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गांधी की जय हम क्यों बोलें!

किसी व्यक्ति के जीवन की महत्ता और अर्थवत्ता पर ही उसके नाम पर लगने वाले नारों की गुणवत्ता निर्भर करती है। इसलिए अक्सर जब गांधीजी के नाम पर नारे लगते हैं, तो लगता है कि इसके पीछे जरूर कुछ ठोस कारण होंगे, जो लोगों को प्रभावित करते हैं.

कई बार सभाओं, जुलूसों, पदयात्राओं आदि में जब नारे लगाये जाते हैं, तो वहां मौजूद लोग भी उन नारों से आसमान गुंजा देते हैं। नारे लगाना भी एक कला है। यह जरूरी नहीं है कि नारे लगाने वाले के पीछे उठने वाली आवाजें उन नारों की भावनाओं से प्रेरित भी हों। हाल ही में इसी तरह की एक पदयात्रा में शामिल होने का अवसर मिला तो देखा कि एक बहुत ही उत्साही व्यक्ति अचानक नारे लगाने लगा- ‘महात्मा गांधी की जय’। आदत के मुताबिक बाकी लोग भी इस जय-जयकार में शामिल हुए। पता नहीं क्यों, अचानक मेरे मन में यह सवाल उठा कि लोग ऐसा क्यों करते हैं, उठती हुई आवाजों में अपनी भी आवाज़ मिलाने के लिए? या फिर परंपरा के कारण? मुझे लगता है कि अधिकतर लोग बिना सोचे समझे अपनी आवाज उठाते हैं। वास्तव में, किसी व्यक्ति के जीवन की महत्ता और अर्थवत्ता पर ही उसके नाम पर लगने वाले नारों की गुणवत्ता निर्भर करती है। इसलिए अक्सर जब गांधीजी के नाम पर नारे लगते हैं, तो लगता है कि इसके पीछे जरूर कुछ ठोस कारण होंगे, जो लोगों को प्रभावित करते हैं। आइये, विचार करें कि गांधीजी की ऐसी कौन सी चारित्रिक विशेषताएं हो सकती हैं, जिनके कारण लोगों के मन में इतना उत्साह जन्म लेता है।

