गुजरात के खेड़ा जिले के करमसद गाँव के एक पटेल-पाटीदार परिवार में जन्मीं मणिबेन के जीवन में सादगी, सेवा, ईमानदारी, आस्था और समर्पण का अनूठा मेल था। वे पिता सरदार वल्लभभाई पटेल और माता झवेर बा (1878-1909) की इकलौती सन्तान थीं। उनका जन्म 3 अप्रैल, 1903 को हुआ था।
मणिबेन की शिक्षा मुम्बई के क्वीन मैरी स्कूल से प्रारम्भ हुई; उन्हें बाद में अहमदाबाद हाई स्कूल में प्रवेश दिलाया गया। वर्ष 1925 में उन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
गाँधीजी की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उन्होंने 1918 में मात्र 15 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन की गतिविधियों में भाग लेना प्रारम्भ किया और महात्मा गाँधी द्वारा प्रारम्भ किए गए रचनात्मक कार्यों में भी भागीदारी की। वह नियमित रूप से अहमदाबाद के साबरमती आश्रम जाती थीं। वहाँ लोगों की दिनचर्या में हाथ भी बंटाती थीं।
साबरमती आश्रम के दैनिक कार्यों में लोगों के सहयोग के अतिरिक्त उन्होंने खेड़ा किसान सत्याग्रह से सम्बन्धित गतिविधियों के संचालन के लिए भी अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। खेड़ा सत्याग्रह में सरदार वल्लभभाई पटेल स्वयं उपनेता थे। इसके अतिरिक्त मणिबेन ने असहयोग और खिलाफत आन्दोलन, ऐतिहासिक बारडोली किसान सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। बारडोली किसान संघर्ष में तो मात्र पचीस वर्ष की आयु में उन्होंने स्वयं गोलन में स्थापित सत्याग्रह-छावनी को नेतृत्व प्रदान किया था।
एक अग्रणी स्वाधीनता सेनानी के रूप में वे उपनिवेशवादी सरकार द्वारा कई बार बन्दी बनाई गयीं। कस्तूरबा गाँधी के साथ उन्हें 1939 में लोगों के एक देशी राज्य में अधिकारों और स्वतंत्रता की माँग को लेकर सत्याग्रह में भाग लेने के कारण राजकोट में बन्दी बनाया गया था। इसी प्रकार मणिबेन ने व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940) और भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) में भी भागीदारी की। उन्होंने अपने जीवन के बारह वर्षों से भी अधिक विभिन्न कारागारों में बिताए।
1930 के बाद से महात्मा गाँधी और सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा समय-समय पर प्रारम्भ किए गए सभी रचनात्मक व सामाजिक कार्यों में मणिबेन अति सक्रिय रहीं।1935 में बोरसद में लोगों की प्लेग से रक्षा में उनके प्रयास और कार्य अनुकरणीय रहे।
इसी प्रकार 1947 में देश की स्वतंत्रता के उपरान्त केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की प्रबन्ध समिति और पश्चिम रेलवे सुधार बोर्ड की सदस्य के रूप में उनकी सेवाओं के अतिरिक्त कस्तूरबा स्मारक न्यास इंदौर, कस्तूरबा प्रसूति गृह खेड़ा और नवजीवन ट्रस्ट अहमदाबाद की आजीवन ट्रस्टी के रूप में भी उनके कार्य अनुकरणीय थे। मणिबेन का यह दृढ़ विश्वास था कि सेवा का कोई विकल्प नहीं है। सेवा मानवता की कसौटी है। मनुष्य की सेवा ईश्वर की सेवा है, नर-सेवा नारायण-सेवा है; निस्स्वार्थ सेवा ही जीवन को सार्थक बनाने का मार्ग है।
मणिबेन पटेल ने विवाह नहीं किया और अपना पूरा जीवन अपने पिता सरदार पटेल को उनके महान राष्ट्रीय कार्यों में सहयोग करते हुए समर्पित कर दिया। वे अपने पिता के लिए बहुत सुरक्षात्मक थीं और इस बात का पूरा ध्यान रखती थीं कि उसके अधीन कार्य करने वाले राजनीतिक रूप से महत्वाकांक्षी लोगों के कारण सरदार पटेल कभी पश्चाताप या लज्जा के शिकार न हों। लोकसभा के पहले अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर ने इसीलिए मणिबेन के सम्बन्ध में एक बार कहा था कि भारत सदैव उनका आभारी रहेगा, क्योंकि वे अपने पिता की सेवा के माध्यम से भारत की सेवा कर रहीं थीं।
सरदार पटेल की सचिव के रूप में कार्य करते हुए, उन्होंने उन हजारों अभिलेखों, पत्रों और सूचनाओं का लेखा-जोखा संभालकर रखा, जो सरदार के जीवन और कार्यों से सम्बन्धित और गाँधीवादी युग में भारत के राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन की लगभग सभी प्रमुख घटनाओं से जुड़ा था। वह लेखा-जोखा समकालीन-आधुनिक भारतीय इतिहास की एक अमूल्य निधि है।
1950 में कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कोषाध्यक्ष नियुक्त होने के अतिरिक्त, मणिबेन 1952 और 1980 के बीच संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, के लिए कई बार निर्वाचित हुईईं। 26 मार्च 1990 को 86 वर्ष की आयु में उनका अहमदाबाद में निधन हो गया। मणिबेन को अपनी श्रद्धाञ्जलि में एनजी रंगा ने कहा था कि भारत सरदार पटेल की मौन रहने वाली, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति वाली बेटी का, उसकी अनुकरणीय लोक-सेवा-भावना, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए, कृतज्ञता के साथ ऋणी है।
-डॉ रवीन्द्र कुमार
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