-प्रेम प्रकाश
साल 2014 को कौन भूल सकता है भला! राजनीतिक तौर पर भारी उथल पुथल का साल! कहने को तो यह लोकसभा चुनाव के बाद मात्र सरकार बदलने का साल था, लेकिन इतिहास में दर्ज हुआ कि कालान्तर में सरकार बदलने की यह घटना लोकतांत्रिक संस्थाओं, लोकतांत्रिक मन और लोकतांत्रिक सिस्टम के विनाश का वायस बनी. इतना ही नहीं, बात हद से आगे बढ़ी और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुनी गयी एक सरकार को लोगों ने अघोषित डिक्टेटरशिप की तरफ बढ़ते और बेहिचक चलते देखा. कोई नहीं जान पाया कि इतिहास के इस पन्ने की पटकथा तीन साल पहले से ही कैसे कैसे लिखी जा रही थी. देश को लोकतंत्र बने 75 साल होने को आये. इतना समय लोकतांत्रिक मानस के परिपक्व होने के लिए पर्याप्त होना चाहिए. हम सुनते आये हैं कि इस देश में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं. कहा जाता है कि इस देश का मतदाता लोकतांत्रिक रवायतों में अपने मिजाज़ का इतना पक्का हो चुका है कि कोई लोकतंत्र की भावना से खिलवाड़ करना चाहे भी तो नहीं कर सकता. लेकिन 2014 में इस देश के लोकतान्त्रिक मन के साथ जो खिलवाड़ हुआ, उसका दंश यह देश अबतक भुगत रहा है. अभी न जाने कबतक भुगतेगा.
कौन भूल सकता है कि उस दौर में भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) के पद पर बैठे एक शख्स ने भारत सरकार के कोल माइंस और नेट स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया पर न सिर्फ गम्भीर सवाल उठाये थे, बल्कि अपने विधिक अनुमानों में तथाकथित प्रक्रियागत गलतियों के चलते भारत सरकार को लाखों करोड़ रूपये के घाटे की घोषणा भी की. कैग की इस रिपोर्ट ने देश में कोहराम मचा दिया, वहीं राजनीतिक हलकों में विपक्ष की बांछें खिल गयीं. इस रिपोर्ट को आगामी चुनावों में भुनाया गया. भारत के लोगों द्वारा चुनी हुई तत्कालीन सरकार के विरोध में माहौल बनाया गया और अंततः इस माहौल का पूरा राजनीतिक लाभ उठाया गया.जाहिर है, इस तरह की रिपोर्ट और खिलाफ बने माहौल से सरकार रक्षात्मक मुद्रा में आ गयी. प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह से जब इस बाबत सवाल पूछे जाने लगे तो एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि इतिहास मेरे प्रति इतना निर्मम नहीं हो सकता. वह अवश्य मेरे साथ न्याय करेगा. बदली हुई परिस्थितियों में आज मनमोहन सिंह का वह बयान याद आता है.
तत्कालीन कैग विनोद राय ने 2014 में ही एक टीवी चैनल ‘टाइम्स नाऊ’ को दिए एक इंटरव्यू में एक सफेद झूठ बोला था. कहा था कि कांग्रेस के एक नेता संजय निरुपम ने उनसे कहा है कि कोल ब्लाक घोटाले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम नहीं आना चाहिए. इस बात को उस समय देश के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने खूब कवरेज दिया और यह झूठ इतनी बार बोला गया कि लोगों को सच लगने लगा. महौल यह बनाया गया कि प्रक्रिया में भ्रष्टाचार हुआ है और उसमें मनमोहन सिंह की भी भूमिका है. यद्यपि संजय निरुपम ने सार्वजनिक बयान में कहा कि यह झूठ है और इस झूठ के लिए विनोद राय को माफी मांगनी चाहिए, लेकिन उन्होंने माफी नहीं मांगी. तब संजय निरुपम कोर्ट में गए. उस मामले में कोर्ट में जब अपने पक्ष में कोई सबूत नहीं पेश कर पाए, तो विनोद राय को 29 अक्टूबर 2021 को संजय निरुपम से लिखकर माफी मांगनी पड़ी. कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने एक वीडियो जारी करके कहा कि विनोद राय को कोल ब्लाक और 2 जी घोटाले की कहानी गढ़ने के लिए पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए. उल्लेखनीय है कि 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में कोई सबूत न पेश कर पाने के लिए कोर्ट ने जांच एजेंसी पर गम्भीर सवाल उठाए थे। सात वर्षों तक सुनवाई के बाद भी जांच एजेंसी कोई सबूत नहीं पेश कर पाई. यह रिपोर्ट भी विनोद राय ने ही तैयार की थी।
यह माफीनामा सामने आते ही सोशल मीडिया पर कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के साथ हुए षड्यंत्र पर लोगों ने खुलकर बोलना शुरू किया. बिहार के पूर्व सांसद पप्पू यादव ने तो यहाँ तक कहा कि विनोद राय ने देश के साथ गद्दारी की है. ऐसे में उनको माफी नहीं मिलनी चाहिए, बल्कि फांसी की सजा होनी चाहिए. टू जी स्पेक्ट्रम और कोयला आवंटन प्रक्रिया में लाखों करोड़ के फर्जी घोटाले का दुष्प्रचार कर, न सिर्फ एक बेईमान सरकार देश पर थोप दी, बल्कि टेलीकॉम सेक्टर और बिजली सेक्टर तक को तबाह कर दिया. पत्रकार शकील अख्तर सवाल उठाते हैं कि विनोद राय किसके लिए काम करते थे, इसका खुलासा होना चाहिए. यह तो सबको मालूम है कि उनको, अन्ना हजारे और दूसरे लोगों को लोकतंत्र की हत्या की किसने सुपारी दी थी. कांग्रेस के राज में ही तरक्की पाकर वे कैग बने थे. लेखक अशोक कुमार ने कहा कि विनोद राय ही वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर रहते हुए राजनीतिक दलों को वह मुद्दा दिया, जिसको उछालकर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाए गए. अन्ना आंदोलन के लिए तो यह सब खाद-पानी था.
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