Writers

जर्मन डाक्यूमेंट्री : ग्रेट ऐप्स : हाऊ इंटेलीजेंट आर अवर क्लोजेस्ट रिलेटिव्स

बीते दिनों जर्मन टेलीविजन चैनलों पर एक नई डॉक्यूमेंट्री फिल्म आई है. यह फिल्म पश्चिम अफ्रीका के जंगलों में सैर कराती है. जानवरों के साम्राज्य में मनुष्य के सबसे करीबी रिश्तेदार कितने बुद्धिमान हैं? इनके पूर्वज किस प्रकार के समाजों में रहते थे? क्या इनके जीवन में हिंसा भी है? यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म इन्हीं सवालों के जवाब तलाशती है.

क्या आपने कभी सोचा है कि जानवरों की भी भावनाएं होती हैं? अपनी भावनाओं के जरिये वे हमें अपने बारे में कुछ बता भी सकते हैं? क्या आप जानते हैं कि चिंपैंजी युद्ध भी लड़ते हैं? युद्ध ही नहीं, बल्कि वे करुणा भी दिखाते हैं, आपस में सहयोग और सहकार भी करते हैं. वे पक्षधरता भी दिखाते हैं, वे निष्पक्ष भी हो सकते हैं। आपस की लड़ाई झगड़े के बाद मिल बैठकर सुलह भी करते हैं और एक दूसरे को दिलासा भी देते हैं। चिंपैंजी समुदायों में रीति-रिवाज और परंपराएं भी हैं, जो उनकी अलग-अलग जनजातियों में भिन्न भिन्न होती हैं। जानवरों में मनुष्य के सर्वाधिक करीबी बोनोबो प्रजाति में मातृसत्ता का प्रभाव देखा जाता है. तुलनात्मक अध्ययन करें तो सवाल उठता है कि क्या नैतिकता और संस्कृति जैसी चीजें केवल मानवीय उपलब्धियां हैं?


बीते दिनों जर्मन टेलीविजन चैनलों पर एक नई डॉक्यूमेंट्री फिल्म आई है. यह फिल्म पश्चिम अफ्रीका के जंगलों में सैर कराती है. नाइजीरिया के पहाड़ी जंगलों में चिंपैंजी पेड़ों के पास या उनके खोखले तनों में पत्थरों के ढेर रखते हैं. यह क्या रहस्य हो सकता है? क्या यह किसी प्रकार से उनके धर्म से जुड़ा मामला हो सकता है? जानवरों के साम्राज्य में मनुष्य के सबसे करीबी रिश्तेदार कितने बुद्धिमान हैं? इनके पूर्वज किस प्रकार के समाजों में रहते थे? क्या इनके जीवन में हिंसा भी है? अगर हां, उनकी रहस्यमय दुनिया में हिंसा का प्रादुर्भाव कब और कैसे हुआ? यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म इन्हीं सवालों के जवाब तलाशती है. इनके ऊपर हुए हाल के शोधों से इनके बारे में पता चले कुछ रोचक तथ्य बताती है और इसी क्रम में मानव विकास से जुड़े कई पर्दे भी उठाती है.


मनुष्य के रिश्तेदारों में गोरिल्ला, चिम्पैंजी, ओरांगटन और बोनोबो प्रजातियों की गणना की जाती है. इन्हें Great Apes भी कहा जाता है. इनमें चिंपैंज़ी और बोनोबो से मनुष्य की नजदीकियां ज्यादा हैं. मानव के जींस सबसे ज्यादा इन्हीं से मिलते हैं. हाल में किए गए शोध बताते हैं कि मानव और इन प्राइमेट्स के पूर्वज एक ही थे, जो लाखों वर्ष पहले विकास क्रम में अनेक प्रजातियों में बंट गए. इनमें कई मानव प्रजातियां भी हैं, जो अब विलुप्त हो चुकी हैं. इन सभी प्रजातियों में आपस में मैटिंग भी हुई थी. हज़ारों वर्षों तक इंसान ने प्रकृति में मौजूद इन प्रजातियों से खुद को अलग किया. ब्रह्माण्ड में अपने आप को श्रेष्ठ बताया. डार्विन ने इन सारे भ्रमों को अपनी थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन से दूर किया और कहा कि मनुष्य, प्रकृति में हुए क्रमिक विकास का हिस्सा मात्र है. हाल के सालों में जेनेटिक साइंस भी काफी तेज़ी से आगे बढ़ा है और हर दिन हो रहे नये रिसर्च मनुष्य और उसके पूर्वजों के रहस्य बता रहे हैं.


शोध बता रहे हैं, चिम्पैंजी में होती हैं मनुष्य की तरह भावनाएं
डाक्यूमेंट्री की शुरुआत एक वीडियो के ज़रिये होती है, जो सोशल मीडिया में काफी वायरल हुआ और अबतक लाखों लोग इसे देख चुके हैं. इस वीडियो में एक बीमार और मरणासन्न मादा चिंपैंज़ी लेटी हुई है. अपने शोध के सिलसिले में अक्सर इन जंगलों में आने वाले एक प्रोफेसर जब उससे मिलने जाते हैं, तो वह उठकर उनसे गले मिलती है. उसके चेहरे की संवेदनाएं दर्शक को विचलित करती हैं, क्योंकि अमूमन इस तरह की भावनाएं हम सिर्फ़ इंसानों में ही देखते हैं.


