यदि बापू आज जीवित होते तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री को अपने आश्रम में चरखा चलाते हुए देखकर बहुत प्रसन्न होते। पिछले दिनों भारत के दौरे पर आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपनी गुजरात यात्रा के दौरान साबरमती आश्रम में चरखा चलाया और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। बोरिस जॉनसन उसी देश के प्रधानमंत्री हैं, जिसने लगभग 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया और साबरमती आश्रम, जिसमें उन्होंने चरखा चलाते हुए बहुत सारी तस्वीरें भी लीं, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह का केंद्र हुआ करता था। आजकल इस ऐतिहासिक आश्रम का स्वरूप बदलकर उसे तथाकथित विश्वस्तरीय पर्यटन केंद्र बनाने की कवायद चल रही है. इसके लिए सरकार लगभग 12 सौ करोड़ रूपये खर्च करने जा रही है, जबकि यहाँ आने वाला हर व्यक्ति, चाहे वह देशी हो या विदेशी, सामान्य नागरिक हो या राष्ट्राध्यक्ष, सभी इस आश्रम की सादगीपूर्ण ऐतिहासिक दिव्यता देखने ही आते हैं, तथाकथित विश्वस्तरीय भव्यता देखने नहीं.
बोरिस जॉनसन अपनी भारत यात्रा के दौरान साबरमती आश्रम जाने वाले पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री हैं। भारत की आजादी के बाद गुजरात का दौरा करने वाले भी वे ब्रिटेन के पहले प्रधानमंत्री हैं। यह एक ऐतिहासिक घटना है और इसमें ब्रिटेन के लिए एक बड़ी सीख छिपी है। बोरिस जॉनसन ने साबरमती आश्रम की विजिटर बुक में एक विशेष संदेश भी लिखा। उन्होंने लिखा कि महात्मा गांधी जैसे असाधारण व्यक्ति के आश्रम में आना उनके लिए सौभाग्य की बात है। उन्होंने यहां आकर समझा कि कैसे गांधी जी ने दुनिया को बेहतर बनाने के लिए सत्य और अहिंसा के सरल सिद्धांतों का इस्तेमाल किया। उन्होंने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए एक ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि वह भी सभी की तरह साबरमती आश्रम में आकर अभिभूत महसूस कर रहे हैं. इस समय जब दुनिया में तनाव है, शांति पर गांधी जी के विचार इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
बोरिस जॉनसन उसी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैं, जो कभी महात्मा गांधी और उनके चरखे से बहुत नफरत करता था। पूर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल ने एक बार गांधी को ‘हाफ ने केड फकीर’ कहा था। दरअसल विंस्टन चर्चिल ऐसा कहकर गांधीजी और उनके चरखे का मजाक उड़ा रहे थे. इसके अलावा, विंस्टन चर्चिल ने 1943 में भारतीयों की तुलना जानवरों से की थी। उस समय संयुक्त बंगाल में अकाल था और विंस्टन चर्चिल कह रहे थे कि भारत के लिए कोई भी मदद अपर्याप्त होगी, क्योंकि भारतीय खरगोशों की तरह बच्चे पैदा करते हैं। बोरिस जॉनसन आज उसी भारत में आकर खुद को भाग्यशाली और धन्य महसूस कर रहे हैं। यह समय का चक्र है, जो ब्रिटेन को उसका असली चरित्र दिखा रहा है। जिस चरखे के साथ बोरिस जॉनसन ने साबरमती आश्रम में फोटो खिंचवाई, उसी चरखे से स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार को नफरत थी।
चरखे की कहानी की शुरुआत गुजरात के साबरमती आश्रम से ही होती है. दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद गाँधी जी ने 25 मई 1915 को अपना पहला आश्रम स्थापित किया। यह आश्रम अहमदाबाद के कोचरब में था और क्षेत्रफल में बहुत बड़ा नहीं था, जिसके कारण बापू वहां पशुपालन और खेती नहीं कर पा रहे थे। इसके बाद 17 जून 1917 को उन्होंने इस आश्रम को साबरमती नदी के किनारे एक बड़े स्थान पर स्थानांतरित कर दिया। इसी को आज साबरमती आश्रम या गांधी आश्रम के नाम से जाना जाता है। बापू 1927 से 1930 तक इसी आश्रम में रहे और इस दौरान उन्होंने इस आश्रम से कई बड़े आंदोलनों और भूख हड़तालों की शुरुआत की।
आजादी मिलने से पहले बापू चाहते थे कि भारत के लोग विदेशी कपड़े पहनना छोड़ दें और अपने लिए खुद कपड़े तैयार करें। इस अपील का भारत के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। उस समय भारत के अधिकांश किसान और उनके परिवार चरखा चलाने के लिए प्रेरित हुए थे। यह चरखा अंग्रेजों के खिलाफ बम से भी ज्यादा शक्तिशाली हथियार बन गया था। इसके बाद बापू ने भारत के लोगों के बीच चरखे के महत्व को कभी कम नहीं होने दिया। अंग्रेज प्रधानमन्त्री बोरिस जॉनसन द्वारा हृदयकुंज में बैठकर चरखा चलाने का यह दृश्य देखकर इतिहास के कितने ही पन्ने एक बार फिर से जीवित हो उठे. साबरमती आश्रम की अपनी यात्रा के दौरान बापू के जीवन में गहरी दिलचस्पी लेने वाले ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने जब बापू के दांडी मार्च के बारे में जाना तो एकबारगी संकोच में पड़ गये और चकित रह गये. उन्होंने शर्मिंदा होते हुए अपने साथ आये ब्रिटिश उच्चायुक्त एलेक्स एलिस से पूछा कि क्या हमलोग भारत में नमक पर भी कर लगाते थे? सकारात्मक जवाब मिलने पर उन्होंने कहा, ‘बेहद आश्चर्यजनक।’ बाद में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को चरखे की एक प्रतिकृति भी भेंट की गई। इसके अलावा साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरियल ट्रस्ट ने बोरिस जॉनसन को दो पुस्तकें भी उपहार में दीं.
