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गांधी जी और धर्म संसद

‘मुझे गर्व है कि मै उस हिन्दू धर्म से हूं, जिसने पूरी दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता की सीख दी। भारत की सभ्यता और संस्कृति सभी धर्मों को सत्य के रूप में मान्यता देती है और स्वीकार करती है। भारत एक ऐसा देश है, जिसने सभी धर्मों और देशों के सताये हुए लोगों को अपने यहां शरण दी।’ -स्वामी विवेकानंद

महात्मा गांधी 12 अक्टूबर 1921 के यंग इंडिया में लिखते हैं, ‘मैं अपने आपको सनातनी हिंदू कहता हूं, क्योंकि मैं वेदों, उपनिषदों, पुराणों और समस्त हिंदू शास्त्रों में विश्वास करता हूं और इसलिए अवतारों और पुनर्जन्म में भी मेरा विश्वास है। मैं वर्णाश्रम धर्म में विश्वास करता हूं। इसे मैं उन अर्थों में मानता हूं जो पूरी तरह वेद सम्मत है, लेकिन उसके वर्तमान प्रचलित भोंडे रूप को नहीं मानता। मैं प्रचलित अर्थों से कहीं अधिक व्यापक अर्थ में गाय की रक्षा में विश्वास करता हूं। मूर्ति पूजा में मेरा विश्वास नहीं है।’ हिन्दू धर्म के बारे में उनकी यह व्याख्या उस समय के हिंदुत्व से बिलकुल अलग थी, जिसका प्रतिपादन हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ करते थे। गांधी जी की सर्व धर्म प्रार्थना में कुरान, बाइबल, गीता आदि सभी धर्मों की प्रार्थनाएं होती थीं, आज भी हो रही हैं। गांधी जी के भारत में केवल हिन्दुओं का नहीं, देश के समस्त धर्मों, जीवन पद्धतियों, उपासना पद्धतियों और रीति-रिवाजों का समावेश था।


गांधी जी स्वामी विवेकानंद द्वारा विश्व धर्म संसद में दी गयी हिंदू धर्म की उस परिभाषा के बिलकुल निकट हैं, जो उन्होंने 11 सितम्बर 1893 को शिकागो में दी थी। ‘मुझे गर्व है कि मै उस हिन्दू धर्म से हूं, जिसने पूरी दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता की सीख दी। भारत की सभ्यता और संस्कृति सभी धर्मों को सत्य के रूप में मान्यता देती है और स्वीकार करती है। भारत एक ऐसा देश है, जिसने सभी धर्मों और देशों के सताये हुए लोगों को अपने यहां शरण दी।’ उन्होंने कहा कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की भी पवित्र स्मृतियां सजोंकर रखी हैं, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़कर खंडहर में तब्दील कर दिया था. मुझे इस बात का भी गर्व है कि मै उस धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और आज भी उन्हें पाल रहा है.


हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि हिंदू संगठनों की हिंदू भारत की व्याख्या पहले भी स्पष्ट नहीं थी और आज भी बिल्कुल अस्पष्ट है। अभी हाल में हरिद्वार और रायपुर में संपन्न हुई धर्म संसद में मुस्लिमों और ईसाइयों के प्रति घृणा फैलाई गयी और मरने मारने की बात कही गयी. क्या ये माना जाये कि भारत के करोड़ों मुसलमानों को अरब सागर में बहा दिया जाएगा? क्या वे मानते हैं कि उनको आधुनिक हथियारों से समाप्त कर दिया जाएगा? क्या वे मानते हैं कि ईसाई मतावलंबियों को देश से बाहर खदेड़ दिया जाएगा? और यदि ऐसा संभव नहीं है, तो क्यों न माना जाय कि ये केवल राजनीतिक चालबाजियां हैं, जो चुनाव के समय में उभर कर आती हैं और वोटों का ध्रुवीकरण कर सत्ता प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा रखती हैं?


यह देश हित में बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि आम हिंदू जन यह जानता है कि हिंदू धर्म सहिष्णु है और समानता के अधिकार पर इस धरती पर सभी मतावलंबियों को जीने का अधिकार देता है। हिन्दू धर्म की यह उदार परम्परा पहले से ही रही है। प्रथम सहस्त्राब्दी में हिन्दू राजाओं ने भी कभी हिंदू राष्ट्र की बात नहीं की। धर्म सत्ता और राज सत्ता हमेशा से अलग अलग रही है। मोहन भागवत के इस विचार की संघ में ही स्वीकृति कठिन जान पड़ती है कि हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोग हिन्दू हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, चाहे उनकी पूजा पद्धति कुछ भी हो। यदि यह मान भी लिया जाए तो क्या अन्य धर्म मतावलंबी इस परिभाषा को मानने के लिए तैयार होंगे? क्या वे स्वयं को हिन्दू कहलाना पसंद करेंगे?


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में अपशब्द कहने और नफरत फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है। गांधी जी केवल भारत के लिए ही नहीं, सारी दुनिया के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं. यह दुखद है कि राजनैतिक पार्टियां तुच्छ राजनैतिक लाभ के लिए ऐसी घटनाओं को प्रश्रय दे रही हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे उन्मादी लोगों पर कार्रवाई करने के मामले में भी राजनीति हो रही है. ऐसे लोगों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है, सरकार चाहे किसी भी दल की हो। ऐसी घटनाएं देश में नफरत की आंधी ला सकती हैं। यह अच्छी बात है कि संत रामसुन्दर दास, महंथ रवीन्द्र पुरी तथा ब्रह्मस्वरूप आदि ने इन भड़काऊ और घृणित बयानों की निंदा की है। उन्होंने कहा के जो लोग राष्ट्रपिता के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करें, वे वास्तव में संत कहे जाने योग्य नहीं हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसी दुष्प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने वाले तत्वों पर नकेल कसे.

-अशोक शरण

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