गांधी में ऐसी क्या बात है!
गांधी शायद संसार का पहला आदमी है, जिसके बारे में आज यह चर्चा नहीं हो रही है कि उसको मारा क्यों गया, बल्कि चर्चा इस बात की हो रही है कि यह आदमी मरता क्यों नहीं है! सुकरात से लेकर कैनेडी तक कई महापुरुषों और नेताओं की हत्या पर आज भी चर्चा होती है, लेकिन किसी के बारे में यह चर्चा नहीं होती है कि यह आदमी मरता क्यों नहीं है!
इसकी दो वजहें हैं। एक तो यह कि गांधी की हत्या की घटना कोई ऐसी घटना नहीं है, जिसे रहस्यमय और रोमांचक घटना के रूप में प्रसंग पड़ने पर याद किया जाय, जिस तरह अमेरिकन राष्ट्रपति कैनेडी आदि की हत्या की चर्चा बीच-बीच में होती रहती है। दूसरी वजह यह है कि गांधी को मन्दिरों में, गिरजाघरों में स्थापित नहीं किया जा सकता है, जिस तरह ईसा आदि को स्थापित करके और उनकी पूजा करके हम मुक्त हो जाते हैं। हत्या और उसके साथ की गई प्रताड़ना के लिए कभी-कभार रो लिया जाए और माफ़ी मांग ली जाय, यह तरीका ठीक नहीं है। सही रास्ता दिखाने वाले किसी महामानव को अप्रासंगिक बनाना हो, तो उसका यह रास्ता मानव समाज ने खोज लिया है, जिसे आज तक अजमाया जा रहा है कि पहले उसकी हत्या करो और बाद में पूजा करो।
गांधी में कुछ ऐसी बात है, जिस कारण देह से मारने के बाद भी उसे रोज-रोज मारना पड़ता है। निरंतर 75 साल से गांधी की हत्या के पश्चात हत्या रोज हो रही है। इसलिए संसार में, विशेषरूप से भारत में यह चर्चा हो रही है कि यह आदमी मरता क्यों नहीं है? जिसे रोज-रोज मारना पड़े, ऐसा अकेला और अनूठा आदमी है गांधी।
गांधीजी पर जानलेवा हमला जब वे दक्षिण अफ्रीका में थे, तब से हो रहा है। एक बार नहीं, कई-कई बार ऐसा प्रयास हुआ है। 1915 में गांधीजी भारत आए और 1934 में पूना में उनकी जान लेने का पहला प्रयास किया गया। फिर 1944 में महाराष्ट्र में ही दो प्रयास किये गये। गांधीजी के खून का चौथा प्रयास 29 जून 1946 के दिन किया गया, जब गांधीजी ट्रेन में प्रवास कर रहे थे और भोर में महाराष्ट्र में कर्जत और नेरल स्टेशन के बीच रेलवे पटरी पर बड़ा पत्थर पाया गया। इस घटना के बारे में 30 जून को प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा था – “परमेश्वर की कृपा से मैं अक्षरश: मृत्यु के मुंह से सकुशल वापस आया हूँ। मैंने कभी किसी को दुःख नहीं पहुंचाया. मेरी किसी के साथ दुश्मनी नहीं है, फिर भी मेरे प्राण लेने का प्रयास इतनी बार क्यों किया गया, यह बात मेरी समझ में नहीं आती। …’’
गांधीजीने उक्त प्रार्थना-प्रवचन में 125 वर्ष जीने की इच्छा प्रगट की तो नाथूराम गोडसे ने अपनी पत्रिका ‘अग्रणी’ में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, ‘‘पर जीने कौन देगा?’’ अब इस हकीकत पर गौर कीजिए कि भारत में गांधीजी की हत्या करने के पांच प्रयास किए गए और छठे प्रयास में उन्हें सफलता मिली। इन छ: प्रयासों में से चार प्रयास महाराष्ट्र में ही किए गए। इन छ: प्रयासों में से चार प्रयासों में नाथूराम गोडसे का प्रत्यक्ष हाथ था। 1934 में पहला प्रयास किया गया, तब पाकिस्तान की कोई चर्चा नहीं थी। 1944 और 1946 के प्रयास के वक्त पाकिस्तान की चर्चा थी, लेकिन भारत का विभाजन तय नहीं हुआ था। गांधीजी ने तो यहाँ तक कहा था कि भारत का विभाजन उनकी मृत्यु के उपरान्त ही हो सकता है। वे जीते जी भारत का विभाजन नहीं होने देंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध अभी चल रहा था और पाकिस्तान की बात दूर की कौड़ी थी। पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपए देने की तो कोई बात ही नहीं थी, क्योंकि पाकिस्तान ही अभी अस्तित्व में नहीं था।
तो फिर 1934 से लेकर 1946 तक गांधीजी की हत्या के चार प्रयास क्यों किए गए? और सभी प्रयासों में महाराष्ट्र के लोग ही क्यों शामिल थे? विशेष कर महाराष्ट्र का एक खास समुदाय। एक बात और, अब तक तो हम गांधीजी की दैहिक हत्या की ही बात कर रहे हैं। गांधीजी को बदनाम करके, गलतफहमी पैदा करके, उनका चारित्र्यहनन करके उनकी हत्या करने के प्रयास तो 1915 से ही किए जा रहे थे, जब गांधीजी ने अभी बस भारत में पैर ही रखा था। करीब 108 साल से गांधीजी की निरंतर हत्या हो रही है और आज तक जारी है।
गांधीजी की दैहिक, वैचारिक और आत्मिक हत्या के लिए हत्यारों को इतनी जद्दोजहद क्यों करनी पड़ी और आज तक करनी पड़ रही है, यह प्रश्न उपस्थित होना स्वाभाविक है। लेकिन इसका उत्तर एक अन्य प्रश्न के उत्तर से मिलेगा कि यह आदमी मरता क्यों नहीं है? कौन-सी ऐसी बात है, जो गांधी को मरने नहीं दे रही है और गांधी में कौन-सी ऐसी बात है, जो मारने वाले को परेशान कर रही है? विशेषकर गांधी में कौन-सी ऐसी बात है, जो महाराष्ट्र के उस समुदाय विशेष को परेशान कर रही है?
-रमेश ओझा
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