गांधी को बंदूक की तीन गोलियों से नही मारा जा सका। अब मारने वाले और उनके आका परेशान हैं कि शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी गांधी किस तरह जीवित हैं? वे यह सोच कर हैरान हैं कि उनका नाम पूरे विश्व में इतने आदर के साथ कैसे और क्यों लिया जा रहा है? हमारे देश के प्रधानमंत्री जब भी विदेशों का दौरा करते हैं तो गांधी का नाम लेते हैं। प्रमुख देशों के शासनाध्यक्ष जब भारत आते हैं तो मोदी जी उन्हें साबरमती आश्रम ले जाना नहीं भूलते। फिर भी उनकी पार्टी के लोग तरह तरह के हथकंडे अपनाकर गांधी विचार को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे जितने भी प्रयास हो रहे हैं, उन सब की दुर्गति होती है। इन प्रयासों में भारतीय जनता पार्टी के साथ साथ हिंदूवादी संगठनों के प्रमुख नेताओं की भी भरमार है, जिसमें हरियाणा सरकार के मंत्री अनिल विज, भोपाल की सांसद संसद प्रज्ञा, साक्षी महाराज और विभिन्न सरकारों से प्रश्रय पाकर बने कई महामंडलेश्वर भी इनमें शामिल हैं।
केंद्र सरकार 12 सौ करोड़ रुपए खर्च करके बापू के साबरमती आश्रम और उसकी पुरातनता को नेस्तनाबूद करने पर तुली हुई है। 100 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैले बापू के आश्रम और उनकी प्रयोगस्थली को केवल 5 एकड़ में सीमित करके शेष क्षेत्र को कंक्रीट के जंगल से चकाचौंध करने जा रही है, ताकि साबरमती आने वाले विजिटर्स को बापू की सादगी, सत्य, अहिंसा, तपस्या का माहौल देखकर जो प्रेरणा मिलती थी, वह अब सैर सपाटे की जगह में तब्दील हो जाए। लोग बापू के घर को देख कर तो चले जाएंगे, परंतु उनके त्याग, तपस्या और सादगीपूर्ण जीवन को इस चकाचौंध मे छिपा दिया जायेगा। इस आश्रम को पर्यटन स्थल में बदलने का जो कार्यक्रम चल रहा है, उसका विरोध करने के लिए पिछले वर्ष बापू के सेवाग्राम आश्रम से साबरमती आश्रम तक एक यात्रा भी निकाली गई थी। भारत सरकार साबरमती आश्रम की भांति सेवाग्राम आश्रम में प्रत्यक्ष रूप से तो कोई हस्तक्षेप नहीं कर रही है, पर ऐसा लगता है कि साबरमती आश्रम में भारत सरकार की योजना का विरोध करने के लिए सेवाग्राम आश्रम को भी सबक सिखाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के एक विभाग खादी और ग्रामोद्योग आयोग को माध्यम बनाया गया है।
29 मार्च 2022 को सेवाग्राम आश्रम में भारत सरकार के खादी विभाग के निदेशक का एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें मंत्रालय के ‘खादी मार्क’ रेगुलेशन का संदर्भ देते हुए यह बताया गया है कि बिना प्रमाण पत्र के खादी नाम का उपयोग कर सेवाग्राम आश्रम से अप्रमाणित खादी वस्त्रों की अवैध/ अनधिकृत रूप से बिक्री हो रही है। यदि इसे तुरंत प्रभाव से बंद नहीं किया जाता है तो आपके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाएगी। इसका अर्थ है कि गांधी जी के समय से जो कताई बुनाई का काम इस आश्रम में किया जा रहा था, वह बंद करवा दिया जायेगा और अन्य खादी संस्थाओं से खादी वस्त्र लेकर जो बिक्री की जा रही है, उसे रोक दिया जायेगा। गांधी जी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके जीवित रहते जो आश्रम पूरे देश में खादी के माध्यम से लोगों को स्वावलंबी बना कर अंग्रेजी हकूमत के विरुद्ध खड़ा करने के लिए कार्य कर रहा था, उसे आजाद भारत में एक दिन अपनी ही सरकार द्वारा कठघरे में खड़ा कर दिया जायेगा। यहां लाखों की संख्या में लोग बापू कुटी देखने आते हैं। चरखे की तान पर प्रत्यक्ष कताई, बुनाई देखकर मंत्रमुग्ध होते हैं और वहीं से देश की आजादी का चोला खादी का यह वस्त्र खरीदते भी हैं। इतने पवित्र, शुद्ध और आस्था के मंदिर से ख़रीदे गए खादी वस्त्र को सरकार का ‘खादी मार्क’ क्या शुद्ध करेगा?
