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गांधी विचार और कर्म को समर्पित, मूर्तिमान अहिंसा के प्रतीक थे विनोबा

विनोबा जयन्ती

महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, अहिंसक क्रान्ति भूदान आन्दोलन के प्रणेता तथा गांधी द्वारा देश की स्वतन्त्रता के लिए चलाये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही, समाज सुधारक, प्रसिद्ध संत, चिन्तक और विचारक आचार्य विनोबा भावे की 11 सितम्बर को जयंती है. काशी में  हिन्दू विश्वविध्यालय के शिलान्यास के अवसर पर 4 फरवरी 1916 को गांधी जी द्वारा दिये गये ऐतिहासिक भाषण से प्रभावित होकर जब उन्होने गांधी जी के प्रथम बार दर्शन किये तब उनकी गांधी के विचार और सिद्धांत पर ऐसी आस्था विकसित हुई कि उन्होंने स्वयं लिखा कि गांधी जी में उन्हें हिमालय की शान्ति और बंगाल की क्रान्ति दोनों मिली. उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन गांधी के एकादश व्रतों का पालन करते हुए  गांधी विचार और सिद्धांत को समर्पित कर दिया था. गांधी के निधन के बाद उन्होंने अहिंसा का पालन करते हुए भूदान और अन्य अनेक रचनात्मक कार्यो से समाज को नई दिशा दी. वे गांधी जी के आश्रम के दुर्लभ रत्न थे. गांधी जी ने जब उन्हें व्यक्तिगत सत्याग्रह का प्रथम सत्याग्रही घोषित किया, तब कांग्रेस कार्यसमिति के अनेक सदस्य उन्हें जानते तक नहीं थे कि ये विनोबा है कौन! उनके सम्बन्ध में स्वयं गांधी ने लिखा है कि विनोबा मूर्तिमान अहिंसा हैं और उनमें मेरी अपेक्षा काम करने की अधिक दृढ़ता है. 1940 में प्रकाशित हरिजन में उन्होंने विनोबा के बारे में बताया कि विनोबा की स्मरण शक्ति अद्भुत है, वे प्रकृति से विद्यार्थी हैं, उन्होंने सूत कताई से लेकर पाखाना साफ करने तक का आश्रम का हर छोटा बड़ा काम किया है. संस्कृति का अध्ययन करने जब वे एक वर्ष की छुट्टी लेकर गये, तब एक वर्ष समाप्त होने पर बगैर सूचना दिये वे उसी दिन और उसी समय आश्रम में वापस आ गये थे, मैं तो भूल ही गया था कि उनकी छुट्टी उसी दिन पूरी हो रही थी.

1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव में उनकी शान्ति सन्देश पदयात्रा के पड़ाव के  समय जब वहां के भूमिहीन हरिजनों ने उन्हें जीवन यापन करने के लिए कुछ जमीन दिलाने का आग्रह किया तो उनके आह्वान पर, उनकी वाणी और विचार से प्रेरित होकर वहां के कुछ जमींदारों ने उन्हें जमीन दान दी और उसे ईश्वरीय प्रेरणा मानकर उन्होंने भूदान यज्ञ का आन्दोलन ही छेड़ दिया और करीब साढ़े चार लाख एकड़ भूमि प्राप्त की, जो देश और दुनिया के लिए अहिंसक क्रान्ति का एक अद्भुत और अद्वितीय उदाहरण हैं. बाल्यकाल से ही उनमें अध्यात्म के प्रति लागाव था, उन्होंने लिखा है कि जब 1942 में मैं गांधी जी के आह्वान पर जेल में था, तब स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मैंने गहराई से चिन्तन किया. इस चिन्तन के परीणामस्वरुप मैंने अनुभव किया कि खुद को पहले “मैं” के बंधन से मुक्त करना होगा और यह काम है अध्यात्म का. उन्होंने तीन गुण, तीन दोष और तीन मूर्ति से परे तीसरी शक्ति की नई कल्पना की. उनके तत्व चिन्तन की कृति तीसरी शक्ति में उन्होंने लिखा है कि मानव समाज के परिवर्तन और पुनर्निर्माण के लिए इतिहास में केवल दो शक्तियों का ही जिक्र आता है. हिंसा शक्ति और दंड शक्ति. प्रेम शक्ति का भी उल्लेख मिलता है, परंतु वह परिवार के सीमित दायरे के बाहर काम करती हुई नहीं दिखाई देती. इसाई, बुद्ध ,जैन आदि धर्म प्रेम, करुणा और अहिंसा कि आधारशीला पर स्थापित तो हुए लेकिन अप्रत्यक्ष हिंसा से वे भी अछूते नहीं रहे.  स्वीकार करना होगा कि शोषण, आर्थिक विषमता, उत्पीड़न, अन्याय; ये सब हिंसा ही तो हैं? अपनी तीसरी शक्ति पुस्तक के एक अध्याय में उन्होंने लिखा है कि हर सूबे में निर्माण का बहुत बड़ा काम हो रहा है, लेकिन क्या नया इंसान बन रहा है? सरकार की तरफ से जो काम किया जाता है, उससे दुनिया बनती है, लेकिन नया इंसान नहीं बनता. नया इंसान बनाने का काम वे करते हैं, जो रुहानी ताकत को पहचानते हैं. माली हालत बदलने की बात बाहर की चीज है, अंदर की चीज बदलनी हो तो रुहानी ताकत चाहिए. जोड़ने वाली तरकीब मजहब या सियासत नहीं, वह रुहानियत ही हो सकती है. मजहब पचास हो सकते हैं, लेकिन रुहानियत एक ही है.

आज जब हमारे सामाजिक, राजनैतिक और व्यक्तिगत जीवन मूल्यों में गिरावट आ रही है और हिंसा की वृत्ति पनप रही है, तब यह स्वीकार करना होगा कि विनोबा की मानवतावादी सोच और विचार तथा सर्वोदयी भावना ही मनुष्यता के संरक्षण और विश्व शान्ति के लिए वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है.

 -दिलीप तायडे 

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