फिल्म बताती है कि हमारे मनुष्य बनने की प्रक्रिया में भावनाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है. इसलिए इनके व्यवहार को समझकर हम अपने विकास की प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझ सकते है. नीदरलैंड के एक चिड़ियाघर में जहाँ कई चिम्पैंजियों को कैद रखा गया है, वहां हमारी मुलाकात फ्रांज डी वाल से होती है, जो प्रिमैटोलोजी के क्षेत्र में दुनिया भर में बड़े एक्सपर्ट माने जाते है. वे नीदरलैंड के इस चिड़ियाघर में 1975 से ही चिम्पैंजी पर रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने पाया कि जानवरों में नैतिकता और संस्कृति मनुष्य से पहले से ही रही है. चिम्पैंजी, बोनोबो और मनुष्य के हाथ की मुद्रा में बहुत हद तक समानता होती है. कुछ मांगने के लिए जब वे हाथ फैलाते हैं, गले मिलते हैं या शाबाशी देने के लिए पीठ थपथपाते हैं, तो ये मुद्राएं देखी जा सकती हैं. अफ़्रीकी देश तंजानिया में चिम्पैंजी पर एक महिला शोधार्थी द्वारा किया गया शोध बताता है कि वे भी मनुष्य की तरह ख़ुद से ही औज़ार बनाते हैं. अपने शोध में उन्होंने जंगलों में चिम्पैंजी के एक समूह द्वारा दूसरे समूह का किया गया नरसंहार भी देखा.


अपनी ही प्रजाति को मारना चिम्पैंजी, बोनोबो और मनुष्य में ही देखा गया है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद मनुष्य में हिंसा के उद्गम को समझने के लिए इन जानवरों पर भी रिसर्च हुआ. फ्रांज डी वाल ने चिम्पैंजी के आक्रामक व्यवहार पर शोध किया और चौंकाने वाला खुलासा किया कि झगड़ों के बाद चिम्पैंजी प्रजाति में गले लगना और एक दूसरे को चूमना आम बात है. सुलह करने की यह प्रवत्ति आपसी रिश्तों को बनाए रखने और परस्पर सहभागिता के लिए ज़रूरी है. चिम्पैंजी पर किए गए अनेक प्रयोग यही बताते हैं कि उनमें दयालुता, सहानुभूति, सहभागिता और प्रतिफल चुकाने की प्रवृत्तियां पायी जाती हैं. पहले माना जाता था कि इस तरह की भावनाएं सिर्फ़ इंसानों में ही पायी जाती हैं, लेकिन इन शोधों ने लोगों को गलत साबित किया. वहीं कुछ जटिल व्यवहार, जैसे न्याय का विकास मनुष्य में क्रमागत उन्नति का हिस्सा रहा है. इन जानवरों के व्यवहार में यह कम ही दीखता है और कई सवाल भी छोड़ता है.


बोनोबो प्रजाति में दिखती है मातृसत्ता
फिल्म हमें जानकारी देती है की बोनोबो प्रजाति की आबादी अफ्रीकी देश कांगो के रेनफॉरेस्ट्स तक सीमित है. 1929 तक इन्हें अलग प्रजाति नहीं माना जाता था. ये चिम्पैंजी की तुलना में छोटे कद के होते हैं. नामी एक्सपर्ट डॉ वोल्कर सोमर बताते हैं कि जहाँ एक तरफ चिंपैंज़ी की सामाजिक संरचना में पितृसत्ता हावी होती है, वही बोनोबो में मातृसत्ता होने के साथ ही ज्यादा शांतिप्रिय समाज देखा जाता हैं. बोनोबो महिलाओं में आपस में काफी प्यार देखा जाता है, भले उनमें खून का रिश्ता न हो. उन्हें आपस में समूह बनाकर पुरुषों पर हमला भी करते देखा गया है. बोनोबो खाद्य संपदा से भरे हुए क्षेत्र में निवास करते हैं, इसलिए संसाधनों पर कब्जे के लिए उनमें कम ही संघर्ष होता है, जबकि चिम्पेंजी में इसके उलट है. एक सवाल यह उठता है कि क्या इनका मनुष्य के क्रमागत विकास पर कोई प्रभाव पड़ा है? क्या पितृसत्ता किसी अप्राकृतिक प्रक्रिया की उपज है? फिल्म देखते हुए हम यह सोचने पर बाध्य होते हैं कि आखिर हमारे पूर्वज किस प्रकार के समाजों में रहते थे. क्या वह ज्यादा शांतिप्रिय समाज था?