भारत सरकार तथा खादी ग्रामोद्योग आयोग ने राष्ट्रपिता के विश्व प्रसिद्ध सेवाग्राम आश्रम को, जहां वे चरखा कातते थे, फैब इंडिया जैसी कंपनी के समकक्ष खड़ा कर दिया है, जिस पर उसने खादी मार्क नहीं लेने के कारण मुकदमा दायर करके 500 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा है। जब यह कानून लागू किया जा रहा था, तब देश की लगभग सभी खादी संस्थाओं ने आचार्य विनोबा भावे द्वारा गठित ‘खादी मिशन’ के माध्यम से इसका विरोध किया था। मंत्रालय के इशारे पर खादी ग्रामोद्योग आयोग ने संस्थाओं पर दबाव बनाकर उन्हें विज्ञान भवन में एकत्रित किया और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को गुमराह कर उनके माध्यम से इस अप्रिय कानून और खादी मार्क का शुभारंभ करवाया।
कोई भी मार्क वस्तुओं की गुणवत्ता के प्रतीक स्वरूप होता है, ताकि ग्राहकों की संतुष्टि हो सके। वूलमार्क, सिल्क मार्क, हैंडलूम मार्क, होलोग्राम आदि ग्राहकों और उत्पादनकर्ताओं पर थोपे नहीं गए हैं, लेकिन खादी मार्क जबरन थोपा गया कानून है। खादी मार्क रेगुलेशन-2013, खादी के हेरिटेज स्वरूप को समाप्त कर व्यक्तिगत व्यवसायियों, फर्मों और कंपनियों के हाथ में मुनाफा कमाने वाली कमोडिटी के रूप में चला गया है। यह महात्मा गांधी के ट्रस्टीशिप एवं ‘न लाभ, न हानि’ के सिद्धांत पर आधारित खादी कार्यक्रमों की मूल अवधारणा के विपरीत है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि इसके काफी पहले ही प्रमाण पत्र समिति के नाम से खादी की गुणवत्ता और शुद्धता जांचने के लिए नियम बनाए गए हैं। खादी मार्क रेगुलेशन का दुष्प्रभाव यह हुआ की बाजार में खादी के नाम पर मिल का कपड़ा भी बिकने लगा।
वर्ष 1953 से पूर्व खादी से संबंधित सारे विषय गांधी जी द्वारा स्थापित अखिल भारत चरखा संघ (सर्व सेवा संघ) देख रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जब खादी के विकास और रोजगार के लिए सरकार की मदद करने की बात कही, तब विनोबा जी ने कहा अगर सरकार खादी के उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है तो चरखा संघ का काम है उसको मदद करना, क्योंकि उसे इसका अनुभव है। दूसरी बात विनोबा जी ने कही कि जो गांव या शख्स अपने लिए कपड़ा बनाना चाहे, उसकी बुनाई की मजदूरी सरकार देगी। यह योजना काफी दिनों तक लागू रही, फिर सरकार ने इसे बंद कर दिया। खादी संस्था और खादी ग्रामोद्योग आयोग का आपसी संबंध जो भाई-भाई का था, वह मालिक और गुलामों में परिवर्तित हो गया। संस्थाओं को खादी कार्य करने के लिए काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। ये संस्थाएं अब अपने आप को जेल में बंद एक कैदी की भांति महसूस करती हैं।
फरवरी 2018 में भारत के उपराष्ट्रपति वैंकयानायडू सेवाग्राम आश्रम आए, तो उन्हें खादी की समस्याओं से अवगत कराया गया था। उन्होंने इसका समाधान करने का आश्वासन दिया। उन्हें बाद में सेवाग्राम आश्रम से पत्र और स्मरण पत्र भेजे गए, परंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई। गांधी जी ने चरखे और खादी को आधार मानकर ग्राम स्वावलंबन और स्वदेशी अपनाने पर बल देते हुए देश को आजादी दिलाई थी। साबरमती आश्रम के बाद वर्ष 1936 से गांधी जी की मृत्युपर्यंत सेवाग्राम आश्रम इसकी प्रयोगभूमि रहा है। गांधी जी प्रतिदिन वहां चरखा कातते थे। यह आश्रम उस समय कताई बुनाई का देश का सबसे बड़ा केंद्र था। आज भारत सरकार का खादी ग्रामोद्योग आयोग गांधीजी के सेवाग्राम आश्रम में खादी के उसी प्रयोग को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी कर रहा है। वह भी एक ऐसे कानून के द्वारा, जिसका देश की सभी खादी संस्थाओं ने विरोध किया था और सरकार ने जबरदस्ती उन पर यह कानून थोपा था।