महात्मा गांधी केवल एक दार्शनिक, एक बुद्धिमान व्यक्ति, एक आदर्शवादी ही नहीं थे, वे एक व्यावहारिक आदर्शवादी व्यक्ति भी थे। गांधीजी हमेशा एक सरल और सीधे-सादे मानवतावादी बनकर जिये। उनके पास अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प की शक्ति थी। गांधीजी हमेशा समय की निष्ठा पालन करने में सक्रिय रहते थे। उन्होंने एक अत्यंत सरल, साधारण और अनाडम्बरयुक्त जीवन शैली चुनी, जिसने दूसरों को उनके प्रति आकर्षित किया। उन्होंने स्वच्छ वातावरण के लिए स्वच्छता को अभियान बनाया। गांधीजी के लिए सत्य ही ईश्वर था। वे आजीवन शाकाहारी भोजन के प्रति आग्रही रहे। एक पारंपरिक हिंदू के रूप में अपनी पहचान उन्होंने कभी नहीं छुपायी और हमेशा धार्मिक कट्टरता से मुक्त रहे। ‘सर्वधर्म समभाव’ उनका मुख्य मंत्र था। वे धर्मनिरपेक्षता में दृढ़ विश्वास रखते थे। उन्हें गीता प्रिय थी। किसी भी तरह की गोपनीयता को वे पाप मानते थे। उनका जीवन झरने की बारीक धार की तरह स्पष्ट था। उन्होंने अपने निजी जीवन की कमजोरियों को छिपाने का कभी कोई प्रयास नहीं किया। दूसरों को कोई सलाह देने से पहले उन्होंने हमेशा उसे अपने जीवन में लागू किया। किसी भी चीज़ के बारे में वास्तविक सच्चाई जाने बिना कोई टिप्पणी करने या कार्यक्रम लेने से उन्होंने हमेशा परहेज किया। आत्मालोचन में उन्हें कभी कोई झिझक न थी। प्रार्थना को वे जीवन का अविभाज्य अंग मानते थे। उन्होंने कभी भी अपनी राय को अंतिम नहीं माना, न ही उसे दूसरों पर थोपा। उन्होंने विज्ञान को बहुत महत्व दिया, लेकिन विज्ञान के अमानवीय पक्ष के कटु आलोचक थे। हालांकि वे मशीनरी के समर्थक थे, लेकिन कभी भी मनुष्य पर मशीनरी के वर्चस्व की वकालत नहीं की।
उन्होंने हमेशा लक्ष्य और पथ की शुद्धता पर जोर दिया। उनके पास उग्र भाषण देने की कला नहीं थी, फिर भी लोग उनके शांत वचन से आकर्षित होते थे। मोहित हो जाते थे। उनमें जनमत निर्माण की तकनीक और हुनर था। उन्होंने लोगों को टुकड़ों में नहीं, समग्रता में देखा। उन्होंने गाँव और गाँव के लोगों को अधिक महत्व दिया। यद्यपि वे अहिंसा के उपासक थे, तथापि उन्होंने आत्मरक्षा में हिंसा के प्रयोग को उचित माना। उन्हें प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत भरोसा था। अधिक से अधिक लोगों के कल्याण के बजाय सभी का कल्याण उनका मुख्य उद्देश्य था, इसी विचार से सर्वोदय की उत्पत्ति होती है। खादी और कुटीर उद्योगों को शामिल करने के लिए वे बड़े उद्योगों के विस्तार को सीमित करना चाहते थे, ताकि सभी को काम मिले। संपत्ति के व्यक्तिगत स्वामित्व को रोकने के लिए उन्होंने ट्रस्टीशिप पर जोर दिया। उन्होंने नीतिगत प्रश्नों पर कभी समझौता नहीं किया। शारीरिक श्रम पर आधारित नई तालीम शिक्षा प्रणाली को विकसित करने में वे अधिक रुचि रखते थे। उनका विचार, भावना और दर्शन किसी देश की सीमाओं में सीमित नहीं था। वे बहुलवादी संस्कृति में अधिक रुचि रखते थे। उन्होंने मनुष्य की आत्मिक शक्ति को अधिक महत्व दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि मानव मन को बदला जा सकता है। अस्पृश्यता के खिलाफ उनका अटूट संघर्ष था। सत्याग्रह उनके जीवन संघर्ष का मुख्य हथियार रहा। वे एक सच्चे व साहसी प्रतिवादी थे। पंचायती राज के माध्यम से आम लोगों का सशक्तिकरण उनके राजनीतिक विचारों में से एक था। उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को महत्व दिया। वे सबसे बुरे शत्रुओं के साथ भी घृणा किए बिना मैत्री करने की कोशिश करते थे। उनके उदार हृदय का गहरा प्रेम उनकी ताकत था। दूसरों के दोष देखने के बजाय अपने दोष देखने को वे अधिक महत्वपूर्ण मानते थे।

ऐसी विशिष्टताओं वाले व्यक्ति को महापुरुष के अलावा भला और क्या कहा जा सकता है! जो लोग गांधीजी को ईश्वर या नबी बनाकर उनकी पूजा करना चाहते है, मैं उन लोगों से सहमत नहीं हूं। समाज में महापुरुषों की उपस्थिति मानव समाज को सही मार्ग की खोज के लिए प्रेरित करती है। जो साधारण होते हुए भी असाधारण होते हैं, मानव होते हुए भी महामानव होते हैं, नाथूराम गोडसे जैसे कितने ही हत्यारे आ जाएं तो भी, वे कभी नहीं मरते। गांधीजी की महान मानवीय विचारधारा भले ही आम लोगों को कभी-कभी वास्तविकता से परे लगती हो, एक समय जरूर आएगा, जब गांधीजी के आदर्श मानवता के लिए एकमात्र अपरिहार्य विकल्प के रूप में देखे जाएंगे।

आज सारे विश्व में सही मार्गदर्शक का संकट है। मार्गदर्शक वह है, जिसने अपने मन को इस तरह की झंझटों से पूरी तरह मुक्त कर लिया है। शत्रु के सैकड़ों सैनिकों को पकड़ना और जीतना आसान है, लेकिन उतना ही कठिन है अपने मन को जीतना। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में जो करके दिखाया है, उसके लिए उनके नाम का जयघोष करना बहुत ही स्वाभाविक है।

-चंदन पाल

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