बोरिस जॉनसन से पहले 5 विदेशी राष्ट्र प्रमुखों ने साबरमती आश्रम की विजिटर्स बुक में क्या लिखा?
अहमदाबाद आने वाला हर विदेशी प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति यह सुनिश्चित करता है कि वह एक बार ऐतिहासिक महत्व रखने वाले साबरमती आश्रम जरूर जाए। यहाँ आने वाला प्रत्येक देशी अथवा विदेशी मेहमान आश्रम की आगंतुक लॉग बुक में अपने विचार लिखकर जाता है. आइये, साबरमती आश्रम की यात्रा कर चुके कुछ राष्ट्राध्यक्षों के नोट्स पर एक नज़र डालें।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 28 अप्रैल को आगंतुक पुस्तिका में लिखा- इस असाधारण व्यक्ति के आश्रम में आना और यह समझना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है कि उन्होंने दुनिया को बेहतर बनाने के लिए सत्य और अहिंसा के ऐसे सरल सिद्धांतों को कैसे संगठित किया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प-2020: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फरवरी 2020 में अपनी पहली भारत यात्रा पर थे, जब उन्होंने अपनी पत्नी मेलानिया ट्रम्प के साथ साबरमती आश्रम का दौरा किया। उन्होंने आगंतुक पुस्तिका में लिखा कि भारत के प्रधानमन्त्री को इस अद्भुत यात्रा के लिए धन्यवाद। इस संदेश के लिए सोशल मीडिया पर ट्रम्प की बहुत आलोचना हुई, क्योंकि उनके संदेश में महात्मा गांधी का कोई उल्लेख नहीं था।
इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू-2018: जनवरी 2018 में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अपनी भारत यात्रा के दौरान अहमदाबाद आए थे। उन्होंने महात्मा गांधी को मानवता के सबसे महान पैगम्बरों में से एक बताया और लिखा, ‘मानवता के प्रेरणा के महान पैगम्बरों में से एक महात्मा गांधी के आश्रम की एक प्रेरक यात्रा।’
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो-2018: कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने फरवरी-2018 में साबरमती आश्रम का दौरा किया। ट्रूडो ने अपने परिवार के साथ चरखा चलाना भी सीखने की कोशिश की। आगंतुक पुस्तिका में कनाडा के प्रधानमंत्री ने लिखा, ‘शांति, नम्रता और सच्चाई का एक सुंदर स्थान, जिसकी आज भी उतनी ही आवश्यकता है, जितनी पहले थी।’
जापानी पीएम शिंजो आबे-2017: सितंबर 2017 में, जापानी प्रधान मंत्री शिंजो आबे अपनी दो दिवसीय भारत यात्रा के दौरान अहमदाबाद आए। उन्होंने आगंतुकों की लॉग बुक में जापानी में एक संक्षिप्त संदेश में लिखा, ‘लव एंड थैंक्स.’
चीनी प्रधान मंत्री शी जिनपिंग-2014: चीनी प्रधान मंत्री शी जिनपिंग अपनी तीन दिवसीय भारत यात्रा के दौरान सितंबर 2014 में अहमदाबाद पहुंचे, उन्होंने आश्रम की आगंतुक पुस्तिका में रघुपति राघव राजा राम के भजन की पृष्ठभूमि में लिखा था।
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