उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि, लखनऊ के संग्रहालय सभागार में साबरमती आश्रम में भारत सरकार द्वारा सुन्दरीकरण करके आश्रम के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ करने के विरोध में एक संगोष्ठी का आयोजन 24 अक्टूबर को किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता सेवानिवृत्त आईएएस विनोद शंकर चौबे थे. संगोष्ठी की अध्यक्षता स्वर्ण केतु भरद्वाज ने की.
सभी वक्ताओं ने एक स्वर से कहा कि महात्मा गांधी ने अपने जीवन काल में टालस्टाय आश्रम, फिनिक्स आश्रम, भारत में विभाजन के बाद दंगों के दौरान, कोलकाता में कारागार के दौरान, आगाखान महल, साबरमती आश्रम, सेवाग्राम आश्रम, अनासक्ति आश्रम कौसानी आदि मे जहां जहां निवास किया था, ये स्थान उनकी सात्विकता, सादा जीवन, समता, न्याय, मितव्ययिता, खानपान, शुचिता तथा सादगी को व्यक्त करते हैं. पर्यटकों व गांधी दर्शन के श्रद्धालुओं को ये स्थान महात्मा गांधी की उपस्थिति का अनुभव व आभास कराते हैं. साबरमती आश्रम के निर्माण के स्वरूप को बदलना, महात्मा गांधी की आध्यात्मिकता को नष्ट कर भौतिकता की ओर ले जाएगा. यह गांधी विचारों के साथ ही नहीं, गांधी जी ने जिन निवास स्थलों में सादा जीवन व्यतीत किया था, उनके स्वरूप के साथ भी हिंसा होगी।
सरकारें ध्यान दें, गांधी आश्रमों को उनके मूल स्वरूप में ही वैश्विक धरोहर के तौर पर अक्षुण्ण रखा जाए और आवश्यकता पड़ने पर उनके मूल स्वरूप के अनुसार ही मरम्मत का कार्य कराया जाए। संगोष्ठी में प्रधानाचार्या अमर जहां, बहादुर राय, सर्वेश चंद्र गुप्ता, सदानंद, उदय खत्री और हिमांशु आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
-लाल बहादुर राय
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