बापू ने सुब्रह्मण्यम भारती में क्या देखा
1919 के मार्च महीने में गांधी जी मद्रास में थे। चक्रवर्ती राज-गोपालाचारी के घर पर उनका डेरा था। एक सुबह गांधी जी के कमरे में उनके साथ राजाजी, तमिल भाषा में धुआंधार भाषण के लिए ख्यात एस. सत्यमूर्ति, सालेम के प्रतिष्ठित वकील अधिनारायण चेट्टियार, संक्षेप में ‘वा. रा.’ के नाम से विख्यात वी. रंगास्वामी और महादेव भाई बैठे थे। अधिनारायण चेट्टियार गांधी जी के लिए जूस बना रहे थे और वा. रा. दरवाजे पर खड़े थे कि कोई अचानक आकर चर्चा में विघ्न पैदा न करे। इतने में धोती और पगड़ी पहने हुए एक आदमी अंदर आया, जिसे वा. रा. रोक नहीं पाए। रोकने का प्रयास भी नहीं किया। उस आदमी ने गांधी जी को नमस्कार किया और गांधी जी के ही तख्त पर बैठ गया। अपना परिचय देने की शायद उसने जरूरत नहीं समझी और सीधे बातचीत शुरू कर दी। ‘मि. गांधी, आज शाम को मैंने शहर में एक सभा का आयोजन किया है, जिसकी अध्यक्षता आप करें, ऐसा मैं चाहता हूँ।’ गांधी जी ने महादेव भाई की ओर देखा और पूछा कि शाम का समय खाली है क्या? महादेव भाई ने कहा कि आज शाम आप व्यस्त हैं, लेकिन दूसरे दिन की शाम खाली है। गांधी जी कुछ बोलते, इसके पहले ही उस आदमी ने कहा कि ‘कल मैं व्यवस्त हूँ, मेरे लिए संभव नहीं होगा।’ इतना कहकर गांधी जी के कामों की सराहना करते हुए, उनको आशीर्वाद देकर वह आदमी चला गया।
गांधी जी ने पूछा कि यह आदमी कौन था? राजा जी ने उत्तर दिया कि वे हमारी भाषा के सुविख्यात कवि सुब्रह्मण्यम भारती थे। वा. रा. और बाकी नेताओं को भारती का व्यवहार अच्छा नहीं लगा। बगैर समय मांगे मिलने आना, गांधी जी के ही तख्त पर बैठ जाना, गांधी जी को मि. गांधी कहकर संबोधित करना, अपनी व्यवस्तता की गांधी जी की व्यस्तता से बराबरी करना और आशीर्वाद देना बड़ा अजीब लगा। उनके चेहरों पर नाराजगी नजर आ रही थी। विशेष रूप से इसलिए कि सुब्रह्मण्यम भारती गांधी जी से 14 साल छोटे थे। लेकिन गांधी जी, राजा जी और अन्य नेताओं से बोले—‘यह आदमी हमारी धरोहर है, इनका ध्यान रखा जाय।’
क्या देखा था गांधी जी ने भारती जी में? उक्त मुलाक़ात के बाद सुब्रह्मण्यम भारती ने असहयोग आदोलन में हिस्सा लिया। कारावास की सज़ा हुई। कारावास में उनके साथ ज्यादती की गई, शारीरिक रूप से कमजोर तो वे थे ही, दो साल के बाद 1921 में केवल 39 वर्ष की आयु में ही वे चल बसे। मृत्यु के पहले भारती ने गांधी जी पर पांच काव्य लिखे, जिनमें उन्होंने गांधी जी को अवतार-पुरुष के रूप में निरूपित किया। वैसे सुब्रह्मण्यम भारती के व्यवहार को लेकर गांधी जी भी चिढ़ सकते थे, जिस तरह अन्य नेता चिढ़े थे। गांधी जी के पास तो नाराज होने का अधिक कारण भी था, क्योकि भारती जी ने उन्हीं की अवमानना की थी, लेकिन गांधी जी तो कहते हैं कि यह आदमी हमारी धरोहर है, इनका ध्यान रखा जाय।
गांधी जी ने सुब्रह्मण्यम भारती की आँखों में लगन और तीव्रता और वाणी में प्रामाणिकता देखी थी। गांधी जी ने यह भी देख लिया था कि दुनिया की परवाह नहीं करने वाला यह एकलवीर युवक शारीरिक रूप से कमजोर है, लेकिन मन का मजबूत है। इसीलिए उन्हें महसूस हुआ कि भारती धरोहर हैं और धरोहर का जतन होना चाहिए, बाकी सब चीजें गांधी जी के लिए गौण थीं।
कोई आदमी निकम्मा नहीं होता है, बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही समय दिखाती है, यह इवेंट और मैनेजमेंट का युग है और मैनेजमेंट गुरू बारबार गांधी जी का हवाला देते रहते हैं। गांधी जी का मैनेजमेंट अपने आप में अभ्यास का विषय बन गया है। लोगों को ताज्जुब होता है कि भारत की चेतनाहीन प्रजा को इस आदमी ने किस तरह आंदोलित किया कि आसेतु हिमालय कंपन का दुनिया ने अनुभव किया।
मैनेजमेंट गुरू जिसे गांधी जी का मैनेजमेंट कहते हैं, वह वस्तुतः गांधी जी की साधना थी। किसी भी आदमी को गांधी जी पूर्वानुमान, पूर्व धारणा या पूर्वाग्रह से नहीं देखते थे, चाहे उस आदमी के बारे में अच्छा-बुरा कुछ भी सुनने में आया हो। किसी भी आदमी के वाह्याचार, वाणी, वस्त्र-परिधान, समाज में स्थान या प्रतिष्ठा से गांधी जी प्रभावित नहीं होते थे। किसी भी आदमी ने अतीत में उनके साथ क्या व्यवहार किया, इसके बदले में गांधी जी उसके साथ व्यवहार नहीं करते थे। गांधी जी हर आदमी को पूर्णत: स्वीकार करते थे, जिसमें उसकी अपूर्णता भी आ जाती थी। अपूर्णता का होना उनके लिए करुणा का विषय था, न कि चिढ़ का। और उसे दूर करना साधना का विषय था। पूर्वानुमान और भले-बुरे व्यवहार से प्रभावित होकर किसी के साथ व्यवहार करना गांधी जी अन्याय समझते थे, पाप समझते थे।
सुब्रह्मण्यम भारती अपनी बात कहने आए थे और उनके व्यवहार की ओर न देखते हुए उनको पूरी ईमानदारी से सुनना और समझना गांधी जी के लिए धर्म था। इसी धर्म का पालन करते हुए उनको ध्यान में आया कि यह आदमी हमारी धरोहर है और उसका ख्याल रखना हमारा धर्म है।
रमेश ओझा
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