खादी की गुणवत्ता और शुद्धता के लिए प्रमाण पत्र समिति पहले स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करती थी। उसके बाद इसका भी सरकारीकरण हो गया और 2013 में खादी मार्क रेगुलेशन आने के बाद सब कुछ खादी ग्रामोद्योग आयोग के एक विभाग के रूप में काम करने लगा। इस प्रकार इस समिति की स्वतंत्रता समाप्त की गई। ऐसा नहीं है कि केवल खादी संस्थाएं ही खादी ग्रामोद्योग आयोग और सरकार की नीतियों का विरोध कर रही हैं, संसद की स्थायी समिति ने भी सरकार की नीतियों का विरोध कर वास्तविकता से सब को अवगत कराया है – “KVIC has changed the roll from promotional body to evolve a sound business model self sustaining organisation.” अर्थात जिस उद्देश्य से आयोग का निर्माण किया गया था, वह अब नहीं रहा। यानी इसकी प्रासंगिकता समाप्त हो गई है। स्थाई समिति ने आगे कहा है, “The committee may remind that khadi as a concept evolved independent of government support. It was a tool and symbol of protest and not a captive vocation of government. To continue to make it dependent on grants from the government will defeat the very purpose of khadi.” आप देख सकते हैं कि किस प्रकार खादी ग्रामोद्योग आयोग ने वास्तव में खादी संस्थाओं को गुलाम बना दिया है और उनको कई प्रकार से सताया जा रहा है।
खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से गांव को स्वावलंबी कैसे कर सकते हैं, इसके लिए गांधी जी ने 1929 में एक कमेटी बनाई थी, जिसके अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल थे। उसमें जेसी कुमारप्पा भी थे। आपको आश्चर्य होगा कि सीवी रमन जैसे वैज्ञानिक भी उसके सदस्य थे। अब सीवी रमन जैसे व्यक्ति को उस कमेटी में रखने की बात गांधी ही सोच सकते थे। गांधी की वृत्ति आध्यात्मिक थी, लेकिन दृष्टि वैज्ञानिक थी। खादी ग्रामोद्योग आयोग जिस तरीके से खादी को चला रहा है, वह विनाशकारी है तथा गांधी और खादी की मूल भावना के विपरीत है। यह संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट से भी जाहिर होता है।
सेवाग्राम आश्रम को खादी ग्रामोद्योग आयोग के पत्र को अति गंभीरता से लेकर ऐसे कदम उठाने चाहिए कि खादी कताई, बुनाई आदि की जो प्रवृत्ति गांधी जी के समय से आश्रम में चली आ रही है, वह किस प्रकार अनवरत जारी रह सकती है। आश्रम को आयोग के किसी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए। यदि खादी की अस्मिता को बचाने के लिए सत्याग्रह करना पड़े तो उसके लिए भी सेवाग्राम आश्रम को तैयार रहना होगा। आश्रम को वर्ष 2010 से चलाए जा रहे खादी रक्षा अभियान को सक्रियतापूर्वक सहयोग करना चाहिए। भारत सरकार को चाहिए कि खादी मार्क रेगुलेशन को अनिवार्य करने के बजाए स्वैछिक बनाये, जैसा कि वूलमार्क, सिल्क मार्क, होलोग्राम आदि के बारे में प्रचलित व्यवस्था है। यदि सरकार और आयोग अपनी नीतियों मे सुधार नहीं करते हैं तो खादी मिशन, खादी समिति (सर्व सेवा संघ), सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान और गांधी स्मारक निधि आदि संस्थाओं को मिलकर भारत सरकार की खादी विरोधी नीतियों के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करना चाहिए।
-अशोक शरण
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