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गांधी ने तोड़ीं सामाजिक दुश्चक्र की जंजीरें!

आज़ादी से लगभग तीन हजार साल पहले से देश का पिछड़ा और दलित समाज जिस गुलामी की चक्की में पिस रहा था, उससे मुक्ति के कहीं कोई आसार नहीं थे. उस सामाजिक गुलामी से आज़ादी दिलाने के लिए जिस महापुरुष का अवतार हुआ, उसे महात्मा गाँधी कहते हैं। हम क्या थे और गांधी ने हमें क्या बना दिया! यह वह समय था, कि अगर इस गुलाम समाज का कोई माता-पिता अपने बच्चे को पढ़ने लिखाने की बात सोच भी ले, तो वह कुसंस्कारी कहलाता था। परिवार के लोग ही साथ नहीं बैठते थे। ऐसे सामाजिक दुश्चक्र के समय में गांधी आता है और कहता है कि मुझे पिछड़े चाहिए, मुझे दलित चाहिए, मुझे आन्दोलन में महिलाएं चाहिए। ये भी नहीं कि कोई पढ़ा लिखा के दे, जैसे और जिस हाल में हैं, वैसे ही और उसी हाल में चाहिए। मुझे आदिवासी चाहिए, मजदूर और किसान भी चाहिए। 15 अगस्त 1947 के पहले जिनकी न कोई सामाजिक हैसियत थी, न कोई सामाजिक भागीदारी थी, उनको तीन हजार साल की उस गुलामी से मुक्ति न तो राम ने दिलाई, न कृष्ण ने दिलाई, न बुद्ध ने दिलाई, न जीसस ने दिलाई, न खुदा ने दिलाई. उस बजबजाती हुई जिन्दगी से निजात हमें महात्मा गांधी ने दिलाई। मैंने कभी गांधी की पूजा नहीं की, कभी उनकी तस्वीर के सामने एक दिया नहीं जलाया, लेकिन यह समझता हूं कि मुझे और मेरे समाज को एक स्वतंत्रचेता नागरिक के अस्तित्व से लैस महात्मा गाँधी और उनकी कांग्रेस ने किया। अगर यह महापुरुष नहीं आता तो आज यह उत्तम परमार आपके सामने खड़ा होकर भाषण न दे रहा होता, बल्कि किसी जमीदार के जूतों के नीचे कुचला जा रहा होता। शिक्षा पाने और सम्मान सहित जीने का अधिकार हमें क्या मिला, हमारी आने वाली नस्लें इस परिवर्तन के लिए कांग्रेस की छत्रछाया और बापू के व्यक्तित्व के प्रति हजार-हजार सालों तक नतमस्तक रहेंगी। गांधी और गांधी विचार ने हमें जीवन के संस्कारों से संस्कारित किया, इसलिए गांधी के विचार को आगे बढ़ाने के लिए, विनोबा के काम को आगे बढ़ाने के लिए, जेपी की क्रान्ति में चिंगारी जलाये रखने के लिए हमारी पीढियां कुर्बान होने को हर पल तैयार मिलेंगी। समाज के हर हिस्से के लिए रोटी, पानी, शिक्षा और समरसता की बात सोचना गांधी के मूल्य और गांधी की कांग्रेस के संस्कार हैं। गांधी और गांधी की कांग्रेस की विचारधारा हमारे मूल्य हैं, यही हमारी संस्कृति है और यही हमारी जीवनधारा है।

– उत्तम भाई परमार

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