जसवा के तत्वावधान में जमशेदपुर में ‘उलगुलान एवं पंचायत’ विषयक संगोष्ठी
उलगुलान दिवस पर 9 जनवरी को जन मुक्ति संघर्ष वाहिनी के तत्वावधान में जमशेदपुर के गोलमुरी स्थित भोजपुरी साहित्य परिषद के सभागार में “उलगुलान एवं पंचायत” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में उपस्थित साथियों ने झारखण्ड में बिरसा मुंडा के उलगुलान से लेकर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पंचायत की सार्थकता एवं महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला.
मंथन ने कहा कि गांवों में पारंपरिक व्यवस्था में कोई सामंजस्य नहीं है. इसमें केवल जातीय व्यवस्था निहित है. ग्राम सभा भी यदि जनतांत्रिक तरीके से बने तभी ठीक है, राज्य में ग्राम सभा में वंशवाद हावी है, जिससे गांवों का हित कदापि नहीं होगा. पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम सभा और ग्राम पंचायत को सामान अधिकार दिए जाने की बात है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा है. पंचायत राज में वार्ड सदस्य की न तो कोई प्रासंगिकता है, न ही कोई सार्थकता, अतः इसका चुनाव ही नहीं होना चाहिए. हमें रूढ़िवादिता से ऊपर उठकर कुछ गलत परम्पराओं को समाप्त कर कुछ अच्छी चीज़ों को आगे लाना होगा. ग्राम प्रधान का चुनाव भी लोकतांत्रिक पद्धति से करना होगा.
अरविन्द अंजुम ने कहा कि एक सवाल पंचायती व्यवस्था में जन सहभागिता का तथा दूसरा सवाल पारंपरिक व्यवस्था का है. सारे पारंपरिक व्यवस्था वाले लोग पंचायत चुनाव का विरोध करते हैं. पारंपरिक रूप से वंश के नेतृत्व का सिद्धांत रहा है. जबकि आधुनिक सिद्धांत योग्यता के नेतृत्व का है. आलोचना की दिशा रास्ता निकालने की होनी चाहिए.
रुस्तम ने कहा कि लोकतंत्र दुनिया की सुन्दर व्यवस्था है. तंत्र को लागू करने की प्रक्रिया में जो खामियां है, उन्हें दुरुस्त करने की कोशिश होनी चाहिए, न कि सिर्फ आलोचना. विकास को जितना विकेन्द्रित करें, उतना अच्छा है. उन्होंने पंचायत चुनाव की हिमायत करते हुए कहा कि जागरूकता एवं तत्परता से ग्राम सभा में रचनात्मक कार्य किए जा सकते हैं. वैकल्पिक मार्ग तलाश कर उस पर आगे बढ़ने का प्रयास होना चाहिए.
जगत ने कहा कि पारंपरिक स्वशासन में कुछ कमियां भी हैं. जब ग्राम प्रधान को वज़ीफ़ा मिलने लगा, तो पारंपरिक ग्राम प्रधान को उपेक्षित कर नया ग्राम प्रधान चुनने की परंपरा चल पड़ी और पारंपरिक व्यवस्था को ख़त्म किया जाने लगा.
शशांक शेखर ने कहा कि जहां जिन जातियों की संख्या ज्यादा है, प्रभुत्व उन्हीं का होता है. एक के लिए कोई व्यवस्था अच्छी हो सकती है तो दूसरे के लिए बुरी. पंचायत व्यवस्था लागू होने के बाद से सरकारी योजनाएं ज़बरन थोपी जाती रही हैं. ग्राम सभा में पंचायत की दखलंदाजी गलत है. वार्ड सदस्य का कोई औचित्य नहीं है, बल्कि इसके कारण गांवों में आपसी सम्बन्ध भी खराब हो रहे हैं.
दिलीप कुमार ने कहा कि नगर निगम का चुनाव बहुत जगह हुआ, किसी ने विरोध नहीं किया. आज हो रहा है. यह अपनी जगह है, लेकिन 5वीं अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभा निर्णायक होती है, लेकिन बिना ग्राम सभा की बैठक किए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाता है. पंचायतों में जहां मुखिया ठीक है, वहाँ काम अच्छा हुआ है. यह विडम्बना है कि कुछ लोग पंचायती व्यवस्था में आने के बाद भ्रष्ट हो जाते हैं. पंचायत व्यवस्था में कई खामियां हैं. पंचायत सचिव के पास मुखिया से ज्यादा पावर होता है. कुछ मॉडल ग्राम सभा की बात हमने सोची थी. अभी उस दिशा में कुछ काम करने होंगे.
अमर ने कहा कि छोटे स्तर पर ग्राम सभा का आन्दोलन चले, क्योंकि अभी यह अफसरशाही के चंगुल में है. मुखिया चाहता है कि ग्राम सभा ख़त्म हो जाय. दो टर्म पंचायत को हमने देखा. ऊपर के आदेश से ही काम चलता है. ग्राम सभा के निर्णय से काम नहीं होता है. पंचायत प्रतिनिधि अपनी कमाई में ही रमे रहते हैं. महिला भागीदारी ज्यादा है, पर उनकी सक्रियता वैसी नहीं है. ग्राम सभा में वंशवाद की प्रवृत्ति गलत है.
कुमार दिलीप ने कहा कि पूरे समाज को पंचायत के सन्दर्भ में शिक्षा देने की ज़रुरत है. ग्राम प्रधानों की बात करें, तो ज्यदातर सिर्फ परंपरा का निर्वहन कर रहे है. कुछ मज़बूत हैं भी, तो वे मनमानी करते हैं. यह अभी तक साफ़ नहीं हुआ है, कि पंचायत चुनाव झारखण्ड में होना चाहिए या नहीं. पंचायत चुनाव हो, लेकिन ग्राम सभा के अधिकारों का अतिक्रमण न हो.
झारखण्ड विकलांग मंच के प्रदेश अध्यक्ष अरुण सिंह ने देश में विकलांगों की दशा बयान करते हुए कहा कि समाज में एक बड़ा तबका अपने अधिकारों के लिए वर्षों से लड़ रहा है. उन्होंने विकलांगों को न्याय दिलाने पर जोर दिया.
भाषाण मानमी ने कहा कि ग्राम सभा स्वशासन व्यवस्था है, इसलिए इसे व्यावहारिक स्तर पर कारगर बनाने की आवश्यकता है. जब तक ग्राम प्रधान और माझी महाल जागरूक नहीं होंगे, गांवों का कल्याण संभव नहीं है. उन्हें अपने अधिकारों के लिए आगे आने की आवश्यकता है. फिलहाल पंचायत चुनाव होने चाहिए.
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