डॉ वोल्कर सोमर बताते हैं कि एक चीज़ जो चिम्पैंजी और बोनोबो को इन्सान से अलग करती है, वह है बच्चों की परवरिश, जो इन प्रजातियों में केवल माँ द्वारा होती है और पुरुष का उसमें सहयोग नहीं होता. बोनोबो प्रजाति में युवा लड़की को बचपन में ही परिवार को छोड़ने के लिए बाध्य किया जाता है और वे दूसरे समूहों से जाकर जुड़ जाती हैं, जबकि ऐसा नर बच्चे के साथ नहीं किया जाता. इसके अलावा नौजवान नर अपनी मादा से ज्यादा अपनी माँ के करीब होते हैं. यह दर्शाता है कि बोनोबो प्रजाति में माँ-बेटे का रिश्ता माँ बेटी के तुलना में ज्यादा घनिष्ठ होता है.


क्या ये प्रजातियां बुद्धिमान भी होती हैं?
नई टेक्नोलॉजी इन वनपशुओं के व्यवहार पर निरंतर शोध कर रही है. हिडेन कैमरा टेक्नोलॉजी से इन जानवरों की हर गतिविधि पर नज़र रखी जाती है, जिससे नित नई जानकारियां मिल रही हैं. ऐसे ही रिसर्च प्रोजेक्ट्स के दौरान देखने को मिला कि पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजीरिया के पहाड़ी जंगलों में चिंपैंजी पेड़ों के पास या सूखे हुए पेड़ों के खोखले तनों में रहस्यमय ढंग से पत्थरों के ढेर रख देते हैं। ये उनके औज़ार हैं, जिनका इस्तेमाल वे भविष्य में दीमक पकड़ने, अखरोट निकालने आदि के लिए करते हैं. आम तौर पर माना जाता रहा है कि जानवर वर्तमान में जीते हैं , लेकिन इनका यह व्यवहार दिखाता है कि ये भविष्य के लिए योजनाएं भी बनाते हैं. चिंपैंज़ी खुद को आइने में देखकर पहचान सकते हैं, वे पुरानी बातें याद रखते हैं. ये सभी चीज़ें उनकी बुद्धिमत्ता के बारे में बताती हैं.


मनुष्य और इन जानवरों की बुद्धिमता में कितना फर्क है!
वैज्ञानिक फ्रांज डी वाल कहते हैं कि भाषा की जटिलताएं ही मनुष्य की बुधिमत्ता को इन जानवरों से अलग करती है. मनुष्य की भाषा की क्षमता, प्रतीकीकरण, वर्गीकरण आदि उसकी खासियत है. इससे जानकारियां रिकॉर्ड करके उन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने में मदद मिलती है. भाषा के इस विकास से मानव को सांस्कृतिक विकास में मदद मिली. दूसरी तरफ मनुष्य की पारिवारिक संरचना भी जानवरों से अलग रही है, जहाँ पुरुष भी बच्चों के पालन पोषण के लिए संसाधन जुटाने या देखभाल में मां की मदद करते हैं. इसी कारण मनुष्य की आबादी में वृद्धि भी अधिक होती रही है, इसकी तुलना में बोनोबो और चिम्पैंजी प्रजातियों में प्रजनन दर कम है, क्योंकि माँ एक समय में एक ही बच्चे की परवरिश कर सकती है.


मनुष्य की बुद्धिमता ही उसके विनाश का कारण!
फ़िल्म के अंत में वैज्ञानिक चिंता व्यक्त करते हैं कि पश्चिमी भौतिकवाद से उत्पन्न हुए मनुष्य के लालच ने उसे प्रकृति से अलग किया, जबकि अपने प्रारंभिक काल में वे भी इन जानवरों की तरह शांतिप्रिय जीवन जीते थे. आज हम विध्वंस की तरफ बढ़ रहे हैं. कुछ रिसर्चर जंगलों में हो रहे उत्खनन और प्राकृतिक संपदा के विनाश के खिलाफ लड़ने की बात करते हैं. अगर मनुष्य नहीं चेता तो बहुत देर हो जायेगी. मनुष्य और इन जानवरों में भावनाओं और बुद्धिमता की विकास की प्रक्रिया में काफी समानताएं हैं, लेकिन मनुष्य की प्रचंड बुद्धिमत्ता उसे अपने इन नजदीकी रिश्तेदारों से अलग करती है. अपनी बुद्धि के विकास से हम चाँद तक पहुंच चुके हैं, लेकिन आज भी अपनी प्राकृतिक संपदा को खत्म कर रहे हैं. बौद्धिक क्षमता की तुलना में हमारी भावनाओं का उस कदर विकास नहीं हुआ, जिसके कारण भूमंडलीकरण के इस दौर में धरती की आठ अरब आबादी के साथ संवेदना की भाषा व्यक्त करने में हम अभी भी अक्षम है. मानव अपनी बुद्धि का इस्तेमाल धरती को बचाने के लिए कैसे करेगा, यह एक बड़ा सवाल है.

विकास कुमार

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

1 month ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

1 month ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.