश्वेत बस्तियां एक साथ नहीं होतीं, मात्र कुछ अपवाद छोड़ कर. बेरोजगारी और गरीबी की वज़ह से अपराध दर भी इन लोगों में ज्यादा है और जेलों में भी इनकी संख्या अधिक है.

अमेरिकी आजादी के 365 साल के इतिहास में अश्वेतों की स्थिति बदली जरूर है परंतु कोई खास बदलाव नहीं आया है. अगर आप बराक ओबामा के राष्ट्रपती अथवा कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने से यह मानते हों कि समूचा ब्लैक समुदाय प्रगति कर गया है, तो यह सच नहीं है. हम भारतीयों की स्थिति भी अमेरिका में बड़ी विचित्र बन जाती है. हम अश्वेत लोगों के साथ नहीं खड़े होते, क्योंकि हम रंग के हिसाब से खुद को गोरों के निकट मानते है .दूसरी ओर गोरे हमें रंग में अपने निकट न मान कर अश्वेतों जैसा मानते हैं और हम काले-पीले के चक्कर में न इधर के हैं, न उधर के. महात्मा गाँधी हमें भारतीय मुद्रा पर तो छपे अच्छे लगते हैं और अपनी राष्ट्रीय पहचान के रूप में भी, इसके इलावा हमें न तो उनसे कोई मतलब है और न ही कोई सरोकार. नेहरू, इंदिरा, पटेल, सुभाष आदि के बारे में भी हमसे ज्यादा शायद ये काले-गोरे जानते हैं.


ऐसा नहीं कि अमेरिकी भारतीय अपने देश से प्यार नहीं करते. स्वतंत्रता दिवस आदि राष्ट्रीय पर्व खूब उत्साहपूर्वक मनाते हैं. अपने त्योहार भी खूब मनाते हैं. भारतीय मन्दिरों को भरपूर चंदा भी देते हैं, भारतीय नेताओं तथा राजनीति में भी दिलचस्पी है, परंतु वापस भारत आने का सवाल आते ही एक अज़ीब तरह की नकारात्मक चुप्पी छा जाती है. इन्हें भारतीयता तो चाहिए, परंतु भारत नहीं. इस बार की यात्रा में इस पहलू को भी सीखने-समझने का अवसर मिला.

हाई स्कूल तक की शिक्षा यहाँ बिल्कुल निशुल्क है, परंतु उच्च शिक्षा में धनाढ्यों का आरक्षण है. अमेरिकी भारतीयों के लिए यह महँगी ही नहीं, लगभग अनुपलब्ध भी है. बड़े-बड़े विश्वविद्यालय कॉर्पोरेट अथवा शिक्षा माफिया के कब्जे में हैं, उद्योग बंद होने के बाद बेरोजगारी चरम सीमा पर है और इसका प्रभाव सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग, खासकर अश्वेतों पर है. अमेरिका खुद तो मात्र अस्त्र-शस्त्र, बोइंग और दवाइयां ही बनाता है, जबकि अन्य सभी जीवनोपयोगी वस्तुओं का आयात करता है. उद्योग और पूंजी पर निर्मित इसकी वैश्विक अर्थव्यवस्था आज चरमरा रही है और यह विश्व महाशक्ति अपने ही बोझ के तले दबी हुई है. अमेरिकी इतिहास में मुद्रास्फीति सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है. इससे निपटने के लिए जरुरत से ज्यादा करेंसी छाप कर मार्केट में दी गई है. आम जनता की जरूरत के सामानों की कीमतें आसमान पर पहुंच चुकी हैं और इसके सबसे बड़ा शिकार हैं आम नागरिक, मेहनतकश अवाम और अश्वेत लोग.

मैंने फिलाडेल्फिया में पाया कि इस एक नगर में ही चार तरह के अमेरिका पल रहे हैं. पहला अति सम्पन्न लोगों का, जिनकी बस्तियों में स्वर्ग का आभास है. दूसरा मध्यम वर्ग का, जिनके रहन सहन से ही उनकी स्थिति का आभास होता है. तीसरा निम्न आय वर्ग का, जिनमें अधिकांश अश्वेत लोग हैं, जिनका जीवन वैसा ही है, जैसा भारत में स्लमवासियों का होता है. इनकी संख्या बहुतायत में है, जबकि मिडल क्लास अमेरीका में दुनिया भर के मुकाबले सबसे कम है. चौथे वे युवा हैं, जो जीवन से हताश होकर नशे में डूबे हुए हैं. एक पूरा इलाका ही ऐसे लोगों ने हथियाया हुआ है. यहां पुलिस भी है, परंतु नशे को रोकने के लिए नहीं, अपितु नशेड़ी लोगों को एक ही स्थान तक महदूद रखने के लिए. विडम्बना यह है कि इन नशेड़ियों में बड़ी तादात गोरों की है, जो इस बात का सूचक है कि व्यवस्था दरक रही है.

अमेरिका प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म राज्य है. यहां जगह-जगह अलग-अलग समुदायों के गिरिजाघर है हमारी पुरानी व्यवस्था के मुताबिक अस्पृश्य प्रवेशविहीन धर्मस्थल भी यहां आप देख सकते हैं. ब्लैक चर्च एक आम बात है और क्योंकि वह ब्लैक है, अतः इसकी स्थिति भी इसके नाम के अनुसार अत्यंत दीन-हीन और निकृष्ट है. बड़े शहरों में गगनचुंबी इमारतें, सड़कें, उद्यान, प्राकृतिक झीलें बेशक विकास की सूचक हैं, परंतु इन्हीं उद्यानों अथवा खाली स्थानों पर बेघर लोगों की झुग्गियों के दर्शन एवं सभी प्रमुख चौराहों पर भिखारियों की संख्या भी नगरीय विकास का बखान करती है. भारत में तो यह आम बात है, परंतु हम विकसित देश नहीं हैं, अमेरिका तो अति विकासित देश है, फिर ऐसा क्यों ?

यहां रह रहे विभिन्न देशों के नौजवानों ने हमारे देश की आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाकर दिखाया कि दुनिया भर को रास्ता दिखाने वाले हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा का संदेश दिया था. अमेरिकी मानते हैं कि महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर का यह रास्ता ही सभी विश्व समस्याओं को हल करने का रास्ता है.

–राममोहन राय

Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

1 month ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

1 month ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.